यह कहानी उस दौर की है जब एक औरत को मर्द के पैर की जूती से ज्यादा कुछ समझा नहीं जाता था, जब एक औरत के हाथ सिर्फ घर के काम और रोटियाँ सेंकने के ही काम आते थे।मिलिए उस दौर की ऐसी लड़की से जिसका खूबसूरती में कोई मुकाबला नहीं कर सकता, जिसने अपने हाथों से रोटियाँ नहीं बल्कि दहशत की कहानी लिखी। चम्बल के बीहड़ों की पहली महिला डाकू जिसका नाम तो गौहरबानों रखा गया लेकिन हालातों ने उसकी पहचान बदल दी, आज गौहरबानों को लोग जिस नाम से जानते है वो नाम है पुतलीबाई । बचपन में पुतलीबाई को नाचने और गाने का बहुत शौक था लोग दूर-दूर से उसका नाच देखने और गाने सुनने आते थे। पुतलीबाई जब ढोलक की ताल पर थिरकती थी तो लोग पैसों की बारिश कर देते थे। लेकिन इसी प्रसिद्धि और खूबसूरती के कारण पुतलीबाई स्टेज की जगह चम्बल के बीहड़ों में पहुंच गई।
उस वक्त चम्बल के बीहड़ों में डाकू सुल्ताना का राज हुआ करता था। डाकू सुल्ताना वैसे महिलाओ की बहुत इज्जत करता था लेकिन जब पुतलीबाई की खूबसूरती के किस्से सुने तो सुल्ताना उसका कायल हो गया। अब सुल्ताना ने पुतलीबाई को हासिल करने का प्लान बना लिया। जब पुतलीबाई 25 साल की थी तब वह एक शादी के प्रोग्राम में स्टेज पर डांस प्रस्तुति दे रही थी। तभी डाकू सुल्ताना अपनी गैंग के साथ वहाँ आ टपका। शादी में उपस्थित सभी लोग सुल्ताना को देखकर डर गए लेकिन पुतलीबाई उससे डरी नहीं और ऊंची आवाज में सुल्ताना को पूछा “कौन ह रे तू” तो जवाब में सुल्ताना ने भी बोला “तेरा चाहने वाला मेरे साथ चल” तो पुतलीबाई ने जाने से मना कर दिया।
इसके बाद सुल्ताना ने काफी कोशिश की लेकिन पुतलीबाई नहीं मानी तो सुल्ताना ने दूसरी चाल चली। सुल्ताना ने पुतलीबाई के भाई के सीने पर बंदूक तान दी और पुतलीबाई से कहा साथ चल वरना इसे उड़ा दूंगा। अब पुतलीबाई के पास दूसरा कोई रास्ता नहीं बचा और वह साथ जाने के लिए मान गई,और पुतलीबाई को चम्बल के बीहड़ों में ले गया। अब पुतलीबाई के हाथों में चूड़ियों की खनखनाहट की जगह हथियारों की खनक बजने लगी, पैरों में घुँघरू की जगह पुतलीबाई को बेड़ियों के बंधने का एहसास होने लगा। पुतलीबाई ने हालातों से समझौता कर लिया और मान लिया की अब यही उसकी जिंदगी की सच्चाई है और ऐसे ही उसे जीना पड़ेगा। धीरे-धीरे पुतलीबाई ने सुल्ताना की मोहब्बत को भी स्वीकार कर लिया लेकिन सुल्ताना की बुरी आदतों से वह घबरा गई और अपने गांव लौट आई। पुलिस की नजर पहले से ही सुल्ताना और उसकी गैंग पर थी और जब पुतलीबाई के गाँव आने की खबर पुलिस को लगी तो पुलिस ने पुतलीबाई को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने पुतलीबाई को टॉर्चर भी किया ताकि वह सुल्ताना के राज उगल सके लेकिन पुतलीबाई डरी नहीं और मुहँ नहीं खोला, थक-हारकर पुलिस ने पुतलीबाई को छोड़ दिया। पुलिस के चंगुल से छूटते ही पुतलीबाई सीधा डाकू सुल्ताना के पास बीहड़ पहुंची। लेकिन पुलिस लगातार सुल्ताना का खेल खत्म करने के लिए उसके पीछे पड़ी थी। 25 मई 1955 को पुलिस ने सुल्ताना गैंग को घेर लिया और पुलिस ओर सुल्ताना के बीच मुठभेड़ हुई जिसमें डाकू सुल्ताना मारा गया। सुल्ताना तो मर गया लेकिन पुतलीबाई के बुरे दिनों की कहानी अब शुरू हो चुकी थी। इसी दौरान पुतलीबाई ने एक बेटी को भी जन्म दिया लेकिन उसे कहीं दूर ही रखा। जब पुतलीबाई सुल्ताना के साथ थी तब वह उसके साथ जरूर थी लेकिन उसने कोई अपराध नहीं किया था लेकिन अब सुल्ताना के गैंग की पूरी जिम्मेदारी पुतलीबाई पर थी इसलिए उसने गैंग की कमान संभाल ली और पूरी तरह से अपने आपको इस दलदल में झोंक दिया। अब दिन-ब-दिन पुतलीबाई खूंखार बनती जा रही थी। पुतलीबाई वारदात को इतने खतरनाक तरीके से अंजाम देती की हर कोई उससे डरने लगा। अब पुतलीबाई का डंका चम्बल के बीहड़ों में खूब बजने लगा था। लेकिन कहते है ना की बुरे काम का अंत जरूर होता है और यंहा भी वही हुआ, कुछ दिन बाद ही पुतलीबाई भी पुलिस के हत्थे चढ़ गई और मुठभेड़ में महज 32 साल की उम्र में ही मारी गई।
बताया जाता है कि पुतलीबाई इतनी बर्बर थी कि डकैती के दौरान लोगों के नाक-कान तक काट लेती थी। महिलाओं के साथ भी बर्बरता से पेश आती थी। चंबल की पहली महिला डकैत पुतली बाई के जीवन पर आधा दर्जन से अधिक फिल्में बन चुकी है। हर फिल्म ने अच्छी खासी कमाई भी की है। उस समय में पुतली बाई के नाम का खौफ ऐसा था कि उसे देख लोग थर्राते थे।
कभी चंबल के बीहड़ों में आतंक के पर्याय रह चुके पूर्व दस्यु सरगना मलखान सिंह भी पुतलीबाई के साहस की मिसाल देते है। वह कहते हैं कि वह ‘मर्द’ थी और मुठभेड़ में जमकर पुलिस का मुकाबला करती थी। मलखान सिंह कहते हैं कि आज की दस्यु सुंदरियों और पुतलीबाई में बहुत भारी अंतर है। ये पुरूषों पर आश्रित हैं जबकि पुतलीबाई खुद ही अपने गिरोह का नेतृत्व करती थी। ज्यादातर मुठभेड़ों में पुतलीबाई ने भारी भरकम पुलिस फोर्स को खदेड़ दिया।
बताया जाता है कि एक पुलिस मुठभेड़ में गोली लगने से पुतलीबाई को अपना एक हाथ भी गंवाना पड़ा था। इसके बावजूद भी वो एक हाथ से ही गोली चलाकर पुलिस से मुठभेड़ कर लेती थी। 20-20 पुलिस जवान उसके सामने टिक नहीं पाते थे। छोटे कद की दुबली-पतली और फुर्तीली पुतलीबाई एक हाथ से ही राइफल चलाकर दुश्मनों के दांत खट्टे कर देती थी। सुल्ताना की मौत के बाद गिरोह के कई सदस्यों ने उससे शादी का प्रस्ताव रखा। सुल्ताना के प्रेम में दिवानी पुतलीबाई ने सबको इंकार कर दिया। 23 जनवरी 1958 में मुठभेड़ के दौरान पुलिस ने उसे मार गिराया। 24 जनवरी 1958 पुतली की हत्या के बाद लोगों ने उसकी और उसके 8 साथियों की लाशों के साथ मुरैना में प्रदर्शन किया था। ग्वालियर के पुलिस म्यूजियम में अभी उसके हथियार सुरक्षित हैं। पुतली की मां असगरी और उसकी बेटी तन्नो इस घटना के बाद सदमे में थीं। बाद में वो कलकत्ता शिफ्ट हो गईं। अब तो पुतली की बेटी तन्नो भी करीब 70 साल की हो गई हैं। कलकत्ता में उनका बिजनेस है। पुतली की मौत के 64 साल बाद भी उसे चंबल की पहली और सबसे खूबसूरत महिला डाकू के तौर पर याद किया जाता है।साभार