भारत ने परमाणु युग में 4 अगस्त, 1956 में उस समय प्रवेश किया जब देश के पहले परमाणु रिएक्टर ‘अप्सरा’ का शुभारंभ किया गया। इस रिएक्टर की डिज़ाइन एवं निर्माण भारत द्वारा किया गया था, परंतु इसके लिये परमाणु ईंधन की आपूर्ति (एक समझौते के अंतर्गत) ब्रिटेन द्वारा की गई थी। गौरतलब है कि अनुसंधान उद्देश्यों के लिये हमारा दूसरा रिएक्टर ‘साइरस’ कनाडा के सहयोग से विकसित किया गया था, जिसे 1960 में संचालित किया गया। आरंभ में तो अनुसंधान रिएक्टर, न्यूटन भौतिकी एवं न्यूटन विकिरण के अंतर्गत पदार्थों के व्यवहार के अध्ययन तथा रेडियो आइसोटोप उत्पादन के अनुसंधान मंच बने। परंतु बाद में ये विभिन्न प्रकार की बीमारियों, विशेषकर कैंसर के इलाज में भी उपयोगी साबित हुए तथा गैर-विनाशकारी परीक्षण उद्देश्य के लिये औद्योगिक एप्लीकेशनों के रूप में भी इनका इस्तेमाल किया जाने लगा।
परमाणु के प्रयोग से बिजली निर्माण कार्य परमाणु ऊर्जा के माध्यम से बिजली बनाने का काम अक्तूबर 1969 में उस समय शुरू हुआ जब तारापुर में दो रिएक्टरों को सेवा में लाया गया। तारापुर परमाणु बिजली स्टेशन का निर्माण अमेरिका के जनरल इलेक्ट्रिक द्वारा किया गया था। तारापुर संयंत्र द्वारा देश में सबसे कम लागत की गैर-हाइड्रो बिजली सप्लाई की जाती है। भारत का दूसरा परमाणु बिजली स्टेशन राजस्थान में कोटा के निकट स्थापित किया गया तथा इसकी पहली इकाई ने अगस्त 1972 में काम करना शुरू किया। राजस्थान की पहली दो इकाइयाँ कनाड़ा के सहयोग से स्थापित की गई थीं।भारत का तीसरा परमाणु बिजलीघर चेन्नई के निकट कलपक्कम में स्थापित किया गया। यह देश का पहला स्वदेशी संयंत्र है। यह विशाल चुनौतीपूर्ण कार्य था क्योंकि उस समय भारतीय उद्योग को परमाणु उपयोग के लिये आवश्यक जटिल उपकरण बनाने का कोई विशेष अनुभव नहीं था। तथापि जुलाई 1983 में मद्रास परमाणु बिजलीघर की पहली स्वदेशी इकाई की स्थापना के साथ भारत उन देशों के समूह में शामिल हो गया जो अपने बल पर परमाणु बिजली इकाइयों कीडिज़ाइनिंग और निर्माण करते रहे हैं। देश का चौथा परमाणु बिजलीघर गंगा नदी के तट पर नरोरा (उत्तर प्रदेश) में स्थापित किया गया। नरोरा की पहली इकाई का शुभारंभ अक्तूबर 1989 में किया गया। अगले 20 वर्षों में भारत ने अपनी स्वदेशी प्रौद्योगिकी के आधार पर ग्यारह 220 मेगावाट की इकाइयों तथा दो 540 मेगावाट की इकाइयों को स्थापित किया। भारत की अपनी प्रौद्योगिकी को ‘प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर’ कहा गया। इस कार्य को पूरा करने के लिये भारत ने सुदृढ़ भारी जल उत्पादन क्षमता एवं ईंधन उत्पादन क्षमता का निर्माण किया।भारत ने अपनी परमाणु क्षमता को तेजी से मजबूती प्रदान करने के लिये ईंधन के रूप में परिष्कृत यूरेनियम के उपयोग वाली दो 1000 मेगावाट की रिएक्टर बिजली इकाइयाँ स्थापित करने हेतु 1988 में पूर्व सोवियत संघ के साथ समझौता किया। हालाँकि, 1990 में सोवियत संघ के विघटन के कारण भारत-रूस परियोजना ठंडे बस्ते में चली गई। तथापि1998 में भारत और रूस ने पुन: इस परियोजना को शुरू करने का निर्णय लिया। उल्लेखनीय है कि इस परियोजना की पहली इकाई को चालू करने का काम अभी प्रगति पर ही था कि उसी समय मार्च 2011 में जापान के फुकूशिमा में परमाणु दुर्घटना घटित हो गई। जिसके कारण संयंत्र स्थल के आसपास रहने वाले लोगों ने परियोजना का काफी विरोध किया। हालाँकि, लोगों को यह समझाने में काफी समय लगा कि जापानी संयंत्र की तुलना में इस संयंत्र स्थल की स्थितियाँ बिल्कुल भिन्न हैं। कुड्डनकुलम की पहली इकाई 2014 और दूसरी इकाई 2016 में चालू हुई।स्रोत : पी.आई.बी. sourcetitle : India’s Atomic Energy Programme sourcelink : http://pib.nic.in/newsite/efeatures.aspx
