किशोर साहू का जन्म 22 नवम्बर 1915 को सेंट्रल प्रोविन्स के राजनांदगांव,में हुआ था। जो छत्तीसगढ़ में है। किशोर साहू ने हर प्रकार की फिल्मों का निर्माण निर्देशन किया था । किशोर साहू अपने ज़माने में सफल निर्देशन अभिनेता के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे। लगभग 50 फिल्मों में अपनी अभिनय कला की छाप छोड़ने वाले किशोर साहू ने ‘बुजदिल’, ‘गाईड’, ‘ज़लज़ला’ में अपने शानदार अभिनय से सभी लोगो के दिल में जगह बना ली थी । बतौर निर्माता ‘नदिया के पार’ किशोर साहू निर्देशित कामयाब फिल्म थी। जिसमे दिलीप कुमार कामिनी कौशल की भूमिका थी। प्रतिमा दासगुप्ता, अनुराधा, बीनाराय,इंदिरा पांचाल,आशा माथुर ,माला सिन्हा, कुमुद छुगानी, परवीन बॉबी को रुपहले पर्दे पर लाये ।
उन्होंने ‘टेसू के फूल’, ‘घोसला’, ‘छलावा’ की कहानी लिखी है चार उपन्यासों की रचना भी किशोर साहू ने की है। ‘कुछ मोती कुछ सीप, अभिसार, शादी या ढकोसला,शामिल है।
किशोर साहू वहीं है जो देवानंद की फिल्म गाइड में पुरातत्वविद मार्को था और जिसकी अपनी पत्नी रोजी (वहीदा रहमान) से गुफाओं के भीतर भी तकरार होती थीं । किशोर साहू ने ‘हरे कृष्णा हरे रामा ‘ में भी जीनत और देवानंद के पिता की भूमिका निभाई थीं । किशोर साहू उन बिरले फिल्मकारों में थे जिन्होंने साहित्य रचते हुए फिल्में भी बनाई और उन फिल्मों से हिंदी साहित्कारों को भी जोड़ा। ये अलग बात है कि उनकी फिल्मों को याद कर लिया जाता है, लेकिन उनके साहित्यिक योगदान पर चर्चा कभी नहीं हुई। किशोर साहू ने स्कूल के ज़माने से ही नाटकों का साथ पकड़ लिया। नाटकों की दुनिया में प्रवेश लेने के बाद उन्हें लगता था कि वे अभिनय करने के लिये ही पैदा हुए थे। नागपुर के मॉरिस कालेज में प्रवेश लेने के बाद किशोर साहू नाटकों को इतनी गंभीरता से लेने लगे कि पढ़ाई के बेहद शौक़ीन किशोर साहू परीक्षा में पास होने लायक नंबर ही ला पाते थे। तब तक किशोर साहू की लेखनी मुखर हो कर सामने आने लगी थी। लिखने की प्रेरणा उन्हें घर से ही मिली उनके पिता कन्हैया लाल साहू हिंदी के लेखक थे। स्कूली दिनों से ही किशोर साहू कहानियां लिखने लगे। नागपुर में उहोंने ना सिर्फ नाटकों में अभिनय किया बल्कि नाटक लिखे भी। किशोर साहू की लेखन की प्रतिभा ने उन्हें फ़िल्मी दुनिया में अपनी जगह मज़बूत करने में बहुत मदद की। कॉलेज से निकलने के बाद उन्होंने नाटक करने का ही फ़ैसला किया। इस बीच सुंदर और प्रभावशाली किशोर साहू को उनके दोस्तों ने राय दी कि वो बम्बई अब मुंबई जाकर फ़िल्मों में भाग्य आज़माएं।
दूसरे बहुत से लोगों की तरह किशोर साहू को भी काम ढूंढने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा। संघर्ष के दौर ने ही उनकी मुलाक़ात अशोक कुमार से करवायी। साहित्य में रूचि और अभिनय की बारीकियों पर किशोर साहू की बेबाक बातों ने अशोक कुमार को काफ़ी प्रभावित किया। अशोक कुमार की सिफ़रिश पर बॉम्बे टाकीज़ के मालिक हिमांशु राय साहू से मिलने पर राजी हो गए और इस मुलाकात के बाद किशोर साहू की किस्मत बदल गयी। हिंमांशु राय ने किशोर साहू को अपनी फ़िल्म जीवन प्रभात (1938) में हीरो का रोल दे दिया। किशोर साहू की नायिका थीं। हिमांशु राय की पत्नी देविका रानी। किशोर साहू की पहली ही फ़िल्म हिट हो गयी। इस फ़िल्म में किशोर साहू ने रईस ज़मींदार के बेट का रोल निभाया था। उन्होंने हिरोइन के साथ बाग़ में गाने गाए और शिकार के दृश्य में मचान पर चढ़ कर शेर भी मारा। लेकिन किशोर साहू को इस फ़िल्म की सफ़लता ने कहीं से भी उत्तेजित या उत्साहित नहीं किया। वो कुछ ऐसा करना चाहते थे जिससे उनके अंदर के कलाकार को संतुष्टि मिल सके। लेकिन किसी कलाकार की संतुष्टि के लिये कोई फाइमेंसर अपना पैसा क्यों खर्च करेगा। इस बात का एहसास किशोर साहू को फ़िल्म हिट होने के बाद जल्द ही हो गया। उनके सामने एक ही रास्ता था कि अपनी ख़्वाहिश को पूरा करने के लिये वे खुद ही फ़िल्म बनाएं। मगर उनके हालात ऐसे नहीं थे।
किशोर साहू वापस नागपुर लौट गएऔर लेखन में जुटे गए तभी उनके बम्बई अब मुंबई के अनुभवों की ख़बर पाकर उनके दोस्त । द्वारका दास डागा उनसे मिलने आ पहुंचे। वो लखपति व्यवसायी थे। बम्बई अब मुंबई में उनके भाई का व्यवसाय था। किशोर साहू ने डागा को बताया कि अपनी मर्ज़ी की फ़िल्म में काम किए बिना उन्हें संतुष्टि नहीं मिल सकती और ऐसा करने के लिए उन्हें अपनी फ़िल्म कंपनी खोलनी होगी जिसकी हैसियत उनमें नहीं है। डागा फ़िल्म प्रभात देख चुके थे और किशोर साहू की प्रतिभा का पहले से ही अंदाज़ था इसलिए वो किशोर साहू के साथ मिल कर फ़िल्म कंपनी खोलने पर राज़ी हो गए। इस तरह अस्तित्व में आयी इंडिया आर्टिस्ट लिमिटेड। इस बैनर की पहली फ़िल्म थी बहुरानी। साहित्य के प्रति गहरा अनुराग रखने वाले किशोर साहू ने इस फिल्म के लिए अनूप लाल मंडल के उपन्यास मिमांसा को आधार बनाया। फ़िल्म बहुरानी, अछूत विषय पर अपने समय की बेहद चर्चित और क्रांतिकारी फ़िल्म साबित हुई। इसके बाद किशोर साहू ने बॉम्बे टाकीज़ की फ़िल्म पुनर्मिलन में काम किया। यह फ़िल्म भी सफ़ल रही और इस तरह किशोर साहू के खाते में लगातार तीसरी सफल फिल्म आयी। यहीं पर किशोर साहू ने अपने अभिनय का एक और रंग प्रस्तुत किया और ‘कुंवारा बाप’ नाम की वो फ़िल्म बनायी जो आज भी भारत की बेहतरीन हास्य फ़िल्मों में शुमार की जाती है। किशोर साहू ने अपने मित्र और हिंदी के प्रसिद्ध लेखक अमृतलाल नागर से ‘कुंवारा बाप’ के डायलाग लिखवाए और अभिनय भी कराया।
जब किशोर साहू के हास्य अभिनय के चर्चे हो रहे थे तब किशोर साहू ने एंग्री मैन का रोल निभाने का फ़ैसला किया। फ़िल्म का नाम था ‘राजा’। इस फिल्म से उन्होंने हिंदी साहित्यकार को जोड़ा। भगवती चरण वर्मा के प्रसिद्ध गीत – ‘है आज यहां कल वहां चलो’ को किशोर साहू ने ‘राजा’ का प्रमुख गीत बनाया। फिल्मों से जुड़े रहने के साथ साथ किशोर साहू ने लिखना भी जारी रखा और जमकर लिखा। कहानियां, उपन्यास, नाटक, और कविताएं सभी कुछ उन्होंने लिखा।
उनकी कहानियों की एक वड़ी विशेषता ये है कि वो जब तक पूरी नही हो जातीं अपना भेद प्रकट नहीं होने देतीं। सादा और दिलचस्प तर्जे बयां, आम बोलचाल की भाषा और मानवीय संवेदना किशोर साहू के लेखन की खासियत है। किशोर साहू ने फिल्मों में हिंदी को हमेशा महत्व दिया,वो पैदा हुए और पले बढ़े वहां की भाषा को भी पूरा सम्मान दिया। दिलीप कुमार और कामिनी कौशल अभिनीत ‘नदिया के पार’ में पहली बार पर्दे पर पात्र छत्तीसगढ़ी बोलते सुनायी पड़े। ‘हेलमेट’, ‘कालीघटा’, ‘साजन’, ‘सिंदूर’ और ‘वीर कुणाल’ सहित किशोर साहू ने करीब 22 फिल्मों का निर्देशन किया।
प्रथम उप-प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री सरदार बल्ल्भभाई पटेल ने मुंबई में वीर कुणाल को रिलीज़ करते हुए इसे श्रेष्ठ फिल्म घोषित किया था। साथ ही किशोर साहू ने अभिनय पर्दे पर भी अलग अलग शेड प्रस्तुत किए। फिल्म ‘गाइड’ में उनके सशक्त अभिनय को भला कैसे भूला जा सकता है। आखिरी सालों में किशोर साहू फिल्मी दुनिया में आ रहे बदलावों को लेकर बहुत क्षुब्द रहने लगे थे। वो उस दौर के थे जब मेहनत ईमानदारी और उसूल बड़ी चीज़ हुआ करते थे सत्तर के दशक में हालात तेजी से बदलने लगे। किशोर साहू ने अपनी बेटी नयना को लेकर भी फिल्म ‘हरे कांच की चूड़ियां’ ( 1967) बनाई, लेकिन तब तक उनके समय के फिल्मकार हाशिये पर पहुंचते जा रहे थे। अपने निधन से पहले तक किशोर साहू एक भव्य फिल्म की योजना पर काम करते रहे ।
फिल्म हरे कांच की चूडिय़ां में बतौर अभिनेत्री मुख्य अभिनेता निभाने वाली किशोर साहू की पुत्री का निधन 22 जनवरी 2017 को हो गया था। उनके बेटे विक्रम साहू ने फिल्म सत्ते पर सत्ता में अभिताभ बच्चन के एक भाई की भूमिका निभाई थी, वे भी इन दिनों छोटे-मोटे सीरियलों में काम करके अपनी गुजर-बसर कर रहे हैं। 22 अगस्त 1980 को बैंकाक, में हार्ट अटैक से किशोर साहू की मौत हो गई थी ।एजेन्सी।