राकेश अचल’ । राजपथ ‘ का नाम बदले जाने से देश के बुजुर्ग इतिहासकार इरफ़ान हबीब नाराज हैं,वे नाराज हो सकते हैं,क्योंकि इतिहासकार हैं,लेकिन आप नाराज नहीं हो सकते.आपके पास नाराजगी का हक बचा ही कहाँ है ? आप किसी भी मुद्दे पर नाराज होने का हक बहुत पहले खो चुके हैं.आप केवल ‘ हां ‘ में ‘ हां ‘ मिलाइये और जन-गण-मन गाइये ,क्योंकि अब इसी के बदलने की तैयारी है.राजपथ कैसे औपनिवेशिक शासन का प्रतीक था ? ये सवाल इरफ़ान हबीब का है ? वे 91 वर्ष के हैं,उन्होंने इतिहास देखा भी है,पढ़ा भी है और लिखा भी है.इसलिए हबीब साहब को कोई गंभीरता से ले या न ले किन्तु मै पूरी गंभीरता से लेता हूँ.हमारी सरकार के लिए इरफ़ान हबीब की टिप्पणी का कोई अर्थ इसलिए भी नहीं है क्योंकि एक तो वे अल्पसंख्यक हैं और दूसरे उन्होंने भाजपा और संघ का इतिहास लेखन नहीं किया.लेकिन वे कहते हैं कि ‘ राजपथ’ का नाम बदलना एक ‘ सनक’ के सिवाय कुछ भी नहीं है.
राजपथ के बारे में मै अपनी राय पहले दे चुका हूँ,मेरी राय आज भी वो ही है जो कल थी,लेकिन मेरी राय से सौ गुना ज्यादा महत्वपूर्ण टीप इरफ़ान हबीब साहब की है.इरफ़ान हबीब साहब कहते हैं कि -‘ सड़कों या इमारतों का नाम बदलने से शासन नहीं बदलेगा। उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार इस संबंध में राजनीति कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक दिन पहले ही राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ किया था। इतिहासकार ने कहा कि इस सरकार को ऐसा कुछ करने की ‘सनक’ है जो यह छाप छोड़ सके कि यह एक ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया था जो एक ‘महान नेता’ थापता नहीं क्यों इरफ़ान हबीब हमारे प्रधानमंत्री को महान नेता नहीं मानते ? मै तो मानता हूँ ,क्योंकि वे हैं महान.उन्होंने अब तक जितने भी काम किये हैं वे एक से बढ़कर एक महान हैं.उनके जैसा काम देश का एक भी पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री नहीं कर पाया.
हबीब साहब ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘यह सब राजनीतिक है। इसे राजनीति कह सकते हैं, क्योंकि आप अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं।’ हबीब ने कहा, ‘चूंकि आपको कोई खास नाम पसंद नहीं है’, इसलिए किसी चीज़ का नाम बदलने के लिए औपनिवेशिक इतिहास को मिटाने का हवाला देने का कोई तुक नहीं है। उन्होंने कहा कि औपनिवेशिक काल में किंग्स-वे और क्वींस-वे थे और आजादी के बाद एक का नाम राजपथ और दूसरे का जनपथ रखा गया। सवाल ये है कि हबीब साहब को सुन कौन रहा है ? वे जो चाहें सो कहते रहें ,वे हमारे पंत प्रधान से ज्यादा तो सही कभी नहीं हो सकते.देश के इतिहास और शासन व्यवस्थाओं के बारे में मेरी समझ सीमित है किन्तु इरफ़ान हबीब साहब तो खुद चलता -फिरता इतिहास हैं ,वे जो कहते हैं अधिकार पूर्वक कहते हैं. वे कहते हैं कि–‘भारतीय पहले ही जाग चुका हैं और वे चाहते हैं कि सरकार उनके कष्टों- आर्थिक, सामाजिक संघर्ष और देश में हो रही हर तरह की चीजों से अवगत हो। उन्होंने सड़कों और भवनों के नाम बदलने के बारे में कहा, ‘इसका कोई अर्थ नहीं है। शासन शायद ही बदलता है। किसी सड़क या इमारत का नाम बदलने से शासन नहीं बदलेगा। ऐसा कभी नहीं हुआ।’अब बुजुर्गवार को कौन समझाये कि जो अब तक नहीं हुआ वो ही तो अब सब हो रहा है.
इरफ़ान हबीब साहसी व्यक्ति हैं वरना 91 साल की उम्र में कौन सरकार के खिलाफ बोलता है ? आज की पीढ़ी तो बोलना भूल ही चुकी है. फिर भी इरफ़ान हबीब ने कहा कि-‘ नामों में बदलाव शायद ही किसी ऐतिहासिक विमर्श में फिट बैठता है। उन्होंने कहा, ‘यह सब काफी राजनीतिक है। यह सरकार कर रही है या पिछली सरकार ने किया। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि पिछली सरकारों ने जो किया, वह ठीक था। उन्होंने कई बड़ी गलतियां कीं। ज्यादातर राजनीतिक दल अपने वोट बैंक को लेकर चिंतित हैं। यह सरकार राष्ट्रवाद से ग्रस्त है। वे हर किसी को महान राष्ट्रवादी बनाना चाहते हैं, जैसे हम पहले राष्ट्रवादी नहीं थे।’
मुझे लगता है कि यदि इरफ़ान हबीब साहब सचमुच पंत प्रधान को देश का इतिहास समझना चाहते हैं तो उन्हें अस्थायी रूप से ही सही,लेकिन भाजपा में शामिल हो जाना चाहिए.तभी उन्हें गंभीरता से लिया जा सकता है .इरफ़ान साहब कहते हैं कि-‘ जो लोग ‘अति-राष्ट्रवादी’ हैं, वे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नहीं दिखे थे। उन्होंने कहा कि देशभक्ति और राष्ट्रवाद के बीच अंतर करना होगा। उन्होंने कहा कि देशभक्ति अनिवार्य है और हर किसी को देशभक्त रहने की जरूरत है, लेकिन राष्ट्रवाद कुछ और है। हबीब ने कहा, ‘आज हमें देशभक्त, देश के प्रति निष्ठावान होने की जरूरत है। लेकिन अब हम राष्ट्रवादी बनने के लिए देश के भीतर ही दुश्मनों को ढूंढ रहे हैं और अपने ही लोगों को नक्सली और अति-नक्सली जैसे अलग-अलग नाम दे रहे हैं।’ उन्होंने कहा, ‘यह सब राजनीति है। मुझे इसमें कोई गंभीरता नहीं दिखती।’जो भी हो ,मै इरफ़ान साहब को लेकर चिंतित हूँ,क्योंकि मुमकिन है कि वे सच कहकर मुश्किल में पड़ जाएँ.उनका ईडी और सीबीआई तो कुछ बिगाड़ नहीं सकती लेकिन बहुत से दुसरे तरीकों से उन्हें नुकसान पहुंचाया जा सकता है .कहा जा सकता है कि वे भी उपनिवेशकाल का चलता-फिरता स्मारक हैं इसलिए उन्हें जमीदोज कर दिया जाये .कहा जा सकता है कि वे देशद्रोह की बातें कर रहे हैं और किसी ऐसे दल के समर्थक हैं जिसका नेता महंगी टी शर्ट पहनकर भारत जोड़ो यात्रा कर रहा है ,कहने को कुछ भी कहा जा सकता है. करने को कुछ भी किया जा सकता है .किन्तु मै इरफ़ान हबीब साहब के दुस्साहस को सलाम करता हूँ.आप चाहें तो आप भी कर सकते हैं और न चाहें तो नहीं भी कर सकते .वैसे भी देश के पास इरफ़ान हबीब साहब की पीढ़ी के लोग बचे ही कितने हैं ,जो सच कहने का हौसला बनाये हुए हैं,बचाये हुए हैं .दुनिया जानती है कि इरफ़ान हबीब वामपंथी सोच के इतिहासकार हैं .उन्हें पदम्भूषण से नवाजा जा चुका है. केरल के राज्य पाल आरिफ मोहममस इरफ़ान हबीब को गुंडा मानते हैं .हमारी बिरादरी छोड़कर सामने की बिरादरी में शामिल हो चुके मध्य प्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी ने वामपंथी इतिहासकार इरफान हबीब लिखित मध्यकाल के मुस्लिम इतिहास को लेकर की गई मिलावट और मनमानी पर सवाल खड़े किए गए हैं। इरफान हबीब ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अनपढ़ कहा था तथा भारत की एकता और विविधता के खिलाफ बयान दिये थे।