जॉन एलिया उर्दू के महान शायर थे । इनका जन्म 14 दिसंबर 1931 को अमरोहा में हुआ था। यह अब के शायरों में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले शायरों में शुमार हैं। शायद, यानी,गुमान इनके प्रमुख संग्रह हैं । जॉन एलिया सिर्फ पाकिस्तान में ही नहीं हिंदुस्तान व पूरे विश्व में अदब के साथ पढ़े और जाने जाते हैं। जब दौर 2000 के बाद आया यानी 21 वीं सदी जब आयी तो अपने को कभी बड़ा ना समझने वाले जॉन एलिया को लोग समझने लगे पसंद करने लगे, इस किस्म के शायर बहुत ही कम होते हैं। पाकिस्तान के होते हुए भी अपने आबाई शहर अमरोहा को कभी भूल नहीं पाए वो लहजा हमेशा बरकरार रहा था।
जॉन एलिया प्रसिद्द पत्रकार रईस अमरोही और विश्व प्रसिद्द दार्शनिक सय्यद मुहम्मद तकी के भाई एवं मशहूर फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही के सबसे छोटे भाई थे । प्रसिद्द कॉलम लिखने वाली जाहिदा हिना के पति थे। इनके बाकी भाई भी जाने-माने विद्वान और पत्रकार रहे। जॉन एलिया पाकिस्तान के मशहूर अखबार जंग के संपादक रह चुके थे। जॉन एलिया शिया थे मगर उनकी शिक्षा सुन्नियों के गढ़ देवबंद में हुई थी. अपने जीवन में अरबी की कई किताबों का अनुवाद जॉन एलिया ने उर्दू में किया था। मगर उनका ज्यादातर काम उनके जीवन में प्रकाशित नहीं हो पाया।सोशल मीडिया पर जॉन एलिया सरीखी लोकप्रियता उर्दू और हिंदी अदब के किसी नाम ने अब तक हासिल नहीं की है।जौन एलिया को कई भाषाए आती थी उर्दू, हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, हिब्रू, और पर्सियन शामिल थी ।
शायर दिल इंसान होने के चलते बंटवारे से उन्हें खासी तकलीफ हुई और उन्होंने इसका भरसक विरोध भी किया था। जॉन एलिया जवानी के समय में आप हिन्दू-मुस्लिम युद्ध में जुड़ गये जो की बाद में देश के बटवारे का कारण बना । जॉन एलिया ने कराची को अपना घर बनाया । यहां तक कि बंटवारे के बाद सालों तक उन्होंने अपनी जन्मभूमि नहीं छोड़ी लेकिन बाद में परिवार से दूर हो जाने की मजबूरी के चलते उन्हें 1956 में पाकिस्तान जाकर बसना पड़ा। आपके पिता अल्लामा शफीक हसन एलिया कला और साहित्य के क्षेत्र में काफी कार्य करते थे और वह शायर और ज्योतिष भी थे । उन्ही सब के चलते आपने 8 वर्ष की उम्र में ही अपना पहला शेर लिखा । आप अपने युवा समय में काफी संवेदनशील थे आपके भीतर अंग्रेजो के लिए काफी क्रोध था। अप उस समय मुस्लिम समय और इतिहास को नाटको के जरिये पेश करते थे | आपकी शुरूआती शायरी में इसी कारण से नाटक के डायलाग की झलक मिलती है। कुछ समय बाद आप काफी प्रसिद्द हो गये । शायर पीरजादा कासिम कहते है ” जॉन एलिया अपनी भाषा के प्रति काफी प्रतिबद्ध थे और यह सब उनके संस्कृति से जुड़ा हुआ है । आपका पहला शायरी संग्रह शायद 1991 में प्रकाशित हुआ जब आप 60 वर्ष के थे। इस संग्रह का परिचय अपने आप में उर्दू साहित्य का सबसे अच्छा प्रारूप माना जाता है | इसमें आपका मूल्याकन समय के फेर में, आपकी दार्शनिकता दिखाई देती है । आपका दूसरा शायरी संग्रह 2003 में प्रकाशित हो पाया जिसका नाम यानी था । इसके बाद आपके विश्वासपात्र खालिद अंसारी ने तीन संग्रह छपवाए जिनके नाम थे गुमान ( 2004), “लेकिन” ( 2006) और गोया ( 2008)।
जॉन एलिया को किसी एक्सपर्ट की तरह दर्शन, इस्लाम का इतिहास और इस्लामिक संस्कृति का इल्म था । आपका यह ज्ञान आपकी शायरी से भी झलकता है । आपने उर्दू साहित्य पत्रिका “इंशा” का भी संपादन किया और वहा आपकी मुलाकात जाहिदा हिना से हुई जिससे आपने बाद में शादी की । जाहिदा जी आज भी दैनिक समाचार पत्रों जंग और एक्सप्रेस में लिख रही है । आपको 2 पुत्रिया और एक पुत्र है । जॉन एलिया और जाहिदा के बीच 80 के दशक में तलाक हो गया था । जिससे एलिया काफी टूट गये और आपने शराब का सहारा लिया । काफी लम्बी बीमारी के बाद आपका 8 नवम्बर, 2002 को कराची में इंतकाल हो गया। अपनी पहली पुस्तक के लिए रचनाओं के चयन और उसकी एडिटिंग में जॉन एलिया ने 15 साल लगा दिए थे. हालांकि मृत्यु के बाद उनकी चार और किताबें ‘यानी’, ‘गुमान’, ‘लेकिन’ और ‘गोया’ प्रकाशित हुईं. सोशल मीडिया के चलते इन किताबों ने वह लोकप्रियता पाई है जो जॉन एलिया और उनके अशआर उनके जीते जी कभी न पा सके थे. संभव है किस्मत ने उनके लिखे को ऐसे ही मशहूर होना लिखा था इसलिए सालों तक वह किताबों की शक्ल में न ढल सका। साभार।