पुण्य तिथि पर विशेष- क़मर जलालाबादी हिन्दी फि़ल्मों के प्रसिद्ध गीतकार और कवि थे। ये चार दशकों तक हिन्दी फि़ल्मी जगत को बतौर गीतकार एक से बढ़कर एक गीत लिखकर प्रदान करते रहे। क़मर जलालाबादी द्वारा लिखे गए गीत आज भी बड़े पैमाने पर सुने जाते हैं। फि़ल्म ‘हावड़ा ब्रिज का मस्ती भरा गीत मेरा नाम चिन चिन चूँ और आइये मेहरबां बैठिये जाने जाँ कालजयी बन चुके हैं। क़मर जलालाबादी ने अपने लम्बे करियर में हिन्दी सिनेमा के लगभग सभी प्रसिद्ध संगीतकारों के साथ कार्य किया। एक गीतकार के रूप में क़मर जलालाबादी ने बहुत सारे अविस्मरणीय गीत हिन्दी सिनेमा को दिये। बहुत कम गीतकार ऐसे होंगे, जिनके रचे गीत दशकों तक श्रोताओं के जीवन का अभिन्न अंग बन रहे हों।
क़मर जलालाबादी का जन्म 1919 में अमृतसर के ‘जलालाबाद में हुआ था। इनके बहुत सारे गीतों में दर्शन समाहित रहा है। माता-पिता ने इनका नाम ‘ओम प्रकाश भण्डारी रखा था। क़मर जलालाबादी ने सात साल की बाल्यावस्था से ही उर्दू में कविताएँ लिखना प्रारम्भ कर दिया था। घर से तो उन्हें किसी प्रकार का प्रोत्साहन नहीं मिलता था, पर एक घुमंतु कवि अमर ने उनके अंदर छिपी काव्य प्रतिभा को पहचान कर उन्हें प्रोत्साहित किया था। उन्होंने ही ओम प्रकाश भण्डारी को तखल्लुस ‘क़मर प्रदान किया, जिसका अर्थ होता है- ‘चाँद। उस समय की परिपाटी के अनुसार चूँकि ओम प्रकाश जी जलालाबाद में रहते थे, अत: उनका कवि के रूप में नामकरण हो गया क़मर जलालाबादी।
फि़ल्मों के प्रति आकर्षण क़मर जलालाबादी को चालीस के दशक के शुरू में पूना ले आया और 1942 में उन्हें ‘जमींदार फि़ल्म में गीत लिखने का मौका मिल गया। फि़ल्म के गीत अच्छे चले और ख़ास तौर पर शमशाद बेगम द्वारा गाया गया गीत दुनिया में गरीबों को आराम नहीं मिलता, अच्छा लोकप्रिय हुआ। बाद में वे बम्बई (वर्तमान मुम्बई) आ गये और अगले चार दशकों तक हिन्दी फि़ल्मी जगत को बतौर गीतकार एक से बढ़कर एक गीत लिखकर प्रदान करते रहे। यूँ तो उन्होंने फि़ल्म की कहानी की माँग के अनुसार हर तरह के गीत लिखे, परंतु उनके द्वारा रचे गये वियोग वाले प्रेम गीत अपना एक अलग ही स्थान रखते हैं। मानवीय भावनाओं को उन्होंने अपने गीतों में बहुत खूबसूरती और गहराई से ढाला। उनके रचे गीत जीवन से एक गहरा जुड़ाव लिये हुये रहे।
‘हावड़ा ब्रिज का यह मस्ती भरा गीत मेरा नाम चिन चिन चूँ रात चाँदनी मैं और तू कालजयी बन चुका है। इसके निर्माण में संगीत निर्देशक ओ. पी. नैयर, गायिका गीता दत्त, नर्तकी और अदाकारा हेलन, निर्देशक शक्ति सामंत, नृत्य निर्देशक सूर्य कुमार, सिनेमाटोग्राफर चंदू के अलावा गीतकार क़मर जलालाबादी का भी भरपूर योगदान था, जिन्होंने इस गीत में मस्ती भरा आलम लाने के लिये आवश्यक शब्दों का ऐसा ताना-बाना बुना कि यह सुनने वाले के कानों से उसके दिल में समा जाता है और उसे एक खुशनुमा एहसास से भर देता है। परंतु बहुत सारे अन्य हिट गानों के साथ इस गीत के साथ भी यही दु:खद बात जुड़ी रहती है कि इस गाने को दशकों से सुनने वाले भी बस इस गीत को ओ. पी. नैयर और गीता दत्त के नामों के साथ जोड़ कर देखते हैं। बहुत कम ऐसे संगीत रसिक होंगे जो इस गीत को वाजिब शब्द देने वाले का नाम जानते होंगे या अगर नहीं जानते हैं तो जानने के लिये उत्सुक होंगे। हावड़ा ब्रिज का दूसरा प्रसिद्ध गीत आइये मेहरबां बैठिये जाने जां शौक से लीजिये जी इश्क के इम्तिहां के साथ भी यही होता आया है। इस मन लुभावने वाले गीत के साथ भी आशा भोंसले की मादक गायकी, मधुबाला के मोहक अभिनय और ओ. पी. नैयर के कर्णप्रिय संगीत को जोड़कर याद किया जाता है और बेहतरीन शब्दों का जाल बुनने वाला रचियता पाश्र्व में छिपा रह जाता है। 1948 में बनी फि़ल्म ‘प्यार की जीत के गीत को यदि सुना जाए तो ज्यादातर श्रोताओं को सिर्फ मुहम्मद रफ़ी की प्रसिद्ध गायकी का जुड़ाव इस गीत से सूझ पाता है और कुछ गम्भीर किस्म के संगीत रसिक इस जानकारी से आगे जाकर हुस्नलाल-भगतराम के नाम पर जा पहुंचते हैं, जिन्होने इस गीत के लिये संगीत की रचना की थी। इस गीत के शब्द भी क़मर जलालाबादी जी की ही रचनात्मक लेखनी से उत्पन्न हुये थे। क़मर जलालाबादी ने अपने समय के लगभग सभी गायक-गायिकाओं के साथ कार्य किया। उनके लिखे गीतों को हिन्दी सिनेमा के लगभग सभी मशहूर गायक-गायिकाओं, मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ, जी.एम दुर्रानी, ज़ीनत बेग़म, मंजू, अमीरबाई कर्नाटकी, मोहम्मद रफ़ी, तलत महमूद, गीता दत्त, सुरैया, श्मशाद बेगम, मुकेश, मन्ना डे, आशा भोंसले, किशोर कुमार और स्वर-कोकिला लता मंगेशकर आदि ने गाया। क़मर जलालाबादी के लिखे गीतों को कुछ संगीत निर्देशकों ने स्वयं भी गाया। एस. डी. बर्मन ने 1946 में बनी ‘एट डेज़ फि़ल्म के लिये एक कॉमिक गीत ओ बाबू बाबू रे दिल को बचाना बचाना दिल का बनेगा निशानाज अपनी आवाज़ में गाया। संगीत निर्देशक सरदार मलिक ने भी उनके लिखे कई गीत गाये और 1947 में बनी ‘रेणुका के एक गीत सुनती नहीं दुनिया कभी फरियाद किसी की, दिल रोता रहा आती रही याद उसकी ने लोकप्रियता हासिल की। सौंदर्य मलिका अभिनेत्री नसीम बानू ने भी 1947 में बनी फि़ल्म ‘मुलाकात में एक गज़़ल दिल किस लिये रोता है, प्यार की दुनिया में ऐसा ही होता है को अपनी आवाज़ गाया। मशहूर नृत्यांगना सितारा देवी ने भी 1944 में बनी फि़ल्म ‘चाँद में क़मर जलालाबादी के लिखे कुछ गीतों को गाया।
‘चाँद क़मर जलालाबादी की शुरुआती उल्लेखनीय फि़ल्मों में से एक है। काम के बाद बचा हुआ वक्त्त घर पर परिवार के साथ बिताना पसंद करने वाले क़मर जलालाबादी ने अपने लम्बे करियर में हिन्दी सिनेमा के लगभग सभी प्रसिद्ध संगीतकारों गुलाम हैदर, जी. दामले, प. अमरनाथ, खेमचंद प्रकाश, हुस्नलाल भगतराम, एस. डी. बातिश, श्याम सुंदर, सज्जाद हुसैन, सी. रामचंद्र, मदन मोहन, सुधीर फड़के, एस. डी. बर्मन, सरदार मलिक, रवि, अविनाश व्यास, ओ. पी. नैयर, कल्याणजी आनंदजी, सोनिक ओमी, उत्तम सिंह और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल आदि के साथ काम किया।
1954 में बनी फि़ल्म ‘पहली तारीख़ के लिये क़मर जलालाबादी ने एक ऐसा गीत लिखा था, जो दशकों तक हर महीने की पहली तारीख़ को रेडियो सीलोन पर बजाया जाता था और शायद अब भी इस गीत को हर महीने की पहली तारीख़ को बजाया जाता हो। संसार के वेतनभोगी वर्ग के लिये ‘वेतन दिवस का बहुत बड़ा महत्व है और भारत के करोड़ों वेतन भोगियों से सीधा सम्बंध बनाता हुआ यह गीत उनकी खुशी का इज़हार करता है। सुधीर फड़के के संगीत निर्देशन में किशोर कुमार ने क़मर जलालाबादी के लिखे मस्ती भरे बोलों को मस्ती भरे अंदाज़ में गाकर इस गीत को अमर बना दिया।
बाद मे संगीतकार जोड़ी कल्याणजी आनंदजी के साथ लम्बी पारी उन्होने खेली और कई महत्वपूर्ण गानें इस जोड़ी के नाम किए। 1960 में क़मर जलालाबादीऔर कल्याणजी-आनंदजी की तिकड़ी बनी थी, वह फ़िल्म थी ‘छलिया’। इस फ़िल्म के सभी गानें सुपर डुपर हिट हुए। उस समय शंकर जयकिशन और शैलेन्द्र-हसरत राज कपूर की फ़िल्मों का संगीत पक्ष संभालते थे। लेकिन इस फ़िल्म में इस नई तिकड़ी को मौका देना एक नया प्रयोग था जिसे इस तिकड़ी ने बख़ूबी निभाया। ‘छलिया’ के सफलता के बाद तो इस तिकड़ी ने बहुत सारे फ़िल्मों में एक साथ काम किया, जिनमें से महत्वपूर्ण नाम हैं पासपोर्ट, जोहर महमूद इन गोवा, हिमालय की गोद में, दिल ने पुकारा, उपकार, राज़, सुहाग रात, हसीना मान जाएगी, आंसू और मुस्कान, होली आई रे, घर घर की कहानी, प्रिया, सच्चा झूठा, पारस, जोहर महमूद इन हॊंग्कॊंग्, और एक हसीना दो दीवाने।
क़मर जलालाबादी का निधन 9 जनवरी, 2003 को हुआ। उन्होंने सिनेमा तथा जनता को ऐसे बेहतरीन गीत दिए, जिन्हें कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता।एजेन्सी।