जयंती पर विशेष-स्वप्निल संसार। जॉय मुखर्जी फिल्मों के आकर्षक अभिनेताओं में थे। वे उन अभिनेताओं में थे, जिन्होंने दर्शकों के दिलों पर बहुत लम्बे समय तक राज किया था। उन्होंने एक मुसाफिर एक हसीना, फिर वही दिल लाया हूँ,लव इन टोक्यो और शागिर्द जैसी यादगार फिल्में दी थीं। जॉय मुखर्जी पर फिल्मांकित और मोहम्मद रफी के द्वारा गाये गए कई गीत आज भी लोगों की जुबाँ पर हैं, जैसे-फिर वही दिल लाया हूँ, बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी, ले गई दिल गुडिया जापान की, दुनिया पागल है या फिर मैं दीवाना और बड़े मियाँ दीवाने ऐसे ना बनो आदि। जॉय मुखर्जी के परिवार का फिल्मों से काफी पुराना रिश्ता रहा है। वे अभिनेता अशोक कुमार के भांजे थे।
जॉय मुखर्जी का जन्म 24 फरवरी, 1939 को झाँसी में हुआ था। उनके पिता का नाम शशिधर मुखर्जी और माता सती देवी थीं, जो कि हिन्दी फिल्मों के अभिनेता अशोक कुमार की बहन थीं। जॉय मुखर्जी के पिता भी फिल्मों से जुड़े हुए थे। वे मशहूर फिल्मालय स्टूडियो के सह सस्थापक थे। जॉय मुखर्जी के भाई सोमू मुखर्जी प्रसिद्ध अभिनेत्री तनूजा के पति थे। तनूजा की पुत्रियाँ काजोल और तनीषा भी अभिनेत्रियाँ हैं। जॉय मुखर्जी की पत्नी का नाम नीलम है। वे दो पुत्रों और एक पुत्री के पिता थे। फिल्म के आदिगुरु कहे जाने वाले शशिधर मुखर्जी का पूरा परिवार फिल्मी रहा, किंतु उनके बेटे जॉय मुखर्जी को फिल्म अभिनेता बनना कतई पसंद नहीं था। अपने पिता के आस-पास मौजूद रहकर उनकी फिल्मी गतिविधियों को बालक जॉय मुखर्जी नजदीक से देखा करते थे। शूटिंग के तमाम दृश्य उन्हें किसी तमाशे के समान लगते थे। जॉय मुखर्जी का इरादा टेनिस खिलाड़ी बनकर अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त करने का था। जब वह बी.ए. की पढ़ाई कर रहे थे, तभी एक दिन उनके पिता ने पूछ लिया कि आखिर वह अपनी ज़िंदगी में करना क्या चाहता हैं? इस सवाल के साथ ही उन्होंने फिल्म हम हिंदुस्तानी का कांट्रेक्ट भी जॉय के सामने रख दिया। जॉय ने अनमने भाव से फिल्म यह सोचकर साइन कर ली कि चलो पॉकेटमनी के लिए अच्छी रकम मिल जाएगी। जब फिल्म का ट्रायल शो हुआ, तो प्रिव्यू थियेटर से वह भागकर घर आ गये। परदे पर अपने अभिनय तथा लुक को वह बर्दाश्त नहीं कर पाये थे।
जॉय मुखर्जी की किस्मत में टेनिस खिलाड़ी बनने की लकीरें नहीं थीं। उन्हें दो-तीन फिल्मों के और प्रस्ताव मिले। शुरू-शुरू में उन्हें झिझक रही। धीरे-धीरे उनकी फिल्मों में दिलचस्पी बढ़ती चली गई। इसका परिणाम भी सामने आ गया। वे अपनी बी.ए. की पढ़ाई में पिछड़ गए और तृतीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुए। उन्हीं दिनों बिमल राय फिल्म परख बनाने जा रहे थे। उन्होंने जॉय की कुछ फिल्में देखीं और परख के लिए नायक की भूमिका उनके सामने रखी। अपनी जरुरत से ज्यादा व्यस्तता के चलते जॉय ने मना कर दिया। बिमल राय ने बसंत चैधरी को लेकर वह फिल्म पूरी की। जॉय मुखर्जी की दूसरी फिल्म थी लव इन शिमला। इसे नए डायरेक्टर आर. के. नय्यर निर्देशित कर रहे थे। सिंधी फिल्म में काम कर चुकी अभिनेत्री साधना को नायिका के तौर पर लिया गया था। लव इन शिमला की अधिकांश शूटिंग शिमला में हुई थी। शूटिंग के दौरान आस-पास के दर्शकों की जमा भीड़ में से कुछ तानाकशी की आवाजें जॉय मुखर्जी के कानों में गूँजती थीं ये क्या हीरो बनेगा ? ये क्या एक्टिंग करेगा ? आइने में इसने अपनी सूरत देखी है? यह सब सुनकर जॉय चुप रहते थे, क्योंकि जवाब के लिए कोई सुपरहिट फिल्म उनके पास नहीं थी। लव इन शिमला फिल्म सुपरहिट साबित हुई। जॉय को स्टार का दर्जा मिल गया। साधना ने बालों की नई स्टाइल इजाद की, जो लड़कियों में साधना कट नाम से लोकप्रिय हुई। व इन शिमला के दौरान ही आर. के. नय्यर और साधना को भी प्यार हो गया और उन्होंने विवाह कर लिया।
1963 में बनी फिल्म फिर वहीं दिल लाया हूँ जॉय मुखर्जी के कॅरिअर की उल्लेखनीय फिल्म रही, जिसमें उन्होंने अपने कॅरिअर की सबसे यादगार भूमिका निभायी। देखते ही देखते जॉय सफलता की बुलंदियों पर पहुँच गए। लव इन शिमला के बाद इसे महज संयोग ही मानना होगा कि जॉय मुखर्जी को लगातार रोमांटिक फिल्में करना पड़ीं, जैसे लव इन टोकियो आशा पारेख के साथ शागिर्द, सायरा बानो के साथ एक मुसाफिर एक हसीना और एक बार मुस्करा दो। शागिर्द फिल्म के तमाम गाने शिमला में फिल्माए जाने थे। लगातार बारह दिनों तक पूरी यूनिट के लोग प्रातः जल्दी से तैयार होकर बर्फीले पहाड़ों पर पहुँचते, लेकिन बादलों की लुकाछिपी में सूर्य डूबता तैरता चलता था और शूटिंग का सारा समय बरबाद हो गया। यूनिट को इस बहाने इस खूबसूरत शहर में ठहरने और पिकनिक मनाने का मौका मिल गया। जॉय मुखर्जी की अधिकांश फिल्मों की कहानी प्रेम पर आधारित थी।
इसलिए तमाम फिल्मों को कश्मीर के सुंदर लोकेशन पर फिल्माया गया। जॉय मुखर्जी ने अपनी समकालीन जिन तारिकाओं के साथ काम किया, उनमें वैजयंती माला के प्रति हमेशा उनके मन में हमेशा आदर भाव रहा। माला सिन्हा, शर्मिला टैगोर, आशा पारेख और सायरा बानो सबसे उनके अच्छे संबंध रहे। विदेशी कलाकारों में जॉय को ग्रेगरी पैक ने आकर्षित किया। देव आनंद जिस तरह ग्रेगरी को कॉपी करते थे और अपनी हेअर स्टाइल भी वैसी ही रखते थे, कुछ इस तरह के रोल मॉडल का भाव जॉय के मन में बराबर बना रहा। अपने प्रशंसकों से लगातार मिलना या हाथ मिलाना अथवा ऑटोग्राफ देना जॉय मुखर्जी को पसंद नहीं था। उनका मानना था कि दो-चार प्रशंसकों से तो हाथ मिलाया जा सकता है, लेकिन सौ-दो सौ के साथ कोई कलाकार ऐसा नहीं कर सकता। प्रेस से भी जॉय ने दूरी बनाए रखी। वे अभिनेता नहीं बनना चाहते थे, मगर बना दिए गए। इसलिए ग्लैमर वर्ल्ड के लटकों-झटकों से अनजान थे। समय व्यतीत होता गया और धर्मेन्द्र, जितेंद्र, राजेश खन्ना अन्य अभि नेताओं के उभरने से जॉय मुखर्जी की छवि धूमिल होने लगी। अपनी गिरती लोकप्रियता के मद्देनजर जॉय चुनींदा फिल्में ही करने लगे। प्रकृति के सुंदर दृश्य तो जॉय मुखर्जी को आनंद से भर देते थे, मगर बार-बार और हर बार हीरोइन को देख नकली मुस्कराहटें चेहरे पर लाना। गाने गाना। पेड़ों के इर्दगिर्द घूमकर नाचना उन्हें कतई रास नहीं आता था।
वे जिंदगी का ट्रेक बदलना चाहते थे।
जॉय ने तब हमसाया निर्मित और निर्देशित की लेकिन यह फिल्म अच्छी तरह नहीं चली और निर्माता या निर्देशक के रूप में इनकी बाद में आने वाली फिल्मों ने भी अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। अपने भाई देब मुखर्जी और तनुजा के साथ घरेलू प्रोडकशन एक बार मुस्कुरा दो (1972) की सफलता के बावजूद जॉय फिल्म के दृश्य-पट से धूमिल होते चले गए। इनके निर्देशन में बनी छैला बाबू के साथ इन्हें अंतिम सफलता मिली। 2009 में इन्होने टेलीविजन धारावाहिक “ऐ दिल-ए-नादान” में अभिनय किया।
9 मार्च 2012 को बीमारी की वजह से उनका निधन हो गया था। सबकी मदद करने वाले जॉय मुकर्जी का जब वक्त बुरा हुआ तो उनका साथ किसी ने भी नहीं दिया था।