जयंती पर विशेष- स्वप्निल संसार’ तलत महमूद पार्श्वगायक और फिल्म अभिनेता थे। इन्होंने गजल गायक के रूप में बहुत ख्याति प्राप्त की थी। शुरुआत में उन्होंने तपन कुमार के नाम से गाने गाये थे। बेहद सौम्य और विनम्र स्वभाव के तलत महमूद के लिए संगीत एक जुनून था, जबकि उनकी अदाकारी ने उन्हें बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाकार के रूप में पहचान दिलाई। मात्र सोलह वर्ष की उम्र में ही गजल गायक के तौर पर अपने सफर की शुरुआत करने वाले तलत महमूद ने उस जमाने की जानी-मानी अभिनेत्रियों सुरैया, नूतन और माला सिन्हा के साथ भी हिन्दी फिल्मों में अभिनय किया था। उनके योगदान के लिए 1992 में उन्हें पद्मभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया।
तलत महमूद का जन्म लखनऊ के मुस्लिम परिवार में 24 फरवरी, 1924 को हुआ था। उनके पिता का नाम मंजूर महमूद था। तीन बहन और दो भाइयों के बाद तलत महमूद छठी संतान थे। घर में संगीत और कला का सुसंस्कृत परिवेश इन्हें मिला। इनकी बुआ को तलत की आवाज की लरजिश पसंद थी। भतीजे तलत महमूद बुआ से प्रोत्साहन पाकर गायन के प्रति आकर्षित होने लगे। इसी रुझान के चलते मोरिस संगीत विद्यालय, वर्तमान में भातखंडे संगीत विद्यालय, में उन्होंने दाखिला लिया। शुरुआत में तलत महमूद ने लखनऊ आकाशवाणी से गाना शुरू किया। उन्होंने सोलह साल की उम्र में ही पहली बार आकाश वाणी के लिए अपना पहला गाना रिकॉर्ड करवाया था। इस गाने को लखनऊ शहर में काफी प्रसिद्धि मिली। इसके बाद प्रसिद्ध संगीत कम्पनी एचएमवी की एक टीम लखनऊ आई और इस गाने के साथ-साथ तीन और गाने तलत से गवाए गए। इस सफलता से तलत की किस्मत चमक गई। यह वह दौर था, जब सुरीले गायन और आकर्षक व्यक्तित्व वाले युवा हीरो बनने के ख्वाब सँजोया करते थे।
तलत महमूद गायक और अभिनेता बनने की चाहत लिए 1944 में कोलकाता चले गए। उन्होंने शुरुआत में तपन कुमार के नाम से गाने गाए, जिनमें कई बंगाली गाने भी थे। वास्तव में कैमरे के सामने आते ही तलत महमूद तनाव में आ जाते थे, जबकि गायन में सहज महसूस करते थे। कोलकाता में बनी फिल्म स्वयंसिद्धा(1945) में पहली बार उन्होंने पार्श्वगायन किया। अपनी सफलता से प्रेरित होकर बाद में तलत मुंबई आ गए और संगीतकार अनिल विश्वास से मिले। शुरुआत में तो उन्हें मुंबई में कोई खास सफलती नहीं मिली, लेकिन बाद में मुंबई में प्रदर्शित फिल्म राखी (1949), अनमोल रतन (1950) और आरजू (1950) से उनके करियर को विशेष चमक मिली। फिल्म आरजू की गजल ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो…ने अपार लोकप्रियता अर्जित की। यहीं से तलत और दिलीप कुमार का अनूठा संयोग बना, जो कई फिल्मों में दोहराया गया। तलत महमूद ने हिन्दी की तैरह फिल्मों और तीन बांग्ला फिल्मों में अभिनय भी किया। उन्होंने 17 भारतीय भाषाओं में गाने गाये। मशहूर संगीतकार नौशाद ने भी तलत को फिल्म बाबुल के लिए गाने का मौका दिया।
अभिनेता दिलीप कुमार पर फिल्माया गया उनका गाना मिलते ही आंखे दिल हुआ दीवाना किसी का… बहुत सराहा गया। इसके बाद तो तलत ने लगातार कई फिल्मों में लगातार हिट गने दिए और खूब नाम कमाया। साठ का दशक आते आते तलत की आवाज की मांग घटने लगी। उसी समय फिल्म सुजाता के लिए उनका गाना जलते हैं जिसके लिए…कूब चला और पसंद किया गया। तलत महमूद ने हिन्दी फिल्मों में आखिरी बार जहाँआरा के लिए गाया। इस फिल्म का संगीत मदन मोहन ने दिया था। गजल गायकी को तलत महमूद ने सम्माननीय ऊँचाईयाँ प्रदान कीं। हमेशा उत्कृष्ट शब्दावली की गजलें ही चयनित कीं। सस्ते बोलों वाले गीतों से उन्हें हमेशा परहेज रहा। यहाँ तक कि गीतकार और संगीतकार उन्हें रचना देने से पहले इस बात को लेकर आशंकित रहते थे कि तलत उसे पसंद करेंगे या नहीं। गजल के आधुनिक स्वरूप से वे काफी निराश थे। विशेषकर बीच में सुनाए जाने वाले चुटकुलों पर उन्हें सख्त एतराज था। बतौर तलत महमूद के कथनानुसार- गजल प्रेम का गीत होती है, हम उसे बाजारू क्यों बना रहे हैं। इसकी पवित्रता को नष्ट नहीं किया जाना चाहिए। मदन मोहन, अनिल विश्वास और खय्याम की धुनों पर सजे उनके तराने बरबस ही दिल मोह लेते हैं। मुश्किल से मुश्किल बंदिशों को सूक्ष्मता से तराश कर पेश करना उनकी खासियत थी।
तलत महमूद पहले भारतीय गायक थे, जिन्होंने 1956 में विदेश में (पूर्वी अफ्रीका में) कार्यक्रम दिया था। इसके अलावा उन्होंने लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल, अमेरिका के मेडिसन स्क्वेयर गार्डन और वेस्टइंडीज के जीन पियरे काम्प्ले क्स में भी कार्यक्रम दिए। 1986 में तलत महमूद ने आखिरी रिकार्डिंग गजल एल्बम आखिरी साज उठाओ के लिए की थी। संगीत निदेशक नौशाद ने एक बार कहा था कि तलत महमूद के बारे में मेरी राय बहुत ऊँची है। उनकी गायिकी का अंदाज अलग है। जब वह अपनी मखमली आवाज से अनोखे अंदाज में गजल गाते हैं, तो गजल की असली मिठास का अहसास होता है। उनकी भाषा पर अच्छी पकड़ है और उन्हें पता है कि किस शब्द पर जोर देना है। तलत के होंठो से निकले किसी शब्द को समझने में कठिनाई नहीं होती।
निर्देशक और निर्माता महबूब खान जब कभी उनसे मिलते तो तलत के गले पर उंगली रखते और उनसे कहते खुदा का नूर तुम्हारे गले में है। जाएँ तो जाएँ कहाँ (टैक्सी ड्राइवर) सब कुछ लुटा के होश (एक साल) फिर वही शाम, वही गम(जहाँआरा) मेरा करार ले जा (आशियाना) शाम-ए-गम की कसम (फुटपाथ) हमसे आया न गया (देख कबीरा रोया) प्यार पर बस तो नहीं (सोने की चिडिया) जिंदगी देने वाले सुन (दिल-ए-नादान) अंधे जहान के अंधे रास्ते (पतिता) इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा (छाया) आहा रिमझिम के ये (उसने कहा था) दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है (मिर्जा गालिब) मालिक 1958 सोने की चिडिया 1958 एक गाँव की कहानी 1957 दीवाली की रात 1956 रफ्तार 1955 डाक बाबू 1954 वारिस 1954 दिल-ए-नादान 1953 आराम 1951 सम्पत्ति 1949 तुम और मैं 1947 राजलक्ष्मी 1945।
सम्मान तथा पुरस्कार पद्मभूषण 1992 राष्ट्रीय लता मंगेशकर सम्मान 1995-1996 तलत महमूद ने अपने लम्बे कैरियर में हिन्दी समेत विभिन्न भाषाओं में करीब 800 गीत गाए, जिनमें से उनके कई गीत आज भी लोगों के जहन में ताजा हैं। साठ के दशक में फिल्मी गीतों के अंदाज में आए बदलाव से तलत महमूद जैसे गायक तालमेल नहीं बैठा सके और उनका कैरियर उतार पर आ गया। फिल्मी गीतों में मुहम्मद रफी और मुकेश जैसे नए गायकों के छा जाने से महमूद का दायरा सीमित हो गया। मखमली आवाज के जरिए लोगों को अर्से तक अपना दीवाना बनाने वाले इस कलाकार ने 9 मई, 1998 को दुनिया से विदा ली।एजेन्सी।