1930 में आज ही के दिन यानी 12 मार्च को महात्मा गांधी ने दांडी मार्च की शुरुआत की थी। इसका मुख्य उद्देश्य था- “अंग्रेज़ों द्वारा बनाये गए ‘नमक क़ानून को तोड़ना’।” गाँधी जी ने 78 लोगों के साथ जिनमें वेब मिलर भी थे के साथ साबरमती आश्रम से 358 कि.मी. दूर स्थित दांडी के लिए प्रस्थान किया। 24 दिन बाद 6 अप्रैल, 1930 को दांडी पहुँचकर उन्होंने समुद्र तट पर नमक क़ानून को तोड़ा। महात्मा गाँधी ने दांडी यात्रा के दौरान सूरत, डिंडौरी, वांज, धमन के बाद नवसारी को यात्रा के आखिरी दिनों में अपना पड़ाव बनाया था। यहाँ से कराडी और दांडी की यात्रा पूरी की थी। नवसारी से दांडी का फासला लगभग 13 मील का है।
11 मार्च 1930 को गाँधी जी ने अपना वसीयतनामा कर अपनी इच्छा जताई कि आंदोलन लगातार चलता रहे, इसके लिए सत्याग्रह की अखंड धारा बहती रहनी चाहिए, क़ानून भले ही भंग हो, पर शांति रहे। लोग स्वयं ही नेता की जवाबदारी निभाएँ। 11 मार्च की शाम की प्रार्थना नदी किनारे रेत पर हुई, उस समय गाँधी जी ने कहा था के – मेरा जन्म ब्रिटिश साम्राज्य का नाश करने के लिए ही हुआ है। मैं कौवे की मौत मरुँ या कुत्ते की मौत, पर स्वराज्य लिए बिना आश्रम में पैर नहीं रखूँगा।
दांडी यात्रा की तैयारी देखने के लिए देश-विदेश के पत्रकार, फोटोग्राफ़र अहमदाबाद आए थे। आजादी के आंदोलन की यह महत्वपूर्ण घटना ‘वॉइस ऑफ़ अमेरिका’ के माध्यम से इस तरह प्रस्तुत की गई कि आज भी उस समय के दृश्य, उसकी गंभीरता और जोश का प्रभाव देखा जा सकता है। अहमदाबाद में एकजुट हुए लोगों में यह भय व्याप्त था कि 11-12 की दरम्यानी रात में गाँधी जी को गिरफ़्तार कर लिया जाएगा। गाँधी जी की जय और ‘वंदे मातरम्’ के जयघोष के साथ लोगों के बीच गाँधी जी ने रात बिताई और सुबह चार बजे उठकर सामान्य दिन की भाँति दिनचर्या पूर्ण कर प्रार्थना के लिए चल पड़े।
प्रार्थना पूरी करने के बाद जब सभी लोग यात्रा की तैयारी कर रहे थे, इस बीच अपने कमरे में जाकर गाँधी जी ने थोड़ी देर के लिए एक झपकी ली। लोगों का सैलाब आश्रम की ओर आ रहा था।
अहमदाबाद के क्षितिज में मंगलप्रभात हुआ, भारत की ग़ुलामी की जंजीरें तोड़ने के लिए भागीरथ प्रयत्न शुरू हुए। 12 मार्च 1930 की सुबह महात्मा गाँधी के नेतृत्व में 78 सत्याग्रहियों ने जब यात्रा शुरू की, तब किसी को बुद्ध के वैराग्य की, तो किसी को गोकुल छोड़कर जाते हुए कृष्ण की, तो किसी को मक्का से मदीना जाते हुए पैगम्बर की याद आई। गाँधी जी के तेेजस्वी और स्फूर्तिमय व्यक्तित्व के दर्शन मात्र से स्वतंत्रता के स्वर्ग की अनुभूति करते लाखों लोगों की कतारों के बीच दृढ़ और तेज गति से कदम बढ़ाते गाँधी जी और 78 सत्याग्रहियों का दल अन्याय, शोषण और कुशासन को दूर करने, मानवजाति को एक नया शस्त्र, एक अलग ही तरह की ऊर्जा और अमिट आशा दे रहा था। सोशल मीडिया से