मां, सास, दादी, नानी केसे रोल करने वाली दीना पाठक को हिंदी फिल्मों के दर्शकों ने कुछ नहीं गिना. लेकिन हकीकत ये है कि शिक्षा और एक्टिंग क्षमताओं के मामले में ये अभिनेत्रियां हीरो लोगों से कई गुना ज्यादा काबिलियत वाली रही हैं। ऐसा ही नाम है दीना पाठक।
दीना पाठक का जन्म गुजरात के अमरेली में 4 मार्च, 1922 को हुआ था और उनके पिताजी सिविल इन्जिनीयर थे। उनकी परवरिश पूना और बम्बई अब मुम्बई में भी हुई थी। दीना गांधी की स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सेदारी का आलम ये था कि बम्बई की सेंट ज़ेवीयर्स कालिज को उन्हें निकाल देना पड़ा था। मार्च ‘79 के ‘फ़िल्मफ़ेयर’ में दीना पाठक ने इस बात को बताते हुए कहा था कि उन्होंने दूसरी कालिज में पढ़ाई कर अपनी बी.ए. की उपाधि प्राप्त की थी। देश को स्वतंत्रता मिलते ही ‘स्ट्रीट प्ले’ कार्यक्रम बंद हो गये। उनके माता-पिता ने उसका विरोध तो नहीं किया; मगर कहा, ‘एक बार शादी कर लो, फिर जो चाहे करो’। तब दीना गांधी ने कांग्रेस कार्यकर्ता रमेश संघवी से शादी की। परंतु, ‘सिने ब्लिट्ज’ सामयिक को अगस्त 1995 के अंक में अपनी ज़िन्दगी के बारे में विस्तार से बताते हुए दीना जी ने जानकारी दी थी कि दोनों के रास्ते अलग होने की वज़ह से शादी के एक ही साल में वे अलग हो गये थे फिर उनकी दूसरी शादी इस बीच बलदेव पाठक से हुई और फिर वो दो बेटीयों सुप्रिया और रत्ना की माता भी बन चुकी थीं। वर्तमान में सुप्रिया पाठक ने पंकज कपूर के साथ और रत्ना पाठक ने नसीरुद्दीन शाह से शादी कर अपना घर तो बसाया ही है; साथ ही अपनी माता की तरह अभिनय में भी व्यस्त रहती हैं।
दीना पाठक ने अपने करियर की शुरुआत थिएटर से की जो वो अपने स्कूल डेज ही करती आ रही थी और शादी के अलगाव के बाद दीना ने अपना पूरा ध्यान इण्डियन पिपल्स थियेटर एसोसीएशन ‘इप्टा’ में लगा दिया। दीना जी का नाटक ‘मेना गुर्जरी’ उन दिनों काफी लोकप्रिय था। वे गुजरात के लोकसंगीत भवाई की अच्छी कलाकार ही नहीं, उस कला की सुरक्षा में भी इतनी ही लगी रहती थी। उनका ग्रुप जहाँ अपनी रिहर्सल करता था, उसी के पडोस में मोहन स्टूडियो हुआ करता था। इसलिए ग्रुप के कलाकार भी वहाँ शूटिंग देखने जाया करते थे। वहाँ बिमल राय के सभी सहायकों से दीना मिलती थीं; जिनमें ऋषिकेश मुखर्जी, गुलज़ार, बासु भट्टाचार्य भी शामिल थे। उनमें से बासु भट्टाचार्य ने ‘उसकी कहानी’ फ़िल्म में काम देकर हिन्दी फ़िल्मों का सफर प्रारंभ करवाया। परंतु, उनका करियर सही मायनों में शुरू हुआ, बासु चटर्जी की 1966 में आई ‘सारा आकाश’ से।
दीना पाठक की प्रमुख फ़िल्मों में ‘सात हिन्दुस्तानी’, ‘आप की कसम’, ‘सत्यकाम’, ‘अनुरोध’, ‘जल बिन मछली नृत्य बिन बिजली’, ‘देवी’, ‘आविष्कार’, ‘किनारा’, ‘चितचोर’, ‘मौसम’, ‘सच्चा झूठा’, ‘किताब’, ‘घरौंदा’, ‘मीरा’, ‘बदलते रिश्ते’, ‘ड्रीम गर्ल’, ‘भूमिका’, ‘भव नी भवाई’, ‘विजेता’, ‘थोड़ी सी बेवफाई’, ‘प्रेम रोग’, ‘प्रेम तपस्या’, ‘उमराव जान’, ‘नरम गरम’, ‘अर्थ’, ‘वो सात दिन’, ‘होली’, ‘अनकही’, ‘मिर्च मसाला’, ‘इजाज़त’, ‘सनम बेवफा’, ‘सौदागर’, ‘आंखें’, ‘सबसे बड़ा खिलाड़ी’, ‘याराना’, ‘आशिक’, ‘तुम बिन’, ‘लज्जा’, ‘एक चादर मैली सी’, ‘परदेस’, ‘देवदास’ और 2003 में आई ‘पिंजर’ तक का उल्लेख इंटरनेट से मिलता है।
अपने लंबे करियर में दीना पाठक ने अमरीश पुरी से लेकर ओम पुरी और अशोक कुमार से अमिताभ बच्चन तक के हर पीढ़ी के सभी महारथी कलाकारों के साथ काम किया था। उनके निर्देशकों ने भी अपनी फ़िल्मों में उन्हें बार-बार दोहराया था, फिर वो ऋषिकेश मुखर्जी और बासु चटर्जी हों या गुलज़ार तथा केतन मेहता हो। ऐसी अत्यंत प्रतिभावंत अभिनेत्री का देहांत 11 अक्तूबर 2002 के दिन हो गया। मगर उनकी यादगार फ़िल्मों के अपने अभिनय से दीना पाठक आज भी ज़िन्दा ही हैं।एजेन्सी।