पुण्य तिथि पर विशेष- महान शायर अल्लामा मोहम्मद इकबाल ने अपनी अधिकांश रचनाएँ फारसी में की हैं। सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा यह मशहूर गीत इकबाल का ही लिखा हुआ है। मोहम्मद इकबाल का यह मत था कि इस्लाम धर्म रूहानी आजादी की जद्दोजहद के जज्बे का अलमबरदार है, और सभी प्रकार के धार्मिक अनुभवों का निचोड़ है। वह कर्मवीरता का एक जीवन्त सिद्धान्त है, जो जीवन को उद्देश्यपूर्ण बनाता है।
मोहम्मद इकबाल का जन्म 9 नवम्बर, 1877 को पंजाब के सियालकोट (अब पाकिस्तान) में हुआ था। इनके पिता का नाम शेख नूर मोहम्मद था, जो कि पेशे से दर्जी थे। औपचारिक रूप से ये शिक्षित भी नहीं थे, लेकिन स्वभाव से ये बहुत ही धार्मिक व्यक्ति थे। इकबाल की माता का नाम इमाम बीबी था, जो बहुत ही विनम्र स्वभाव की महिला थीं। ये हमेशा ही गरीबों तथा अपने पड़ोसियों की मदद और उनकी समस्याओं के समाधान के लिए तत्पर रहती थीं। 9 नवम्बर, 1914 ई. को इमाम बीबी को निधन सियोलकोट में हो गया। मोहम्मद इकबाल ने तीन विवाह किये थे। इनका प्रथम विवाह करीम बीबी के साथ हुआ, जो एक गुजराती चिकित्सक खान बहादुर अता मोहम्मद खान की पुत्री थीं।
इससे इकबाल एक पुत्री मिराज बेगम और पुत्र आफताब इकबाल के पिता बनें। इसके बाद इकबाल ने दूसरा विवाह सरदार बेगम के साथ किया, इससे इन्हें पुत्र जाविद इकबाल की प्राप्ति हुई। दिसम्बर 1914 में इकबाल ने तीसरा विवाह मुख्तार बेगम के साथ किया। इकबाल ब्रिटेन और जर्मनी में पढ़ने के बाद हिन्दुस्तानी सरजमीं पर लौटे आये थे। आज के दौर में पूरे मुल्क में भ्रष्टाचार और दूसरी मुश्किलात को लेकर जो आवामी जंग छिड़ी हुई है, उसका अंदेशा इकबाल ने पहले ही लगा लिया था और लिखा था
वतन की फिक्र कर नादां, मुसीबत आने वाली है,तेरी बरबादियों के चर्चे हैं आसमानों में,ना संभलोगे तो मिट जाओगे ए हिंदोस्तां वालों तुम्हारी दास्तां भी न होगी दास्तानों में।
इस्लाम ही एकमात्र धर्म है, जो सच्चे जीवन मूल्यों का निर्माण कर सकता है और अनवरत संार्ष के द्वारा प्रकृति के ऊपर मनुष्य को विजयी बना सकता है। उनकी रचनाओं ने भारत के मुसलमान युवकों में यह भावना भर दी कि, उनकी एक पृथक भूमिका है। इकबाल ने ही सबसे पहले 1930 में भारत के सिंध के भीतर उत्तर-पश्चिम सीमाप्रान्त, बलूचिस्तान, सिंध तथा कश्मीर को मिलाकर एक नया मुस्लिम राज्य बनाने का विचार रखा, जिसने पाकिस्तान को जन्म दिया।
पाकिस्तान शब्द इकबाल का गढ़ा हुआ नहीं है। इसे 1933 में रहमत अली ने गढ़ा था। इकबाल की काव्य प्रतिभा से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार ने इन्हें सर की
उपाधि प्रदान की। मशहूर शायर मनुव्वर राना का कहना है कि इकबाल के जेहन में हमेशा वह हिन्दुस्तान था, जो किसी सरहद में नहीं बँटा था। वह कहते हैं कि ‘जिस तरह भगत सिंह के हिन्दुस्तान में पूरा हिन्दुस्तान शामिल था, उसी तरह इकबाल के हिन्दुस्तान में भी पूरा हिन्दुस्तान शामिल था।’
वह शायर कम और पीर ज्यादा बन गये हैं। ऐसा क्या हुआ कि जहाँ एक ओर उन्होंने लिखा ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ तो वहीं दूसरी ओर एक अलग मुस्लिम राज्य बनाने का विचार भी उन्होंने ही रखा। वहाँ उनका लिखा ‘लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी’, कौमी तराना बन गया। इनके द्वारा लिखी गईं रचनाएँ मुख्य रूप से फारसी में हैं। इनकी अंग्रेजी में केवल एक पुस्तक है, जिसका शीर्षक है, सिक्स लेक्चर्स ऑन दि रिकन्सट्रक्शन ऑफ रिलीजस थॉट (धार्मिक चिन्तन की नवव्याख्या के सम्बन्ध में छह व्याख्यान) है। निधन मोहम्मद इकबाल का निधन 21 अप्रैल, 1938 को हुआ। सोशल मिडिया से