राकेश अचल। डॉ भीमराव आंबेडकर की जयंती हो तो बात कैसे बनेगी। बाबा की जयंती पर अब तक समागम महू में होते थे लेकिन इस बार सत्तारूढ़ दल को बाबा की जरूरत ग्वालियर-चंबल संभाग में ज्यादा है इसलिए ये समागम ग्वालियर में होगा । इस समागम के लिए बाबा के अनुयायियों को पूरे प्रदेश से ढोकर लाने की जरूरत भी है और इसके लिए सरकार ने हमेशा की तरह अपने परिवहन विभाग को जिम्मेदारी सौंपी ,लेकिन परिवहन विभाग के ईमानदार आयुक्त ने इस काम के लिए सरकार से 6 करोड़ रूपये की मांग कर सब रायता बगरा दिया।
प्रदेश में हर राजनीतिक कार्यक्रम के लिए भीड़ जुटाने का जिम्मा आदिकाल से परिवहन विभाग का रहा है । चाहे किसी भी दल की सरकार रही हो भीड़ जुटाने का काम परिवहन विभाग को ही करना होता है । परिवहन विभाग इस कला में पारंगत है । परिवहन विभाग के पास यात्री वाहनों का अधिग्रहण करने का विशेषाधिकार है ,इसलिए वो आसानी से हजार,दो हजार यात्री वाहन पलक झपकते ही जुटा देता है। इस बार विभाग ने पारदर्शिता का परिचय देते हए सरकार से इस काम के लिए बाकायदा बजट की मांग कर दी है ,जो पहले कभी सार्वजनिक नहीं होती थी। परिवहन महकमे को इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए 6 करोड़ 18 लाख रूपये चाहिए,इसमें से 4 करोड़ 94 लाख 40 हजार रूपये पेशगी के रूप में मांगे गए हैं।
डॉ भीमराव अम्बेडकर जयंती के लिए भीड़ जुटाना टेढ़ी खीर है ,इसके लिए कम से कम 2500 यात्री वाहन चाहिए। चलिए वाहन तो मिल जायेंगे लेकिन इनमें ईंधन डालने और ड्रायवर की व्यवस्था करने के लिए भी तो धन चाहिए,ये रकम कोई परिवहन आयुक्त अपनी जेब से तो खर्च नहीं कर सकता ! फिर भापुसे का वरिष्ठ अधिकारी जो की ईमानदार हो तो ये काम और कठिन है। कोई प्रमोटी भापुसे अधिकारी होता तो ये जोखिम भी ले लेता ,क्योंकि उसके लिए इतनी रकम जुटाना कोई कठिन काम न था ,लेकिन परिवहन आयुक्त एसके झा ने सरकार को पत्र लिखकर सब खेल उजागर कर दिया। अब सवाल ये है कि सरकार इतनी बड़ी रकम किस मद से परिवहन विभाग को दे ?
भीड़ जुटाना सरकार की मजबूरी है,उसे प्रदेश के खासकर ग्वालियर चंबल संभाग के दलितों को ये सन्देश देना है कि सरकार उनके साथ है ,इसलिए उन्हें भी छह माह बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में सरकार के साथ रहना चाहिए। इस समागम में प्रदेश के माननीय राज्यपाल महोदय मुख्य अतिथि होंगे। राज्यपाल के लिए भीड़ जुटाना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है। चलिए सरकार भीड़ जुटाने के लिए परिवहन विभाग को छह करोड़ रूपये दे भी दे तो इस भीड़ के भोजन के लिए रकम कौन देगा । परम्परानुसार ऐसी भीड़ के भोजन की व्यवस्था नागरिक आपूर्ति विभाग करता आया है । ऐसे कार्यक्रमों के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग से भी बच्चों और महिलाओं के पोषण आहार का हिस्सा माँगा जाता है ,गनीमत ये है कि अभी तक इन विभागों ने खुलके सरकार से रकम की मांग नहीं की।
भीड़ जुटाना सरकारों का लोकतांत्रिक अधिकार है। इस अधिकार का इस्तेमाल करने से कोई भी सरकार पीछे नहीं हटती। कांग्रेस ने भाजपा को भीड़ जुटाने का ये अचूक मन्त्र सिखाया है। पहले का जमाना और था । उस जमाने में भीड़ नेताओं के नाम सुनकर अपने आप जुट जाती थी । अब जमाना बदल गया है । भीड़ बड़े से बड़े नेता के नाम पर एकत्र नहीं होती । अब भीड़ भी नखरे करने लगी है। भीड़ का ठेका पंचायत स्तर से शुरू होता है । पंच,सरपंच,विधायक और मंत्री सबका अलग-अलग लक्ष्य रखा जाता है । सबको उसकी हैसियत के मुताबिक़ वाहन और भीड़ के लिए भोजन मुहैया कराया जाता है। सब अपना-अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए भीड़ को तरह-तरह के आश्वासन ,लालच और धमकियां देकर जुटाया जाता है। बाबा साहब इसे रोक नहीं सकते, कोई भी इसे रोक नहीं सकता। किसी को इसे रोकना भी नहीं चाहिए। देश में यदि लोकतंत्र को ज़िंदा रखना है तो भीड़तंत्र को भी ज़िंदा रखना ही होगा । भले ही इस पर कितना ही पैसा खर्च हो जाये।
भीड़ बाबा साहब अम्बेडकर के नाम पर जुटाई जाए या माननीय मोदी जी के नाम पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। फर्क तो तब पड़ता है जब भीड़ नहीं आती । बसें खाली खड़ी रह जाती हैं। बासी पूड़ी-सब्जी खाने वाले नहीं मिलते। ऐसा अनेक मौकों पर हुआ है। इसलिए अब भीड़ जुटाना असाधारण काम समझा जाने लगा है। सरकार भीड़ जुटाने के लिए संयुक्त रूप से काम करती है । सरकार के तमाम विभाग मिलजुलकर भीड़ जुटाते हैं और किसी को पता भी नहीं चलता ,लेकिन पहली बार परिवहन आयुक्त की चिठ्ठी ‘वायरल’ होने से पूरे प्रदेश को ही नहीं बल्कि पूरे देश को भीड़ जुटाने की इस गोपनीय तकनीक का पता पूरे देश को चल गया है। गोपनीयता भांग करने पर किसके खिलाफ सरकार क्या कार्रवाई करेगी,कोई नहीं जानता ?
अतीत में हमने जवाहर लाल नेहरू,इंदिरा गाँधी और जय प्रकाश नारायण के नाम पर भीड़ को स्वस्फूर्त रूप से जुटते देखा है ,लेकिन अब हमें शक होने लगा है कि पहले भी तो कहीं भीड़ सरकारें ही तो नहीं जुटाती रहीं ! प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के लिए तो सरकार भीड़ जुटा सकती है किन्तु विपक्षी नेताओं के लिए सरकार क्यों भीड़ जुटाने चली ? यानि भीड़ बिना सरकारी संसाधनों के भी अपने खर्च से जुटाई जाती रही होगी। वामपंथियों और समाजवादियों के अलावा बसपाइयों को तो हमने रैलियों में बिना टिकिट रेलों से यात्रा करते देखा है ,लेकिन कांग्रेसी और भाजपाई बिना टिकिट कोई यात्रा नहीं करते । अब जमाना बदल गया है, भीड़ भी वातानुकूलित रेलों और बसों की मांग करने लगी है आयोजकों को भीड़ की बात मानना पड़ती है।
लोकतंत्र के लिए भीड़तंत्र को ज़िंदा रखते हुए सरकारें बहुत ही परोपकार का काम कर रहीं हैं ,इसलिए किसी को भी इस भीड़ जुटाओ अभियान की निंदा नहीं करना चाहिए ,बल्कि विपक्ष को तो भीड़ जुटाने के लिए सरकार से राज सहायता की मांग करना चाहिए । आखिर भीड़ की जरूरत तो सबको है । अम्बेडकरवादियों को भी और गैर अंबेडकरवादियों को भी। भीड़ एक हकीकत है इसे अफ़साना नहीं कहा जा सकता। जिस मुल्क में भीड़ नहीं वहां लोकतंत्र नहीं। हम आभारी है मध्य्प्रदेश के परिवहन आयुक्त के कि उन्होंने जनता को भीड़ जुटाने की एमआरपी से वाकिफ कराया। नौकरशाही में इतना साहस तो होना ही चाहिए अन्यथा सब गुड़,गोबर हो जाएगा। बिना रीढ़ की नौकरशाही लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। पदोन्नति प्राप्त भापुसे और भाप्रसे के अधिकारियों के पास रीढ़ की हड्डी नहीं होती। झा के स्थान पर यदि कोई प्रमोटी पुलिस वाला होता तो शायद भीड़ जुटाने के एवज में सरकार से पैसा न माँगता।[ प्रमोटी अफसरों में भी हालांकि कुछ अपवाद होते हैं क्योंकि उनके पास भी रीढ़ की हड्डी होती है ]
मुश्किल ये है की भीड़ न जुटे तो इलाके का कलेक्टर बलि चढ़ा दिया जाता है। यानि भीड़ जुटाने का असली दारोमदार कलेक्टर पर होता है। लेकिन कलेक्टर कितना कलेक्ट कर सकता है ? भीड़ को ‘ कलेक्ट ‘ करने कि लिए उसे भी सबकी जरूरत पड़ती है। एक जमाने में हमने ऐसे कलेक्टर भी देखे हैं जो संभाग आयुक्त की हैसियत रखते थे और पूरे संभाग से भीड़ जुटाने का कारनामा कर दिखाते थे। लेकिन अब पहले जैसे कलेक्टर नहीं है। अब तो भीड़ न जुटा पाने वालों को कलेक्टर बनाया ही नहीं जाता । गलती से बना भी दिया जाये तो दो दिन में गलती सुधर कर वहां भीड़ विशेषज्ञ कलेक्टर बैठा दिया जाता है।
बाबा साहेब की जयंती पर मै तो अपने साधन से जाऊंगा ,मै सरकार के भरोसे नहीं रहता । हालाँकि सरकार हम जैसे पत्रकारों को भीड़ ही मानती है और लाने-ले जाने के लिए वातानुकूलित कारों का इंतजाम करती है । उच्च श्रेणी के हमारे बिरादर हवाई जहाज और वातानुकूलियत रेलों से भी ऐसे आयोजनों में मंगाए जाते हैं। एक जमाने में हमें भी मुफ्तखोरी की लत थी ,लेकिन अब इस लत से हमें आजादी मिल चुकी है। क्योंकि अब हम मन के मालिक के हैं।
