जयंती पर विशेष-महाराजा करणी सिंह को निशानेबाज़ी का जनक माना जा सकता है। मेजर जनरल हिज हाईनेस डॉक्टर करणी सिंह बीकानेर के महाराजा थे। उनके राजा होने के कारण उनका हर अंदाज राजसी था। उनके विविध प्रकार के शौक थे। राजा कर्णी सिंह की अनेकों उपलब्धियां थीं। उनका व्यक्तित्व व अंदाज भी बिल्कुल शाही था। वह पहले निशानेबाज़ थे, जिन्हें 1961 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ देकर सम्मानित किया गया था। 21 अप्रैल 1924 को बीकानेर के रियासत में राजकुमार करणी सिंह के रूप में पैदा हुए।
महाराजा करणी सिंह राजपूत शासकों में 23वें शासक थे । उनके लिए हथियारों को पकड़ना या कुशलता के साथ चलाना एक सामान्य बात थी । उनके लिए कोई बंदूक या हथियार चलाना एक ऐसा स्वाभाविक कार्य था जैसे किसी व्यक्ति के लिए चलना । महाराजा करणी सिंह ने निशानेबाजी की शुरुआत अपने पिता (स्वर्गीय) महाराजा सादूल सिंह की देखरेख में की । उन्होंने अपने पिता से बन्दूकों के बारे में हर प्रकार की जानकारी हासिल की ।
करणी सिंह की शिक्षा दिल्ली तथा बम्बई अब मुम्बई से हुई । कर्णी सिंह ने बम्बई विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की डिग्री भी हासिल की । उनकी थीसिस का विषय था- ”द रिलेशन हाउस ऑफ बीकानेर विद सेंट्रल पावर्स फ्राम 1465 टू 1949” । करणी सिंह ने अपने निशानेबाजी के यादगार लम्हों को पुस्तक के रूप भी प्रस्तुत किया, जिसका नाम है ”फ्राम रोम टू मास्को” ।
करणी सिंह को बदूक का पहला अनुभव मात्र 13 वर्ष की आयु में हुआ, जब उन्होंने एक चिड़िया को अपने सही निशाने से मार गिराया । इस चिड़िया को मारने से उनकी निशानेबाजी की भीतरी चाहत को जहाँ बहुत संतुष्टि मिली, वहीं भावनात्मक रूप से वह बहुत आहत हुए । इसके पश्चात् उन्होंने निश्चय किया कि वह केवल शौक या आनंद के लिए निशानेबाजी करके किसी पक्षी या जानवर को नहीं मारेंगे । तब से उन्होंने अपना इरादा केवल निशानेबाजी का कर लिया ।
महाराजाकरणी सिंह ने मिट्टी के नकली कबूतरों की खूब निशानेबाजी की । उनके शूटिंग के अतिरिक्त विविध शौक थे । वह गोल्फ खेलने के शौकीन रहे, वह कलाकार थे, वह पायलट भी थे । उन्हें फोटोग्राफी का भी बेहद शौक था । वह 25 वर्षों तक संसद सदस्य भी रहे । यह सदस्यता 1952 से 1977 तक रही ।
करणी सिंह ने ‘क्ले पीजन ट्रैप’ प्रतियोगिता तथा स्कीट में 17 वर्षों तक राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती । उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हर स्तर की प्रतियोगिताओं में देश का प्रतिनिधित्व किया और विश्व चैंपियनशिप में ‘रजत पदक’ भी जीता ।
करणी सिंह देश के ऐसे पहले शूटर हैं जिन्हें पहली बार ‘अर्जुन पुरस्कार’ देकर सम्मानित किया गया । यह पुरस्कार उन्हें 1961 में प्रदान किया गया । उनकी पुत्री राज्यश्री कुमारी ने भी अपने पिता के शूटिंग के शौक को अपनाया महाराजा के तीन बच्चों में से दूसरी राज्यश्री ने अनेक पुरस्कार जीते और उन्हें भी 1968 में निशानेबाजी के लिए ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया । बीकानेर हाउस सदैव ही लोकप्रिय शाही खेलों से जुड़ा रहा । महाराजा गंगा सिंह तथा महाराजा सादूल सिंह के समय में यहां पोलो खेला जाता रहा । शाही परिवार ने पोलो खेलने के लिए अपने पोलो-घोड़े रखे हुए थे । इस शाही परिवार के पास पिस्टल, राइफल तथा बन्दूकों का बड़ा कीमती संग्रह था । करणी सिंह के पास कारों का बड़ा संग्रह था । करणी सिंह ने अपने दादा महाराजा गंगा सिंह के साथ द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मध्य पूर्व देशों के विविध युद्ध फ्रंट की सैर भी की थी । उन्हें कई मिलिट्री अवॉर्ड भी प्रदान किए गए थे ।
उपलब्धियां :
महाराजा करणी सिंह भारत में प्रतियोगात्मक निशानेबाजी के अग्रज थे । वह 25 वर्षों तक (1952-1977) ससंद के सदस्य रहे थे।|वह कलाकार, पायलट, फोटोग्राफर गोल्फर तथा शूटर थे । उन्होने बम्बई विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की डिग्री हासिल की थी । उन्होंने विश्व चैंपियनशिप निशानेबाजी में रजत पदक भी जीता था । उन्होने 17 वर्षों तक ‘क्ले पीजन ट्रेप’ में राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती । वह भारत के पहले ऐसे निशानेबाज हैं जिन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ (1961) दिया गया। उनकी पुत्री राज्यश्री कुमारी भी अच्छी निशानेबाज रहीं और उन्हें 1968 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ दिया गया था।1980 में महाराजा करणी सिंह ने अपनी पिछली ओलंपिक खेलों में भाग लिया, 4 सितंबर 1988 को उनका निधन हो गया। एजेन्सी।