जयंती पर विशेष- काज़ी नज़रुल इस्लाम प्रसिद्ध बांग्ला कवि, संगीत सम्राट, संगीतज्ञ और दार्शनिक थे। काजी नजरुल इस्लाम को ‘विद्रोही कवि’ कहा जाता है। उन्हें 1960 में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया था।नज़रुल ने लगभग तीन हज़ार गानों की रचना की और साथ ही अधिकांश को स्वर भी दिया।इनके संगीत के आजकल ‘नज़रुल संगीत’ या “नज़रुल गीति” नाम से जाना जाता है। वे बांग्ला भाषा के बड़े साहित्यकार, देशप्रेमी तथा बांग्लादेश के राष्ट्रीय कवि हैं। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश दोनों ही जगह उनकी कविता और गीतों की व्याप्ति है। वह सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल थे। 1922 में काज़ी नज़रुल इस्लाम की कविता ‘विद्रोही’ काफी लोकप्रिय हुई थी, जिसने उन्हें उपनाम दिया था। कविता में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ बागी तेवर थे। इस कविता का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ। ब्रिटिश हुकूमत की आंखों में वह हमेशा गड़ते रहे।
काज़ी नज़रुल इस्लाम का जन्म 24 मई, 1899 को बंगाल के वर्धमान जिले में आसनसोल के पास चुरुलिया गांव में गरीब मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा धार्मिक के रूप में हुई। किशोरावस्था में विभिन्न थिएटर दलों के साथ काम करते-करते उन्होने कविता, नाटक एवं साहित्य की पढ़ाई की।
नजरूल ने चाचा फजले करीम की संगीत मंडली के साथ थे वह मंडली पूरे बंगाल में घूमती और शो करती। नजरूल ने मंडली के लिए गाने लिखे। इस दौरान बांग्ला भाषा को लिखना सीखा। संस्कृत भी सीखी और उसके बाद कभी बांग्ला, तो कभी संस्कृत में पुराण पढ़ने लगे।इसका असर उनके लिखे में नजर आने लगा। उन्होंने पौराणिक कथाओं पर आधारित ‘शकुनी का वध’, ‘युधिष्ठिर का गीत’, ‘दाता कर्ण’ नाटक लिखे।
हिंदू लड़की से की शादी
काजी नजरूल इस्लाम ने तब हिंदू लड़की प्रमिला से शादी की थी, जिसका काफी विरोध हुआ था। प्रमिला ब्रह्म समाज से आती थीं। कई मजहब के ठेकेदारों ने नजरूल से कहा कि प्रमिला को धर्म परिवर्तन करना होगा लेकिन नजरूल ने मना कर दिया। उनके जीवन के आखिरी दिन कष्ट में बीते। उन्हें पागलखाने में भर्ती कराना पड़ा। 1971 में बांग्लादेश की आजादी के बाद उन्हें बांग्लादेश ने ‘राष्ट्रकवि’ घोषित किया। 29 अगस्त, 1976 को उनका देहांत हो गया। सोशल मिडिया से