आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री हिन्दी साहित्यकार, शिक्षविद तथा राजनेता थे। वे उत्तर प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल भी रहे। आपने भारत भर के विश्वविद्यालयों एवं साहित्यिक संस्थानों की व्याख्यानमालाओं में सक्रिय भाग लिया। काव्य पाठन, भ्रमण, शिक्षा साहित्य तथा दर्शन आदि के क्षेत्रों में भी उनकी विशेष रूचि थी। केवल भारत ही नहीं, तो सम्पूर्ण विश्व में हिन्दी के श्रेष्ठ विद्वान के नाते वे प्रसिद्ध थे। अपने भाषण में उचित समय और उचित स्थान पर प्रसिद्ध कवियों की कविताओं के अंश उद्धृत करने की उनमें अद्भुत क्षमता थी।
विष्णुकान्त शास्त्री का जन्म 2 मई 1929 को कलकत्ता अब कोलकाता में पंडित गांगेय नरोत्तम शास्त्री तथा रूपेश्वरी देवी के घर में हुआ। मूलतः इनका परिवार जम्मू का था। इन्होंने बी. ए., एम.ए., तथा एल.एल.बी. कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्राप्त की। इन्होंने 1952 में एम.ए. हिन्दी में प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। उनकी शिक्षा कलकत्ता अब कोलकाता के सारस्वत विद्यालय, प्रेसीडेन्सी काॅलेज और फिर कोलकाता विश्वविद्यालय में हुई। उन्होंने अपने छात्रजीवन की सभी परीक्षाएँ सदा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कीं। 1944 में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आये, तो फिर सदा के लिए उससे जुड़ गये।
26 जनवरी, 1953 को उनका विवाह इन्दिरा देवी से हुआ। इसी वर्ष वे कलकत्ता अब कोलकाता विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक नियुक्त हुए। क्रमश उन्नति करते हुए आचार्य एवं विभागाध्यक्ष बने। आचार्य के पद से कलकत्ता विश्वविद्यालय से 31 मई, 1994 को अवकाश ग्रहण किया। ये 1944 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से सम्बद्ध हुये। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (कलकत्ता शाखा), श्री बड़ा बाज़ार कुमार सभा, पुस्तकालय, अनामिका और भारतीय जनता पार्टी (पश्चिमी बंगाल) के अध्यक्ष रहे।
1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के समय धर्मयुग के सम्पादक धर्मवीर भारती के साथ आचार्य जी ने मोर्चे पर जाकर समाचार संकलित किये। बाद में वे धर्मयुग में प्रकाशित भी हुए, जिन्हें देश-विदेश में अत्यधिक प्रशंसा मिली। उनकी अन्य सभी पुस्तकें भी हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं। 1977 में वे विधायक निर्वाचित हुए। आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में भेजा। वहाँ अपनी विद्वत्ता तथा भाषण शैली से वे अत्यधिक लोकप्रिय हुए। हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्थान के प्रति अनुराग उनकी जीवनचर्या में सदा प्रकट होता था। विष्णुकांत शास्त्री बंगीय हिन्दी परिषद के उपाध्यक्ष, भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, श्यामा प्रसाद मुखर्जी स्मारक समिति के महामंत्री, भारतीय भाषा परिषद के मंत्री और भारत भवन भोपाल के ट्रस्टी भी रहे।
सीनेट, कलकत्ता विश्वविद्यालय, कार्यकारी समिति, भारतीय हिन्दी परिषद, हिन्दी अध्ययन बोर्ड इलाहाबाद विश्वविद्यालय, कार्यकारी समिति, कलकत्ता विश्वविद्यालय, बांग्लादेश सहायक समिति, हिन्दी सलाहकार समिति गृह मंत्रालय एवं सूचना प्रसारण मंत्रालय (1977-1979) के सदस्य रहे। भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय की समिति तथा परामर्ष समिति (1992-1998), संसदीय राजभाषा समिति (1994-1998) के सदस्य रहे।
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन की सरकार बनने पर उन्हें पहले हिमाचल प्रदेश और फिर उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया। उत्तर प्रदेश के राजभवन में पूरी तरह अंग्रेजी छायी थी। शास्त्री जी ने कमरों के नाम बदलकर नीलकुसुम, अमलतास, तृप्ति, प्रज्ञा, अन्नपूर्णा शुद्ध साहित्यिक तथा भारतीयता की सुगन्ध से परिपूर्ण नाम रखे। जब केन्द्र में कंग्रेस की सरकार आयी, तो उन्हें राज्यपाल पद से हटा दिया गया।
18 अप्रैल 2005 को वे पटना में गीता पर व्याख्यान देने जा रहे थे, पर 17 अप्रैल 2005 को रेल में ही हुए भीषण हृदयाघात से उनका देहान्त हो गया।
24 नवम्बर 2000 से 2 जुलाई 2004 छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर द्वारा मानद उपाधि, डी.लिट. तथा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा डी. लिट्. की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान)। साभार