संजोग वॉल्टर। एजेन्सी । 02 जून 2016 को, मथुरा शहर में जवाहर बाग पर जबरन कब्जा करने वाले उपद्रवियों व पुलिस के मध्य सशस्त्र संघर्ष में 2 पुलिस अधिकारी व 22 उपद्रवी मारे गए।
बाबा जय गुरुदेव के अनुयायी, रामवृक्ष यादव के नेतृत्व में सशस्त्र अतिक्रमणकारियों के दल ने जवाहर बाग की भूमि पर 2014 से कब्जा किया हुआ था। मूलरूप से गाजीपुर निवासी राम वृक्ष यादव मय निजी प्रशासन, राजस्व व सेना के साथ यहाँ से अपनी समानान्तर सरकार चला रहा था। यह भी आरोप है कि स्थानीय प्रशासन यह मानता था कि राम वृक्ष यादव कुछ राजनेताओं का नजदीकी है, अतः प्रशासन इस मामले में निष्क्रिय रहा। अदालत के आदेश के बाद जब पुलिस ने बलपूर्वक अतिक्रमणकारियों से ज़मीन खाली करने की कोशिश कि तो उन्होने उग्र विरोध किया और एक पुलिस अधीक्षक सहित 2 वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को मार डाला। बाद में पुलिस ने जवाबी कार्यवाही की जिसमे कई अतिक्रमणकारी मारे गए।
2014 से मथुरा के सार्वजनिक पार्क जवाहर बाग पर “स्वाधीन भारत विधिक सत्याग्रह” समूह के सशस्त्र सदस्यों ने कब्जा कर रखा था, जो स्वयं को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का अनुयायी बताते थे व “स्वाधीन भारत विधिक सत्याग्रही”, “आज़ाद भारत विधिक विचारक क्रांति सत्याग्रही”, “स्वाधीन भारत सुभास सेना” आदि संगठनों से सम्बद्ध थे। हालाँकि, इस समूह का नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा स्थापित “अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक” के राष्ट्रीय नेतृत्व से कोई सीधा संबंध नहीं है। स्वाधीन भारत विधिक सत्याग्रह, स्वघोषित क्रांति दल है जिसका नेता रामवृक्ष यादव था। बंगाल का चन्दन बोस उसका सहयोगी था और बदायूं का राकेश बाबू गुप्ता दल के लिए पैसों का हिसाब किताब देखता था। अधिकतर अनुयायी पूर्वी उत्तर प्रदेश के थे।
इस दल का गठन धार्मिक नेता जय गुरुदेव की 2012 में मौत के बाद उनके अनुयायियों में से पृथक हुये लोगों से हुआ था। यह दल अंग्रेज़ी हुकूमत से प्रभावित भारतीय राजनैतिक व्यवस्था को पूरी तरह से बदलने की मांग करता है, जैसे कि, राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के पदों को समाप्त करना आदि। दूसरी प्रमुख मांग है भारतीय मुद्रा, रुपये, की जगह पर आजाद हिन्द बैंक मुद्रा चलायी जाए। इनका मानना है कि वर्तमान भारतीय मुद्रा रिजर्व बैंक व सरकार के हाथों डॉलर की गुलाम बन चुकी है। अनियंत्रित मुद्रा की कीमत डॉलर के मुक़ाबले ज्यादा होगी व पेट्रोल डीजल सस्ते दाम पर उपलब्ध हो सकेगा। एक अन्य घटक समूह “स्वाधीन भारत सुभाष सेना”, स्वाधीन भारत विधिक सत्याग्रही समूह की ही सशस्त्र शाखा है। 2013 में स्थापित यह शाखा एक राजनीतिक पार्टी के रूप में पंजीकृत है। इसके सदस्यों ने भी बोस के लापता होने के पीछे एक साजिश होने का दावा किया है। दिसंबर 2014 में पार्टी के एक पदाधिकारी ने बोस से संबंधित दस्तावेजों को सार्वजानिक करने की मांग की और दावा किया कि वह अभी भी जिंदा हैं।
2014 में, “स्वाधीन भारत” ने अपनी मांगों के समर्थन में सागर, मध्य प्रदेश से दिल्ली के लिए मार्च शुरू किया। रास्ते में, इसी वर्ष के अप्रैल महीने में, 500 सदस्यों ने मथुरा में प्रदर्शन का आयोजन किया।स्थानीय प्रशासन ने उन्हें दो दिनों के लिए जवाहर बाग सार्वजनिक पार्क में प्रदर्शित करने के लिए अनुमति दी थी। हालांकि, एक बार पार्क पर कब्जा कर लेने के बाद, उन्होंने इसे खाली करने से इनकार कर दिया और इसे अपने मुख्यालय में बदल लिया। उग्रवादी गुट ने स्थानीय किशोरों को मौजूदा राजनीतिक प्रणाली में फेरबदल करने के लिये उन्हें भड़काना शुरू कर दिया। 2014-2016 के दौरान, समूह ने पार्क के भीतर आत्मनिर्भर समुदाय का निर्माण कर लिया। इन्होंने वहां झोपड़ियों और शौचालयों का निर्माण किया और सब्जियाँ उगाने लगे तथा पार्क में प्रवेश करने से दूसरों को रोक दिया। 2016 तक यहाँ पर लगभग 3000 अतिक्रमणकारी थे। जवाहर बाग अपने अलग संविधान के साथ अर्ध गणराज्य में बदल दिया गया था, जिसकी अपनी दंड संहिता, न्यायिक प्रणाली, जेल और सेना थी।] स्थानीय निवासियों ने इन लोगों को “भूमि हड़पने वाले और ठग” कहा है।
शिविर स्थल, जवाहर बाग पुलिस अधीक्षक मथुरा के कार्यालय और तहसील कार्यालय के बीच है। जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय, मथुरा जिला अदालत, पुलिस कंट्रोल रूम, रिजर्व पुलिस लाइन और मथुरा जेल भी पास ही हैं।] स्थानीय प्रशासन कार्यवाही करने के लिए तैयार नहीं था। पुलिस को पता था कि हथियारबंद लोग शिविर में उपस्थित हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “जब भी हम पार्क से उसे हटाने की कोशिश करते, हमें लखनऊ से कार्यवाही को धीमा करने के लिये फोन आता। हम अच्छी तरह से जानते थे कि उन्होंने घातक हथियारों और विस्फोटकों को इकट्ठा किया था।”
2015 में, तब के उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ए॰ के॰ जैन को जवाहर बाग में अपराधियों की आवाजाही और अवैध रूप से हथियार और गोला बारूद के अंदर होने की रिपोर्ट प्राप्त हुई थी। डीजीपी ने कार्रवाई शुरू करने के लिए अधिकारियों से दिशा-निर्देश मांगे, लेकिन कहा गया कि अदालत के आदेश की प्रतीक्षा करें। इस प्रकार पुलिस ने उस समय अदालत के आदेश की प्रतीक्षा करने का फैसला किया।
मई 2016 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राम वृक्ष यादव की अपील को खारिज कर दिया, और सार्वजनिक पार्क पर ज़बरन काबिज अतिक्रमणकारियों बेदखल करने के लिए पुलिस को आदेश दिया। इसके बाद, इस समुदाय की बिजली और पानी की आपूर्ति काट दी गयी। 2 जून 2016 को तकरीबन शाम 5 बजे पुलिस की टीम पार्क में पहुँची। इन अतिक्रमणकारियों ने पुलिस पर पथराव किया और उन पर गोली भी चलाई। शुरुआत में पुलिस ने आंसू गैस और रबर की गोलियों के साथ जवाबी कार्यवाही की लेकिन दो वरिष्ठ अधिकारी की मौत हो जाने के बाद पुलिस ने इन लोगों पर गोली चलाई। हमले में मृतकों में मुकुल द्विवेदी (पुलिस अधीक्षक) और संतोष कुमार यादव (SHO, फराह) शामिल हैं। बाद में, बड़ा पुलिस बल मौके पर भेजा गया। संघर्ष समाप्त होने तक इन अतिक्रमणकारियों के दल के 22 लोग मर चुके थे। पुलिस के अनुसार, उनमें से कम से कम 11 मौके पर रसोई गैस सिलेंडरों की आग में मारे जा चुके थे। पुलिस के अनुसार, अतिक्रमणकारियों ने मौके पर संगृहीत गैस सिलेंडरों और गोला बारूद में आग लगा दी थी। दो मृत पुलिसकर्मियों के अलावा, 23 पुलिसकर्मियों को घायल अवस्था में अस्पताल में भर्ती किया गया।
पुलिस ने 47 बंदूकें, 6 राइफलें और शिविर से 179 हथगोले बरामद किए। 3 जून तक पुलिस ने 368 लोगों को गिरफ्तार किया जिनमें से 120 पर “गड़बड़ी पैदा” का आरोप लगाया गया। इसमें 116 महिलाओं सहित 196 निवारक गिरफ्तारियां भी शामिल हैं। घटना में चोटिल जो अस्पताल में भर्ती थे बाद में उनमे से भी कई लोगों की मौत हो गयी जिसके बाद कुल मृतकों की संख्या 29 बताई जा रही है। बाद में इस तथ्य की भी पुष्टि हुयी कि 2 जून को ही आग में जलने से घटना का मुख्य आरोपी रामवृक्ष यादव भी मारा गया। कांड के द्वितीय दोषी चन्दन घोष को भी पुलिस ने बाद बस्ती में गिरफ्तार कर लिया। राज्य सरकार ने दो मृत पुलिसकर्मियों के परिवारों के लिये 50-50 लाख मुआवजे व परिजनों को नौकरी देने की घोषणा की थी ।