पुण्य तिथि पर विशेष- देश की महिलाएं आसमान की ऊंचाइयों को छू रही हैं। आज ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है, जिसमें महिलाओं ने सफलता हासिल न की हो। आज की महिला रसोई में रोटी बनाने के साथ-साथ खुले आकाश में आज़ाद पंछी की तरह उड़ भी सकती है और हवाई जहाज भी उड़ा सकती हैं। लेकिन देश की एक महिला ने आज नहीं, बल्कि 1936 से हवाई जहाज उड़ाना शुरू किया था। उस महिला का नाम है ‘सरला ठकराल’। एक समय था जब हवाई जहाज उड़ाना बहुत बड़ी बात थी और ये माना जाता था कि ये काम सिर्फ़ और सिर्फ़ पुरुष ही कर सकते हैं। इस धारणा को गलत साबित कर दिखाया सरला ठकराल ने। वो भारत की पहली महिला विमान चालक थीं।
लाहौर हवाई अड्डा और 1936। इक्कीस वर्षीया सरला ठकराल ने अपनी साड़ी का पल्लू ठीक किया और जा बैठीं जिप्सी मॉथ दो सीटों वाले विमान में। आँखों पर चश्मा चढ़ाया और ले उड़ीं उसे आकाश में…सुनने में एक परी कथा ही लगती हैं क्योकि यह वो समय था जब आकाश में उड़ना ही एक बड़ी बात थी। जहाज उड़ाना बहुत ही बड़ी चीज समझी जाती थी और ऊपर से पुरुष का उस समय इस क्षेत्र पर पूरी तरह से वर्चस्व था। इस तरह वो भारत की पहली महिला विमान चालक बनीं। सरला ठकराल ने 1929 में दिल्ली में खोले गए फ़्लाइंग क्लब में विमान चालन की ट्रेनिंग ली थी और एक हज़ार घंटे का अनुभव बटोरा था। वहीं उनकी भेंट अपने भावी पति से हुई। शादी के बाद उनके पति ने उन्हें व्यावसायिक विमान चालक बनने के लिए प्रोत्साहन दिया। सरला ठकराल जोधपुर फ्लाइंग क्लब में ट्रेनिंग लेने लगीं। 1939 में विमान दुर्घटना में उनके पति मारे गए। फिर दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया और जोधपुर क्लब बंद हो गया। उसके बाद उन्होंने अपने जीवन की दिशा बदल ली। उनके माता-पिता ने उनका दूसरा विवाह किया और वो विभाजन के बाद लाहौर से दिल्ली आ गईं।
1948 में पी.पी. ठकराल से शादी करने के बाद उन्होंने फिर नई शुरुआत की। वे कपड़े और गहने डिज़ाइन करने लगीं और करीब 20 साल तक अपनी बनायी चीजें विभिन्न कुटीर उद्योगों को देती रहीं। उन्होंने सफल बिज़नेस वूमेन और पेंटर के रूप में अपनी पहचान बनाई। अपने जीवन में सफलताओं के कई आयाम छूने वाली सरला ठकराल का 15 मार्च 2008 को निधन हो गया। लेकिन उनकी ये प्रेरणादायक कहानी साहस और आत्मविश्वास की अनूठी कहानी है। उनकी ज़िन्दगी का संघर्ष और उसके बाद मिली सफलता आगे आने वाली महिलाओं के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत बनी रहेगी।एजेन्सी।