पुण्य तिथि पर विशेष। देश के अमर सपूत वीर क्रान्तिकारी बलिदानी जिन्होंने भारत माता को आजाद कराने के लिए अपने प्राणो की आहुति दे दी। ऐसे ही वीर क्रांतिकारी जतीन्द्रनाथ दास ( 27 अक्टूबर, 1904, कलकत्ता,- 13 सितम्बर, 1929, लाहौर, अब पाकिस्तान) के प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों में थे, जिन्होंने देश की आजादी के लिए जेल में अपने प्राण त्याग दिए। इन्हें जतिन दास के नाम से भी जाना जाता है, संगी साथी इन्हें प्यार से जतिन दास कहा करते थे। जतीन्द्रनाथ दास कांग्रेस सेवादल में सुभाषचन्द्र बोस के सहायक थे। भगत सिंह से भेंट होने के बाद ये बम बनाने के लिए आगरा आ गये थे। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने जो बम केन्द्रीय असेम्बली में फेंके थे, वे इन्हीं के द्वारा बनाये गए थे। जेल में क्रान्तिकारियों के साथ राजबन्दियों के समान व्यवहार न होने के कारण क्रान्तिकारियोंने 13 जुलाई, 1929 से अनशन आरम्भ कर दिया। जतीन्द्रनाथ भी इसमें सम्मिलित हुए। अनशन के 63वें दिन जेल में ही इनका देहान्त हो गया।
जब जतीन्द्रनाथ अपनी आगे की शिक्षा पूर्ण कर रहे थे, तभी महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया। जतीन्द्र इस आन्दोलन में कूद पड़े। विदेशी कपड़ों की दुकान पर धरना देते हुए वे गिरफ्तार कर लिये गए। उन्हें 6 महीने की सजा हुई। लेकिन जब चैरी-चैरा की घटना के बाद गाँधीजी ने आन्दोलन वापस ले लिया तो निराश जतीन्द्रनाथ फिर कॉलेज में भर्ती हो गए। कॉलेज का यह प्रवेश जतीन्द्र के जीवन में निर्णायक सिद्ध हुआ। नजरबन्द 1925 में जतीन्द्रनाथ को दक्षिणेश्वर बम कांड और काकोरी कांड के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया, किन्तु प्रमाणोंके अभाव में मुकदमा न चल पाने पर वे नजरबन्द कर लिये गए। जेल में दुर्व्यवहार के विरोध में उन्होंने 21 दिन तक जब भूख हड़ताल कर दी तो बिगड़ते स्वास्थ्य को देखकर सरकार को उन्हें रिहा करना पड़ा। लाहौर षड़यंत्र केस में गिरफ्तार जेल से बाहर आने पर जतीन्द्रनाथ दास ने अपना अध्ययन और राजनीति दोनों काम जारी रखे। 1928 की कोलकाता कांग्रेस में वे कांग्रेस सेवादल में नेताजी सुभाषचंद्र बोस के सहायक थे। वहीं उनकी सरदार भगत सिंह से भेंट हुई और उनके अनुरोध पर बम बनाने के लिए आगरा आए।
8 अप्रैल, 1929 को भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने जो बम केन्द्रीय असेम्बली में फेंके, वे इन्हीं के द्वारा बनाये हुए थे। 14 जून, 1929 को जतीन्द्र गिरफ्तार कर लिये गए और उन पर लाहौर षड़यंत्र केस में मुकदमा चला। अनशन जेल में क्रान्तिकारिया के साथ राजबन्दियों के समान व्यवहार न होने के कारण क्रान्तिकारियों ने 13 जुलाई, 1929 से अनशन आरम्भ कर दिया। जतीन्द्र भी इसमें सम्मिलित हुए। उनका कहना था कि एक बार अनशन आरम्भ होने पर हम अपनी मांगों की पूर्ति के बिना उसे नहीं तोड़ेंगे। कुछ समय के बाद जेल अधिकारियों ने नाक में नली डालकर बलपूर्वक अनशन पर बैठे क्रांतिकारियों के के पेट में दूध डालना शुरू कर दिया। जतीन्द्र को 21 दिन के पहले अपने अनशन का अनुभव था। उनके साथ यह युक्ति काम नहीं आई। नाक से डाली नली को सांस से खींचकर वे दांतों से दबा लेते थे। अन्त में पागल खाने के एक डॉक्टर ने एक नाक की नली दांतों से दब जाने पर दूसरी नाक से नली डाल दी, जो जतीन्द्र के फेफड़ों में चली गई। उनकी घुटती सांस की परवाह किए बिना उस डॉक्टर ने एक सेर दूध उनके फेफड़ों में भर दिया। इससे उन्हें निमोनिया हो गया। कर्मचारियों ने उन्हें धोखे से बाहर ले जाना चाहा, लेकिन जतीन्द्र अपने साथियों से अलग होने के लिए तैयार नहीं हुए।
अनशन के 63 वें दिन 13 सितम्बर, 1929 को जतीन्द्रनाथ दास का देहान्त हो गया। जतीन्द्र के भाई किरण चंद्रदास ट्रेन से उनके शव को कलकत्ता अब कोलकाता ले गए। सभी स्टेशनों पर लोगों ने शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित की। कलकत्ता अब कोलकाता में शवदाह के समय लाखों की भीड़ एकत्र थी।एजेन्सी।