जेम्स एडवर्ट जिम कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई 1875 को नैनीताल, यूनाइटेड प्रोविंस (अब उत्तराखंड),में हुआ था। उन्होंने मानवीय अधिकारों के लिए संघर्ष किया तथा संरक्षित वनों के आंदोलन का भी प्रारंभ किया। उन्होंने नैनीताल के पास कालाढूंगी में आवास बनाया था। यह स्थान आज भी यहां आने वाले प्रर्यटकों को उनके का ज्ञान कराता है जो न केवल शिकारी थे बल्कि संरक्षक, जंगली जानवरों के फ़ोटो खीचने वाले थे। इन्होने गढ़वाल मे अनेक आदमखोर बाघों को मारा था जिनमें रुद्रप्रयाग का आदमखोर तेंदुआ भी शामिल था। मगर बाघों की घटती संख्या देखकर इन्होने सिर्फ छाया चित्रकारिता ही अपनाई।
जिम कार्बेट आजीवन अविवाहित रहे। उन्हीं की तरह उनकी बहन ने भी विवाह नहीं किया। दोनों भाई-बहन सदैव साथ-साथ रहे और एक दूसरे का दु:ख बाँटते रहे। कुमाऊँ तथा गढ़वाल में जब कोई आदमखोर शेर आ जाता था तो जिम कार्बेट को बुलाया जाता था। जिम कार्बेट वहाँ जाकर सबकी रक्षा कर और आदमखोर शेर को मारकर ही लौटते थे। जिम कॉर्बेट के प्रयासों से ही देश को पहला नेशनल पार्क मिला था। बाघ परियोजना पहल के तहत आने वाला यह पहला पार्क था।
नैनीताल में ही शुरुआती शिक्षा फिलैंडर स्मिथ कॉलेज से की और 19 वर्ष की आयु में रेलवे में नौकरी करनी शुरु कर दी।जिम कॉर्बेट को तत्कालीन अंग्रेजी सरकार द्वारा यूनाइटेड प्रोविंस में आदमखोर बाघों को मारने के लिए बुलाया जाता था। गढ़वाल और कुमायुं में उस वक्त आदखोर शेरों का आतंक मचा हुआ था जिसे खत्म करने का श्रेय जिम कॉर्बेट को जाता है। जिस पहले शेर को जिम कॉर्बेट ने मारा था उसने 436 लोगों को हत्या की थी। जिम कार्बेट ने जिस पहले शेर को मौत के घाट उतारा था उसने 1200 लोगों को मारा था। हालांकि दस्तावेजों में कॉर्बेट के नाम तकरीबन 12 शेर और तेंदुए मारने का बात है, लेकिन वास्तविकता में उन्होंने इससे कहीं ज्यादा आदमखोर शेरों का शिकार किया था। 1910 में जिस पहले तेंदुए को जिम ने मारा था उसने 400 लोगों को मौत के घाट उतारा था। जबकि दूसरे तेंदुए ने 126 लोगों को मौत के घाट उतारा था, उसे जिम ने 1926 में रुद्रप्रयाग में मारा था। बाघों और जंगली जानवरों से था खासा लगाव शेरों का शिकार करते-करते इनसे प्यार हो गया, कॉर्बेट ने कभी भी किसी ऐसे शेर को नहीं मारा जिसने किसी आदमी को नहीं मारा हो। शेरों से प्यार के चलते ही उन्होंने इनके लिए नेशनल पार्क बनाने का सुझाव दिया था। जिम कॉर्बेट अपनी बहन मैगी कॉर्बेट के साथ गर्नी हाउस में रहते थे। जिसे उन्होंने 1947 में केन्या जाते वक्त कलावती वर्मा को बेच दिया था, जिसे बाद में कॉर्बेट म्युजिम के रूप में स्थापित कर दिया गया है।जिम कॉर्बेट को फोटोग्राफी का बहुत शौक था। इंडो चाइनीज टाइगर को कार्बेट टाइगर के नाम से भी जाना जाता है। रिटायर होने के बाद जिम कॉर्बेट ने मैन इटर्स ऑफ कुमायुं नाम की पुस्तक भी लिखी थी। 1928 में केसर-ए-हिंद की उपाधि से भी उन्हें नवाजा गया था। जिम कॉर्बेट ने शेरों को संरक्षित करने का सुझाव दिया था। जिसके बाद नेशनल पार्क की स्थापना की गयी। 1957 में इस नेशनल पार्क का नाम जिम कार्बेट नेशनल पार्क कर दिया गया ।
जिम कार्बेट कुशल शिकारी थे। वे शिकार करनें में यहाँ दक्ष थे, अत्यन्त प्रभावशील लेखक भी थे। शिकार-कथाओं के कुशल लेखकों में जिम कार्बेट का नाम विश्व में अग्रणीय है। उनकी ‘भाई इण्डिया’ पुस्तक बहुत चर्चित है। भारत-प्रेम उनका इतना अधिक था कि वे उसके यशगान में लग रहते थे। कुमाऊँ और गढ़वाल उन्हें बहुत प्रिय था। ऐसे कुमाऊँ – गढ़वाल के हमदर्द व्यक्ति के नाम पर गढ़वाल-कुमाऊँ की धरती पर स्थापित पार्क का होना उन्हें श्रद्धा के फूल चढ़ाने के ही बराबर है। अत: जिम कार्बेट के नाम पर यह जो पार्क बना है, उससे हमारा राष्ट्र भी गौरान्वित हुआ है, जिम कार्बेट के प्रति यह कुमाऊँ-गढ़वाल और भारत की सच्ची श्रद्धांजलि है। इस लेखक ने भारत का नाम बढ़ाया है। आज विश्व में उनका नाम प्रसिद्ध शिकारी के रूप में आदर से लिया जाता है । जिम कार्बेट की मृत्यु अप्रैल 19, 1955 को केन्या में हुई थी ।एजेन्सी।
जेम्स एडवर्ट जिम कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई 1875 को नैनीताल, यूनाइटेड प्रोविंस (अब उत्तराखंड),में हुआ था। उन्होंने मानवीय अधिकारों के लिए संघर्ष किया तथा संरक्षित वनों के आंदोलन का भी प्रारंभ किया। उन्होंने नैनीताल के पास कालाढूंगी में आवास बनाया था। यह स्थान आज भी यहां आने वाले प्रर्यटकों को उनके का ज्ञान कराता है जो न केवल शिकारी थे बल्कि संरक्षक, जंगली जानवरों के फ़ोटो खीचने वाले थे। इन्होने गढ़वाल मे अनेक आदमखोर बाघों को मारा था जिनमें रुद्रप्रयाग का आदमखोर तेंदुआ भी शामिल था। मगर बाघों की घटती संख्या देखकर इन्होने सिर्फ छाया चित्रकारिता ही अपनाई।
जिम कार्बेट आजीवन अविवाहित रहे। उन्हीं की तरह उनकी बहन ने भी विवाह नहीं किया। दोनों भाई-बहन सदैव साथ-साथ रहे और एक दूसरे का दु:ख बाँटते रहे। कुमाऊँ तथा गढ़वाल में जब कोई आदमखोर शेर आ जाता था तो जिम कार्बेट को बुलाया जाता था। जिम कार्बेट वहाँ जाकर सबकी रक्षा कर और आदमखोर शेर को मारकर ही लौटते थे। जिम कॉर्बेट के प्रयासों से ही देश को पहला नेशनल पार्क मिला था। बाघ परियोजना पहल के तहत आने वाला यह पहला पार्क था।
नैनीताल में ही शुरुआती शिक्षा फिलैंडर स्मिथ कॉलेज से की और 19 वर्ष की आयु में रेलवे में नौकरी करनी शुरु कर दी।जिम कॉर्बेट को तत्कालीन अंग्रेजी सरकार द्वारा यूनाइटेड प्रोविंस में आदमखोर बाघों को मारने के लिए बुलाया जाता था। गढ़वाल और कुमायुं में उस वक्त आदखोर शेरों का आतंक मचा हुआ था जिसे खत्म करने का श्रेय जिम कॉर्बेट को जाता है। जिस पहले शेर को जिम कॉर्बेट ने मारा था उसने 436 लोगों को हत्या की थी। जिम कार्बेट ने जिस पहले शेर को मौत के घाट उतारा था उसने 1200 लोगों को मारा था। हालांकि दस्तावेजों में कॉर्बेट के नाम तकरीबन 12 शेर और तेंदुए मारने का बात है, लेकिन वास्तविकता में उन्होंने इससे कहीं ज्यादा आदमखोर शेरों का शिकार किया था। 1910 में जिस पहले तेंदुए को जिम ने मारा था उसने 400 लोगों को मौत के घाट उतारा था। जबकि दूसरे तेंदुए ने 126 लोगों को मौत के घाट उतारा था, उसे जिम ने 1926 में रुद्रप्रयाग में मारा था। बाघों और जंगली जानवरों से था खासा लगाव शेरों का शिकार करते-करते इनसे प्यार हो गया, कॉर्बेट ने कभी भी किसी ऐसे शेर को नहीं मारा जिसने किसी आदमी को नहीं मारा हो। शेरों से प्यार के चलते ही उन्होंने इनके लिए नेशनल पार्क बनाने का सुझाव दिया था। जिम कॉर्बेट अपनी बहन मैगी कॉर्बेट के साथ गर्नी हाउस में रहते थे। जिसे उन्होंने 1947 में केन्या जाते वक्त कलावती वर्मा को बेच दिया था, जिसे बाद में कॉर्बेट म्युजिम के रूप में स्थापित कर दिया गया है।जिम कॉर्बेट को फोटोग्राफी का बहुत शौक था। इंडो चाइनीज टाइगर को कार्बेट टाइगर के नाम से भी जाना जाता है। रिटायर होने के बाद जिम कॉर्बेट ने मैन इटर्स ऑफ कुमायुं नाम की पुस्तक भी लिखी थी। 1928 में केसर-ए-हिंद की उपाधि से भी उन्हें नवाजा गया था। जिम कॉर्बेट ने शेरों को संरक्षित करने का सुझाव दिया था। जिसके बाद नेशनल पार्क की स्थापना की गयी। 1957 में इस नेशनल पार्क का नाम जिम कार्बेट नेशनल पार्क कर दिया गया ।
जिम कार्बेट कुशल शिकारी थे। वे शिकार करनें में यहाँ दक्ष थे, अत्यन्त प्रभावशील लेखक भी थे। शिकार-कथाओं के कुशल लेखकों में जिम कार्बेट का नाम विश्व में अग्रणीय है। उनकी ‘भाई इण्डिया’ पुस्तक बहुत चर्चित है। भारत-प्रेम उनका इतना अधिक था कि वे उसके यशगान में लग रहते थे। कुमाऊँ और गढ़वाल उन्हें बहुत प्रिय था। ऐसे कुमाऊँ – गढ़वाल के हमदर्द व्यक्ति के नाम पर गढ़वाल-कुमाऊँ की धरती पर स्थापित पार्क का होना उन्हें श्रद्धा के फूल चढ़ाने के ही बराबर है। अत: जिम कार्बेट के नाम पर यह जो पार्क बना है, उससे हमारा राष्ट्र भी गौरान्वित हुआ है, जिम कार्बेट के प्रति यह कुमाऊँ-गढ़वाल और भारत की सच्ची श्रद्धांजलि है। इस लेखक ने भारत का नाम बढ़ाया है। आज विश्व में उनका नाम प्रसिद्ध शिकारी के रूप में आदर से लिया जाता है । जिम कार्बेट की मृत्यु अप्रैल 19, 1955 को केन्या में हुई थी ।एजेन्सी।