स्मृति शेष
एजेन्सी। नील एल्डन आर्मस्ट्रांग अमेरिकी खगोलयात्री और चंद्रमा पर कदम रखने वाले पहले व्यक्ति थे। इसके अलावा वे एयरोस्पेस इंजीनियर, नौसेना अधिकारी, परीक्षण पायलट, और प्रोफ़ेसर भी थे। ऍस्ट्रोनॉट बनने से पूर्व वे नौसेना में थे। नौसेना में रहते हुए उन्होंने कोरिया युद्ध में भी हिस्सा लिया। नौसेना के बाद उन्होंने पुरुडु विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि ली और तत्पश्चात् एक ड्राइडेन फ्लाईट रिसर्च सेंटर से जुड़े और परीक्षण पायलट के रूप में 900 से अधिक उड़ानें भरीं। यहाँ सेवायें देने के बाद उन्होंने दक्षिण कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से परास्नातक की उपाधि हासिल की।
आर्मस्ट्रांग को मुख्यतः अपोलो अभियान के खगोलयात्री के रूप में चंद्रमा पर कदम रखने वाले पहले व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। इससे पहले वे जेमिनी अभियान के दौरान भी अंतरिक्ष यात्रा कर चुके थे। अपोलो 11, वह अभियान था जिसमें 20 जुलाई 1969 में पहली बार चंद्रमा पर मानव सहित कोई यान उतरा और आर्मस्ट्रांग इसके कमांडर थे। उनके अलावा इसमें बज़ एल्ड्रिन, जो चाँद पर उतरने वाले दूसरे व्यक्ति बने, और माइकल कॉलिंस जो चंद्रमा की कक्षा में चक्कर लगाते मुख्य यान में ही बैठे रहे, शामिल थे।
अपने साथियों के साथ, इस उपलब्धि के लिये आर्मस्ट्रांग को राष्ट्रपति निक्सन के हाथों प्रेसिडेंसियल मेडल ऑफ फ्रीडम से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने उन्हें 1978 में कॉंग्रेसनल स्पेस मेडल ऑफ ऑनर प्रदान किया और आर्मस्ट्रांग और उनके साथियों को 2009 में कॉंग्रेसनल गोल्ड मेडल दिया गया।
नील आर्मस्ट्रांग का जन्म 5 अगस्त,1930 को वेपकॉनेटा, ओहायो में हुआ था। उनके पिता का नाम स्टीफेन आर्मस्ट्रांग था और माँ का वायला लुई एंजेल थीं, और उनके माता पिता की दो अन्य संतानें जून और डीन, नील से उम्र में छोटे थे। पिता स्टीफेन ओहायो सरकार के लिये काम करने वाले ऑडिटर थे और उनका परिवार इस कारण ओहायो के कई कस्बों में भ्रमण करता रहा। नील के जन्म के बाद वे लगभग 20 कस्बों में स्थानंतरित हुए। इसी दौरान नील की रूचि हवाई उड़ानों में जगी। नील जब पाँच बरस के थे, उनके पिता उन्हें लेकर 20 जून 1936 को ओहायो के वारेन पर फोर्ड ट्राईमोटर हवाई जहाज में सवार हुए और नील को पहली हवाई उड़ान का अनुभव हुआ।
1947 में नील ने सत्रह वर्ष की आयु में एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की। उन्होंने यह शिक्षा पुरडु यूनिवर्सिटी में ली। वे किसी कॉलेज स्तर की शिक्षा प्राप्त करने वाले अपने परिवार के दूसरे सदस्य थे। आर्मस्ट्रांग को 26 जनवरी 1949 को नौसेना से बुलावा मिला और उन्होंने पेंसाकोला नेवी एयर स्टेशन में अठारह महीने की ट्रेनिंग ली। 20 वर्ष की उम्र पूरी करने के कुछ ही दिनों बाद उन्हें नेवल एविएटर (नौसेना पाइलट) का दर्जा मिल गया। आर्मस्ट्रांग ने 22 की उम्र में नौसेना छोड़ी और संयुक्त राज्य नौसेना रिजर्व में 23 अगस्त 1952 को लेफ्टिनेंट (जूनियर ग्रेड) बने। यहाँ वे अगले आठ सालों तक सेवाए देते रहे और अक्टूबर 1960 में यहाँ से सेवानिवृत्त हुए। नासा के आधिकारिक प्लान के मुताबिक़ चालक दल को चंद्रमा पर उतरने के बाद एक्स्ट्रा व्हीक्युलर एक्टिविटी (यान से बाहर की क्रियाओं) के पूर्व कुछ देर आराम करना था, आर्मस्ट्रांग ने यह कार्य और पहले खिसकाने का अनुरोध किया। एक बार जब एल्ड्रिन और आर्मस्ट्रांग बाहर जाने के लिये तैयार हो चुके, ईगल वायुदाब मुक्त किया गया और दरवाजे को खोला गया। आर्मस्ट्रांग सीढ़ी पर उतरे। सीढ़ी पर नीचे खड़े होकर उन्होंने कहा, “अब मैं ऍलईऍम से नीचे उतरने वाला हूँ” (उनका आशय अपोलो लूनर मॉड्यूल से था)। इसके बाद वे मुड़े और अपना बायां पैर चाँद की सतह पर 2:56 यूटीसी जुलाई 21, 1969, को रखा और ये प्रसिद्द शब्द कहे, “दैट्स वन स्माल स्टेप ऑफ़ [अ] मैन, वन जायंट लीप फॉर मैनकाइंड”जब आर्मस्ट्रांग ने यह घोषणा की, वायस ऑफ अमेरिका द्वारा इस क्षण का सजीव प्रसारण किया गया और यह प्रसारण बीबीसी एवं अन्य प्रमुख स्टेशनों द्वारा पूरी दुनिया में पुनर्प्रसारित किया गया। एक अनुमान के आनुसार पूरी दुनिया के लगभग 45 लाख श्रोतागण, रेडियो द्वारा इस क्षण के साक्षी बने (अनुमानतः उस समय विश्व की कुल जनसंख्या 3-631 बिलियन थी)।
चंद्रमा पर कदम रखने के लगभग 20 मिनटों के बाद, एल्ड्रिन उतरे और चाँद पर कदम रखने वाले दूसरे व्यक्ति बने। इसके बाद दोनों ने साथ मिल कर चंद्रमा की सतह पर भ्रमण किया। उन्होंने चंद्रमा की जमीन पर अमेरिकी झण्डा भी गाड़ा। झंडे को खुला रखने के लिये इसके दण्ड के साथ एक धात्विक रॉड लगी हुई थी और पैकिंग में कसे हुए इस झंडे के खुलने के बाद यह हल्का लहरदार प्रतीत हुआ मानों वहाँ मंद पवन बह रही हो। कुछ ही देर के बाद राष्ट्रपति निक्सन ने अपने दफ़्तर से टेलीफोन द्वारा इन खगोलयात्रियों से बात की। उन्होंने लगभग एक मिनट तक बात की और अगले तीस सेकेंडों तक आर्मस्ट्रांग ने उसका उत्तर दिया।
अपोलो 11 के बाद आर्मस्ट्रांग ने घोषणा की कि वे दुबारा अंतरिक्ष यात्रा में नहीं जाना चाहते।1971 में उन्होंने नासा से पूरी तरह सेवानिवृत्ति ले ली। उन्होंने सिनसिनाटी विश्वविद्यालय में एयरोस्पेस इंजीनियरी पढ़ाने का दायित्व संभाला। यहाँ उन्होंने आठ वर्ष अध्यापन कार्य किया और 1979 में सेवानिवृति ली।
बाद के दिनों में उन्होंने नासा के कुछ अभियानों के विफल रहने और दुर्घटना ग्रस्त यानों की जाँच करने वाले दल के सदस्य भी रहे। 1986 में प्रेसिडेंट रीगन ने उन्हें रोजर्स कमीशन के सदस्य के रूप में नियुक्त किया था जिसका कार्य चैलेंजर स्पेस-शटल के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारणों की जाँच करना था। आर्मस्ट्रांग कई कंपनियों के प्रवक्ता के रूप में भी कार्य किये, और कई कंपनियों के निदेशक मंडल में शामिल रहे।
1985 में आर्मस्ट्रांग [एडमंड हिलैरी और कुछ अन्य महत्वपूर्ण खोजी यात्रियों के साथ उत्तरी ध्रुव की यात्रा पर भी गये। आर्मस्ट्रांग का कहना था कि वे यह जानने को काफ़ी उत्सुक थे कि उत्तरी ध्रुव जमीन पर कैसा दीखता है क्योंकि उन्होंने उसे केवल अंतरिक्ष से देखा था। हृदय की बीमारी के चलते आर्मस्ट्रांग 07 अगस्त 2012 को बाईपास सर्जरी से गुजरे,वे तेजी से ठीक हो रहे थे, लेकिन फिर अचानक कुछ जटिलतायें उत्पन्न हुईं और 25 अगस्त 2012 को सिनसिनाती, ओहायो में उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद, व्हाईट हाउस द्वारा जारी सन्देश में उन्हें “अपने समय के ही नहीं अपितु सार्वकालिक महान अमेरिकी नायकों में से एक” बताया गया।
आर्मस्ट्रांग को कई पुरस्कार और सम्मान मिले जिनमें प्रेसिडेंसियल मेडल ऑफ फ्रीडम, कॉंग्रेसनल स्पेस मेडल ऑफ ऑनर और कॉंग्रेसनल गोल्ड मेडल शामिल हैं। चंद्रमा पर एक क्रेटर और सौरमंडल के एक छुद्र ग्रह (एस्टेरौइड) का नामकरण उनके नाम पर किया गया है। पूरे संयुक्त राज्य में उनके नाम पर दर्जनों स्कूल और हाईस्कूल हैं और विश्व के अन्य देशों में भी उनके नाम पर स्कूल, सड़कें और पुल इत्यादि के नाम रखे गये हैं।