20 सितंबर 1965 को 3 जाट यूनिट को डोगराई पर कब्ज़ा करने का आदेश दिया गया। 3 जाट यूनिट में 550 सैनिक थे और लेफ्टिनेंट कर्नल डेसमंड हेड के कमान में थी। पाकिस्तानी दल 16 पंजाब (पाकिस्तान) बटालियन और 3 बलूच बटालियन से बना था जिसमें 1000 से अधिक सैनिक शामिल थे और टैंक स्क्वाड्रनों द्वारा समर्थित था।
3 जाट बटालियन ने डोगराई पर रात में हमला शुरू किया। हमला अप्रत्याशित था और पाकिस्तानी दल को आश्चर्यचकित कर दिया। लड़ाई तीव्र और भयंकर थी, शुरू में बंदूकें और हथगोले के साथ, फिर संगीनों के साथ और अंत में नंगे हाथों से। 27 घंटे लगातार मुकाबला और ऑपरेशन के बाद, बचाव दल ने या तो आत्मसमर्पण कर दिया या पद छोड़ दिया और डोगराई भारतीय सेना के नियंत्रण में आ गया।]
युद्ध विराम की घोषणा के ठीक एक दिन पहले भारत की डोगराई पर कब्जा किया था।
वीरता के लिए सैनिकों को 4 महावीर चक्र,4 वीर चक्र और 7 सेना मैडल से सम्मानित किया गया।
1965 में भारत-पाक सीमा पर लड़े गये डोगराई युद्ध में अपनी बटालियन का कुशल नेतृत्व करने वाले तीन जाट के पूर्व कमान अधिकारी व महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) कर्नल डेसमंड हेड का 25 सितम्बर 2013 को उत्तराखंड के कोटद्वार में निधन हो गया था। डेसमंड हेड का जन्म इंग्लैण्ड के एक्सेटर शहर में आयरिश वंश के ऐसे एंग्लो इंडियन परिवार में हुआ था जिनका लम्बा सैनिक इतिहास रहा था। आसनसोल व बेंगलुरू से सीनियर कैंब्रिज स्तर की शिक्षा प्राप्त कर 20 जनवरी 1947 को डेसमंड हेड ने भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून में प्रवेश किया और 12 सितम्बर 1948 को उन्होंने जाट रेजीमेंट में कमीशन लिया। उनकी जाट बटालियन को तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने स्वयं डोगराई में जाकर सम्बोधित करने के साथ ही सराहना की थी। इसी भाषण में उन्होंने ˜जय जवान जय किसान का नारा दिया था। ब्रिगेडियर डेसमंड हेड एकमात्र ऐसे भारतीय सैन्य अफसर हैं जिनका चित्र प्रसिद्ध चित्रकार एमएफ हुसैन ने स्वयं युद्ध भूमि में बनाया था। आज भी यह चित्र गर्व के साथ जाट रेजिमेन्टल सेन्टर बरेली के संग्रहालय में अपनी शोभा बढ़ा रहा है।
1978 में 30 साल सेवा के बाद कोटद्वार में जा बसे। पहाड़ों से प्यार था उन्हें उनकी पत्नी गढ़वाल की थी। कोटद्वार में उनकी बनाई ex-servicemen league आज भी कायम है। स्कूल Hayde Heritage Academy भी चल रहा है। कोटद्वार में अपने जीते जीते आपने अपनी सम्पत्ति का दान कर दिया था ताकि उस ज़मीन पर स्कूल कायम हो सके।
उनकी इच्छा थी की उन्होंने बरेली में जाट रेजिमेंटल आफिसर्स में बने कब्रिस्तान में जहाँ उनकी पत्नि की कब्र है उसके बराबर दफनाया जाये। उनकी इच्छा पूरी की गयी और उन्होंने उनकी पत्नि शीला के बराबर ही दफ़नाया गया। शीला जो उनके दुःख सुख की साथी थी।संजोग वॉल्टर।