पुण्य तिथि पर विशेष-राजकुमारी अमृत कौर प्रख्यात गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता थीं। वह देश की स्वतंत्रता के बाद भारतीय मंत्रिमण्डल में दस साल तक स्वास्थ मंत्री रहीं। देश की पहली महिला कैबिनेट मंत्री होने का सम्मान उन्हें प्राप्त है। राजकुमारी अमृत कौर कपूरथला के शाही परिवार से ताल्लुक रखती थीं। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के प्रभाव में आने के बाद ही उन्होंने भौतिक जीवन की सभी सुख सुविधाओं को छोड़ दिया और तपस्वी का जीवन अपना लिया। वे 1957 से 1964 में अपने निधन तक राज्य सभा की सदस्य भी रही थीं।
राजकुमारी अमृत कौर का जन्म 2 फऱवरी 1889 को लखनऊ में हुआ था। उनके पिता राजा हरनाम सिंह कपूरथला पंजाब के राजा थे और माता रानी हरनाम सिंह थीं। राजा हरनाम सिंह की आठ संतानें थी जिनमें राजकुमारी अमृत कौर अपने सात भाईयों में अकेली बहिन थीं। अमृत कौर के पिता ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था। सरकार ने उन्हें अवध की रियासतों का मैनेजर बनाकर अवध भेजा था। राजकुमारी अमृत कौर की आरम्भ से लेकर आगे तक की शिक्षा इंग्लैण्ड में हुई थी। उनके पिता के गोपाल कृष्ण गोखले से बहुत ही अच्छे मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। इस परिचय का प्रभाव राजकुमारी अमृत कौर पर भी पड़ा था। वे देश के सामाजिक और राजनीतिक जीवन में सक्रिय रूप से भाग लेने लगी थीं।
शीघ्र ही अमृत कौर का सम्पर्क राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी से हुआ। यह सम्पर्क अंत तक बना रहा। उन्होंने 16 वर्षों तक गाँधीजी के सचिव का भी काम किया। गाँधीजी के नेतृत्व में 1930 में जब दांडी मार्च् की शुरूआत हुई तब राजकुमारी अमृतकौर ने उनके साथ यात्रा की और जेल की सजा भी काटी। 1934 से वह गाँधीजी के आश्रम में ही रहने लगीं। उन्हें भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान भी जेल हुई। अमृत कौर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस् की प्रतिनिधि के तौर पर 1937 में पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत के बन्नू गई। ब्रिटिश सरकार को यह बात नागवार गुजरी और उसने राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें जेल में बंद कर दिया। उन्होंने सभी को मताधिकार दिए जाने की भी वकालत की और भारतीय मताधिकार और संवैधानिक सुधार के लिए गठित लोथियन समिति तथा ब्रिटिश पार्लियामेंट की संवैधानिक सुधारों के लिए बनी संयुक्त चयन समिति के सामने भी अपना पक्ष रखा।
राजकुमारी अमृत कौर पहली भारतीय महिला थीं जिन्हें केंद्रीय मंत्री बनने का मौका मिला था।पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में गठित पहले मंत्रिमंडल में वे शामिल थीं। उन्होंने स्वास्थ्य मंत्रालय का कार्यभार 1957 तक सँभाला। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान् की स्थापना में उनकी प्रमुख भूमिका रही थी।
अपने राजनीतिक कैरियर के दौरान राजकुमारी अमृता कौर ने कई बड़े पदों को सुशोभित किया। स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियाँ उल्लेखनीय रहीं। 1950 में उन्हें श्विश्व स्वास्थ्य संगठन का अध्यक्ष बनाया गया। यह सम्मान हासिल करने वाली वह पहली महिला और एशियायी थीं। डब्ल्यूएचओ के पहले पच्चीस वर्षों में सिर्फ दो महिलाएँ इस पद पर नियुक्त की गई थीं। नई दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान् की स्थापना में भी उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। वह इसकी पहली अध्यक्ष भी बनायी गयीं। इस संस्थान की स्थापना के लिए उन्होंने न्यूजीलैंड ऑस्ट्रेलिया पश्चिम जर्मनी स्वीडन और अमरीका से मदद हासिल की थी। उन्होंने और उनके एक भाई ने शिमला में अपनी पैतृक सम्पत्ति और मकान को संस्थान के कर्मचारियों और नर्सों के लिए होलिडे होम के रूप में दान कर दिया था।
राजकुमारी अमृत कौर ने महिलाओं और हरिजनों के उद्धार के लिए भी कई कल्याणकारी कार्य किए। वह बाल विवाह और पर्दा प्रथा के सख्त ख़िलाफ़ थीं और इन्हें लड़कियों की शिक्षा में बडी बाधा मानती थीं। उनका कहना था कि शिक्षा को निशुल्क और अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। राजकुमारी अमृत कौर ने महिलाओं की दयनीय स्थिति को देखकर ही 1927 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की स्थापना की। वह 193० में इसकी सचिव और 1933 में अध्यक्ष बनीं। उन्होंने ऑल इंडिया वूमेन्स एजुकेशन फंड एसोसिएशन् के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया और नई दिल्ली के लेडी इर्विन कॉलेज की कार्यकारी समिति की सदस्य रहीं। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें शिक्षा सलाहकार बोर्ड् का सदस्य भी बनाया जिससे उन्होंने भारत छोडो आंदोलन् के दौरान इस्तीफा दे दिया था। उन्हें 1945 में लंदन और 1946 में पेरिस के यूनेस्को सम्मेलन में भारतीय सदस्य के रूप में भेजा गया था। वह अखिल भारतीय बुनकर संघ के न्यासी बोर्ड की सदस्य भी रहीं। 2 अक्टूबर 1964 को राजकुमारी अमृत कौर का निधन हुआ।
अमृत कौर बाल विवाह और महिलाओं की अशिक्षा को दूर करने पर निरंतर ज़ोर देती रही थीं। उन्होंने विवाह नहीं किया था। अपनी सोच और संकल्प से उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में जो बुनियाद रखी उन्हीं पर आज़ाद भारत के सपनों की ताबीर हुई थी।एजेन्सी।