पुण्यतिथि पर विशेष
दीवान सुशील पुरी :सुप्रसिद्ध काकोरी केस के विख्यात क्रांतिकारी रामकृष्ण खत्री जी नेता जी सुभाष चंद्र बोस, शहीदे आजम भगत सिंह और शिरोमणि चंद्रशेखर आजाद व अन्य क्रांतिकारियों के साथी रहे। “शहीद स्मृति समारोह समिति” के संस्थापक होने के नाते उन्होंने भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री जी के सुपुत्र श्री सुनील शास्त्री जी को इस संस्था का अध्यक्ष बनाया था, जिसका मैं (सुशील पुरी) उपाध्यक्ष हूँ और आजाद हिंद फौज के लेफ्टिनेंट एस.के.वर्धन को कोषाध्यक्ष बनाया। उनके स्वर्गवास के उपरान्त कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी मुझे सौंप दी गई। जब मैं सदस्य बना तो मैंने अपने बेटा-विवेक पुरी (उम्र -10 वर्ष) एवं बेटी-मेघा (6.5 वर्ष) को भी सदस्य बनवाया था, जिससे इन बच्चों को भी देश की आजादी के बारे में प्रेरणा मिल सके कि यह आजादी हमने ब्रिटिश सरकार से प्राण आहुति देने के उपरान्त छीन कर ली है न कि मुफ्त में मिली । आजादी के लिए संघर्ष का दौर चलता रहा। खत्री जी से चौपाल में रोज अखबार पढ़ाया जाता था। उसमें लोकमान्य जी के जोशीले लेख हुआ करते थे। उससे प्रभावित होकर खत्री जी ने अपना जीवन देश सेवा के लिए समर्पित करने का संकल्प ले लिया। इन गतिविधियों से पढ़ाई में शिथिलता आ गई थी और घर में बिना बताये अकेले ही वहां से देश की आजादी के लिए निकल पड़े।
खत्री जी का जन्म 03 मार्च, 1902 को बड़े ही गरीब घर, जिला बुलढ़ाना बरार के चिखली गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम शिवलाल चोपड़ा और मां का नाम कृष्णा बाई था। उनकी मां जंगलों में जाकर दिन भर ढाक के पत्ते तोड़कर एकत्र करती थी और अपने सिर पर ढो कर लाती थी और उन पत्तों के पत्तले व दोने बनाती थी और उसे बेच कर घर का निर्वाह करती थी। खत्री जी की प्रवृति ज्यादा पढ़ने-लिखने वालों में नहीं थी, शरारती बच्चों में उनका नाम था। मार-पीट, झगड़ा उनके बाएँ हाथ का खेल था। बिरले ही कोई मास्टर होंगे जिन्होंने खत्री जी को मारा न हो। फिर भी खत्री जी कक्षा में अक्सर अच्छे नंबरों से पास होते थे, इसलिए सभी उन्हें प्यार भी करते थे।
खत्री जी के छात्र जीवन में 1917 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी उनके गाँव चिखली आये थे, लेकिन खत्री जी पर बड़ी निगरानी रखी गई थी कि वह उनकी सभा में न पहुंचे। उनको एक मास्टर साहब के घर पर रहना पड़ा था। दूसरे दिन सुबह जहाँ लोकमान्य जी रुके थे वहां पर तीन-चार साथियों के साथ जाकर उनसे मिले। खत्री जी ने मेरी मुलाकात दुर्गा भाभी से कराई थी जो क्रांतिकारियों के लिए हथियार जुटाया करती थी। चंद्रशेखर आजाद जी जिस पिस्तौल से खुद को गोली मारी थी , वह पिस्तौल उन्हें दुर्गा भाभी ने दी थी। दुर्गा भाभी के भगत सिंह की पत्नी बनने की किस्सा आज भी चर्चित है। दरअसल उन्होंने अंग्रेजों के मिशन को विफल करने के लिए 18 दिसंबर 1928 को भेष बदल कर कलकत्ता मेल से यात्रा की थी, साथ में उनका पुत्र साची भी था और क्रांतिकारी राजगुरु ने उनका नौकर बनकर यात्रा की थी। दुर्गा भाभी ने आजादी के बाद लख़नऊ कैंट में में अपना स्कूल खोल लिया था और उसी में शहीदे आजम भगत सिंह सभागार बनाया। हमारी संस्था इसमें कई कार्यक्रम कर चुकी है। कुछ दिनों बाद दुर्गा भाभी गाजियाबाद चली गई और 1999 में उनका निधन हो गया।
खत्री जी जहाँ भी जाते थे मुझे साथ लेकर जाते थे। वह कहते थे आज गवर्नर हॉउस जाना है या फलानी जगह जाना है और यदि मैं कह देता कि मैं आज व्यस्त हूँ तो वो कहते थे कि अगर तुम नहीं जाओगे तो मैं भी नहीं जाऊँगा। वह बड़े जिद्दी थे। वह मुझे अपना पुत्र मानते थे इसलिए मैं भी उनकी हर बात मानता था। जहाँ भी जाते थे मैं हमेशा उनके साथ जाता था। मैं खत्री जी को कैसरबाग़ स्थित उनके निवास स्थान स्थित खड़ी सीढ़ियों से उतार कर ले जाता था और वापस उन्हें घर छोड़ता था। लोग मुझे कहते थे कि क्या तुम बुड्ढों को ढोते रहते हो , लेकिन मुझे राष्ट्र-भक्त बुजुर्गों की सेवा करने में आनंद मिलता था।
हम पांच-छः लोगों का शिष्टमंडल होता था, जिसमें वचनेश त्रिपाठी जी (पूर्व संपादक राष्ट्रधर्म ) , लीलाधर पर्वतीय जी (भूतपूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथी) , आजाद हिंद फौज के लेफ्टिनेंट एस.के.वर्धन (सुभाष चंद्र बोस के साथी), समाजसुधारक एवं शिक्षाविद डॉक्टर कंचन लता सभरवाल , रामकृष्ण खत्री जी एवं मैं (सुशील पुरी) हुआ करते थे। खत्री जी को कोल्ड ड्रिंक बहुत पसंद थी। हजरतगंज में टंडन चाट वाले के यहां (जो डीएम ऑफिस के सामने हैं) रुक कर कोल्ड ड्रिंक जरूर पीते थे। कोल्ड ड्रिंक सीप-सीप कर के पीते थे और अपने साथियों के किस्से सुनाया करते थे। कुछ दिनों बाद मुझे खत्री जी के साथ काकोरी स्थित शहीद स्मारक स्थल पर जाने का मौका मिला था। खत्री जी अपने साथियों की प्रतिमाओं को देखकर अपने आंसुओं को नहीं रोक पाए क्योंकि उन मूर्तियों की शक्ल मूल अनुकृति से मेल नहीं खा रही थी। हमारी आँखें भी उन्हें देखकर भाव-बिभोर हो गई हम सभी के आँखों में आंसू थे जैसे की वह सब केवल उनके साथी ही नहीं बल्कि हमारे साथी भी रहे हों। अगले दिन हमारा शिष्टमंडल तत्कालीन राज्यपाल श्री मोतीलाल वोरा जी से मिला , उन्होंने उसी समय सांस्कृतिक कार्य सचिव श्रीमती रीता सिन्हा को भारतवर्ष के विभिन्न संग्रहालयों एवं लाइब्रेरियों से काकोरी शहीद सेनानियों के फोटो मंगा कर खत्री जी को दिखाकर काकोरी शहीद स्मारक में कांस्य की मूर्तियां बनवाने का निर्देश दिया। हमलोग मूर्तियों को बनवाने का प्रयत्न करते रहे और एक दिन मूर्तियां बनकर तैयार हो ही गई l लेकिन इन मूर्तियों को बनवाने में पैर की जूतियां घिस गई। खत्री जी की इच्छा थी कि उनके सामने ही इन मूर्तियों का अनावरण हो और यह शुभ कार्य राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री जी के हाथ से हो और उसकी अध्यक्षता श्री अटल बिहारी वाजपेई जी करे, उस समय अटल बिहारी जी प्रधानमंत्री नहीं बने थे ।
कुछ दिन उपरान्त खत्री जी की तबीयत काफी खराब हो गई, तब मैं देर रात को सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. विरमानी जी( जो रिश्ते में मेरे बहनोई लगते हैं) को खत्री जी के घर लेकर पहुंचा, उन्होंने बताया कि इनको हार्ट की तकलीफ नहीं है, ENT डॉक्टर को बुलाना पड़ेगा, क्योंकि इनके गले में तकलीफ है। कुछ दिनों राज्यपाल श्री रमेश भंडारी जी के सचिव खत्री जी के निवास पर पहुंचे l उस समय मैं वहां नहीं था। शायद वह पैसों से मदद करना चाहते थे,लेकिन उन्होने अस्वीकार कर दिया। उन्होंने खत्री जी से यह भी कहा कि आप पीजीआई में एडमिट हो जाइये , आपका इलाज सुचारु रूप से हो जाएगा। लेकिन खत्री जी नहीं माने और कहा कि अगर आप मेरा इलाज करवाना चाहते हैं तो घर पर ही करवा दीजिए, 2 दिन बलरामपुर अस्पताल से डॉक्टरों की टीम उनके निवास पर आई थी और दोबारा नहीं आई l उसके बाद खत्री जी का प्राइवेट इलाज चलता रहा लेकिन हालत सुधरी नहीं और उनकी तबीयत खराब होती चली गई। उनको यह आभास हो गया था कि उनका अंतिम समय आ गया है और अंततः 18 अक्टूबर 1996 को अंग्रेजी हुकूमत को झकझोर देने वाले प्रसिद्ध “काकोरी कांड” में 10 साल की सजा भुगतने वाले नायक नें सदा के लिए आंखें मूंद ली l उनकी खामोश विदाई ने लाखों देशभक्तों को स्तब्ध कर दिया। उनके जाने के बाद आजादी की लड़ाई के क्रांतिकारी और भारत की नई पीढ़ी के बीच पुल टूट गया l प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल श्री रमेश भंडारी जी को इनके मृत्यु कि सुध न रही और अपने मुलाजिम को औपचारिकता के लिए भेज दिया। उनका मनोबल बड़ा सशक्त था l वे 95 वर्ष के होते हुए भी अभी जीना चाहते थे, वह कहते थे कि मैं 125 वर्ष का होकर ही प्राण त्यागूंगा, खत्री जी के देहांत के बाद अटल जी प्रधानमंत्री बने।
हमारा शिष्टमंडल, जिसमें मैं भी था, आदरणीय स्वर्गीय लालजी टंडन ( तत्कालीन आवास विकास मंत्री एवं बिहार के पूर्व राज्यपाल) के माध्यम से प्रधानमंत्री से मिला, लेकिन उनके ज्यादा व्यस्त होने के कारण काकोरी स्मारक स्थल पर मूर्तियों के अनावरण के लिए समय नहीं दे सके और काकोरी शहीद स्थल पर क्रांतिकारियों की मूर्तियों का अनावरण प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कल्याण सिंह जी के हाथों से हो गया। लेकिन खत्री जी की अंतिम इच्छा पूर्ण ना हो सकी l अगर यह अनावरण प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति द्वारा होता तो पूरे भारतवर्ष का बच्चा-बच्चा काकोरी एक्शन के बारे में जान पाता। दिसम्बर 2023 को रामकृष्ण खत्री जी के पुत्र उदय खत्री का भी निधन हो गया था। “शहीद स्मृति समारोह समिति” क्रांतिकारियों को याद करती थी। जो अब टूट गया है। लेखक भी अब इस संसार में नहीं हैं। अब मेंहदी बिल्डिंग उदास है।