सनातन धर्म में पूर्णिमा का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष 12 पूर्णिमाएं होती हैं जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 13 हो जाती है। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। इस पुर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा की संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि आज के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है। इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फल मिलता है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीप दान, हवन, यज्ञ आदि करने से सांसारिक पाप और ताप का शमन होता है। इस दिन किये जाने वाले अन्न, धन एव वस्त्र दान का भी बहुत महत्व बताया गया है। इस दिन जो भी दान किया जाता हैं उसका कई गुणा लाभ मिलता है। मान्यता यह भी है कि इस दिन व्यक्ति जो कुछ दान करता है वह उसके लिए स्वर्ग में संरक्षित रहता है जो मृत्यु लोक त्यागने के बाद स्वर्ग में उसे पुनःप्राप्त होता है।
इसकी औपचारिक शुरुआत कार्तिक पूर्णिमा के स्नान के बाद हो जाती है । कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा व सरयू (घाघरा) के संगम में लगभग 5 लाख लोग आते है व स्नान करते है । ऐसा माना जाता है कि यहां स्नान मात्र से ही काशी में 60 हजार वर्ष तक तपस्या करने के बराबर पुण्य मिलता है। कहा जाता है कि विष्णु को लात मारने पर महर्षि भृगु को जो श्राप मिला था उससे मुक्ति इसी क्षेत्र में ही मिली थी तब से यह विमुक्त क्षेत्र कहलाता है ,यही पर तपस्या पूरी होने पर महर्षि भृगु के परम् शिष्य दर्दर मुनि के नेतृत्व में यज्ञ हुआ था जो एक माह तक चला जिसमे 88 हजार ऋषियों का समागम हुआ था। यही नही यही पर भृगु मुनि ने ज्योतिष की विख्यात पुस्तक भृगु संहिता की भी रचना की थी, ऐसा कहा जाता है कि इसी पुस्तक को संत समाज ने एक माह शास्त्रार्थ के पश्चात सर्व सम्मति से स्वीकार किया था ,उसके बाद से शुरू हुई यह परंपरा समय के साथ लोक मेला में तब्दील हो गयी । इसकी पुष्टि हमे बलियाग शब्द से भी होती है जो बलिया का अपभ्रंश है, जिसके बारे में कहा जाता है कि गंगा-यमुना के संगम पर यज्ञ हुआ इसीलिये इस पूरे क्षेत्र को बलियाग अर्थात यज्ञ का क्षेत्र कहा गया । बाद में बलिया से “ग” अक्षर का लोप हो गया और यह क्षेत्र बलिया के नाम से विख्यात हुआ ।
अगर हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विवेचना करे तो कार्तिक मास में सूर्य की किरणें वनस्पतियों में औषधीय अर्क का निर्माण करती हैं। शास्त्रों में सूर्य के बारह रूप हैं। इन्हीं रूपों से हिन्दी के महीनों का संबंध है। हर मास में सूर्य का रूप अलग है। साल के 6 महीने सूर्य उत्तरायण होते हैं और अन्य 6 महीने दक्षिणायन होते हैं। दक्षिणायन होते हुए सूर्य सृजन करते हैं और उत्तरायण के समय पालन करते हैं। सूर्य सिर्फ प्रकाश नहीं भोजन और शक्ति भी है। भोजन से प्राप्त होने वाली ऊर्जा भी सूर्य से मिलती हैं। इसलिए वेदों में सूर्य को जगत सृष्टा यानी सृजन करने वाला माना गया है और सूर्य को ही पालनकर्ता भी कहा गया है। कार्तिक महीने में सूर्यदेव धाता रूप में होते हैं। इस महीने सूर्य अपनी सप्तरश्मियों से मन, बुद्धि, शरीर और ऊर्जा को नियंत्रित करके सृजन करने के लिए प्रेरित करते हैं। इस महीने में सूर्य को अर्घ्य देने से पवित्र बुद्धि और मन का सृजन होता है। जिससे अच्छे कर्म होते हैं और उनसे मोक्ष मिलता है। कार्तिक पूर्णिमा की आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं। एजेन्सी।