– वीर विनोद छाबड़ा-बहुत दिन पुरानी बात नहीं है. संजय लीला भंसाली की ‘सांवरिया’ (2007) में सोनम कपूर की बड़ी अम्मीं यानी दादी मां को देखा होगा आपने. नई पीढ़ी तो उनको नहीं ही जानती है. हमारे जैसे पुराने सिनेमा के कीड़े भी एकबारगी नहीं पहचान पाए. अब चालीस और पचास के सालों की एक्ट्रेस को भला हम जानें भी तो कैसे? जब 1956 में उनकी अंतिम फिल्म ‘कर भला’ रिलीज़ हुई थी तब हम खुद ही छह साल के थे. बहरहाल, ‘सांवरिया’ में उन्हें देखा तो उत्कंठा उत्पन्न हुई. उन्हीं दिनों कहीं पढ़ा भी, वो बेगम पारा थीं. लीला भंसाली उन्हें ही नहीं ज़ोहरा सहगल को भी किसी तहखाने से तलाश लाये थे. बेगम पारा ठीक से चल नहीं पातीं थीं. व्हील चेयर पर आती थीं. एक किनारे बैठ कर सारा सारा दिन अपने शॉट का इंतज़ार करती रहीं. मगर कोई शिकायत नहीं की. वो अपने दौर और आज के दौर में तुलना करतीं, हाय बहुत बदल गया है ज़माना! मगर तब माहौल आज की तरह तनाव वाला नहीं था, हंसी-मज़ाक में वक़्त गुज़र जाता था. अब तो आये, हाय-हेलो की रस्म निभाई, काम निपटाया और निकल लिए. बहुत कम को जानकारी थी कि जिस दादी को वो देख रहे थे, वो चालीस और पचास के सालों की सबसे की बिंदास एक्ट्रेस थीं, इतनी ज़्यादा कि आजकल वालियां के सर भी शर्म से झुक जाएँ.
1951 में विश्व प्रतिष्ठित ‘लाइफ’ मैगज़ीन के जेम्स बुर्क ने उन पर एक स्पेशल फोटो फीचर तैयार था. सिगरेट मुंह में लगा कर ऐसे-ऐसे जिस्म उघाड़ू बोल्ड पोज़ दिए कि फिल्म इंडस्ट्री ही नहीं सारा हिंदुस्तान हिल गया. सर से पैर तक साड़ी में ढकी रहने वाली तमाम एक्ट्रेसेस परेशान हो गयीं. वो तस्वीर विकिपीडिया और तमाम नेट पर उपलब्ध है. मगर हम अपनी वाल की मर्यादा का ख्याल करते हुए यहां उसे लगा नहीं रहे हैं.
25 दिसंबर 1926 को झेलम में जन्मीं पारा के क्रिकेट प्रेमी पिता एहसानुल हक़ बीकानेर रियासत में जज थे. पारा की शुरुआती पढ़ाई भी वहीं हुई और फिर वो अलीगढ़ यूनिवर्सिटी चलीं गयी. उनका परिवार जितना रूढ़िवादी था पारा उतनी ही आधुनिक विचारों वालीं. पारा के एक भाई मंसूरुल हक़ को सिनेमा का शौक चर्राया. वो पहुंच गए सपनों की नगरी बॉलीवुड में. कुछ छोटे-मोटे रोल किये. इस बीच मंसूर का बंगाली-हिंदी सिनेमा की प्रसिद्ध एक्ट्रेस प्रतिमा दास गुप्ता से इश्क़ हुआ और फिर शादी. पारा ने भाभी को शूटिंग करते हुए और घर में फ़िल्मी लोगों का आना-जाना देखा तो चकाचौंध हो गयीं. ज़िद्द पकड़ ली कि वो भी फिल्म में काम करेंगी. उनके पुरातनपंथी परिवार में ये कतई जायज़ नहीं था, मगर बेटी के विद्रोह के सामने उन्हें झुकना पड़ा.
पारा को सबसे पहले साइन किया बॉम्बे टॉकीज़ की देविका रानी ने, 1500 रूपए महीने पर. इतनी सैलरी तो उसी दौर के नवागंतुक दिलीप कुमार को भी नहीं मिलती थी. बहरहाल, अब वो पारा से बेगम पारा हो गयी. ‘चांद’ (1944) सबसे पहले रिलीज़ हुई. उस दौर के स्टार प्रेम अदीब हीरो थे और सितारा देवी वैंप. ये हिट भी हुई. इसके बाद पारा को पीछे मुड़ कर देखना नहीं पड़ा. मार्किट में उनका भाव भी बढ़ गया. अब उनको प्रति फिल्म एक लाख रुपया मिलने लगा. केदार शर्मा ने उन्हें हाथों-हाथ लिया. पहले राजकपूर-मधुबाला के साथ ‘नीलकमल’ में और फिर ‘सुहागरात’ भारत भूषण-गीताबाली के साथ कास्ट किया. मगर वो अपनी फिल्मों या एक्टिंग की बजाये अपने स्कैंडलों के कारण ज़्यादा चर्चा में रहीं. वो परंपरागत ड्रेसेस नहीं पहनती थीं, टीशर्ट-पैंट पहन बिंदास घूमा करती थीं. इसी छवि के कारण वो आये दिन फ़िल्मी रिसालों के कवर पेज पर छायी रहीं. 1951 में ‘लाइफ’ मैगज़ीन के शूट की चर्चा तो ऊपर हो ही चुकी है.
बेगम पारा एक्टर-प्रोड्यूसर शेख मुख़्तार की फवरिट थीं. उस्ताद पेड्रो, दासी और दारा में लंबे-तगड़े शेख मुख़्तार के आधे पर ही पहुँच पातीं थीं वो. मगर फिर भी उनकी जोड़ी हिट रही और चर्चा में भी. उनकी कुछ अन्य चर्चित फ़िल्में हैं, सोहनी महिवाल, शहनाज़, झरना, लैला मजनूँ, सौ का नोट, पहली झलक, दो मस्ताने, नया घर और कर भला.
बेगम पारा ने 1956 में दिलीप कुमार के छोटे भाई नासिर ख़ान से शादी कर ली. नासिर खान आपको याद होंगे. ‘गंगा-जमुना’ और ‘यादों की बारात’ में उन्होंने अहम किरदार किये थे. क्लासिक फ़िल्में दिखाने वाले चैनलों पर ये फ़िल्में खूब दिखाई जाती हैं. बहरहाल, शादी से पहले नासिर की फ़ैमिली में अच्छा-ख़ासा ड्रामा हुआ. नासिर खान पहले से ही सुरैया नज़ीर से शादी-शुदा थे. उनके एक बेटी भी थी, नाहीद. और इधर दिलीप कुमार भी बेगम पारा को लेकर नासिर से बहुत ख़फ़ा थे. उनके ज़हन में शायद बेगम पारा की इमेज अच्छी नहीं थी. वो भाई नासिर से बेहद प्यार करते थे और उसे यों बर्बाद होते नहीं देख सकते थे. उन्हें नासिर की बच्ची नाहीद की भी बहुत फ़िक्र थी. इसलिए वो चाहते थे कि नासिर-सुरैया की शादी न टूटे. इधर बेगम पारा ने भी शर्त रख दी कि वो तभी शादी करेगी जब सुरैया को नासिर से तलाक़ दे. दिल के हाथों मजबूर नासिर ने सुरैया को तलाक़ दे दिया. बदले में बेगम पारा ने नाहीद का ख्याल रखने की भी ज़िम्मेदारी उठाई. नासिर की माली हालत अच्छी नहीं थी. तब दिलीप कुमार ने नासिर की मदद के लिए ‘गंगा-जमुना’ बनाई. बताते जाता है कि इसकी कमाई का बड़ा हिस्सा दिलीप कुमार को नहीं नासिर को मिला. पैसे को लेकर दोनों भाईयों में कुछ विवाद भी हुआ जिसके पीछे बेगम पारा का हाथ बताया गया.
1974 में नासिर खान का 49 बरस की कम उम्र में अचानक इंतकाल हो गया. बेगम पारा टूट गयी ऊपर से नाहीद के साथ अपने तीन बच्चों को पालने की ज़िम्मेदारी भी आ गयी. बेगम पारा पाकिस्तान चलीं गयीं, वहीं बसने के इरादे से. वहां उनके तमाम नज़दीकी रिश्तेदार थे. मगर ढाई साल बाद वो वापस आ गयीं. आज़ाद ख्याल बेगम पारा को तंग-नज़रिये वाली पाकिस्तानी सोसाइटी कतई पसंद नहीं आयी. उन्हें भारत विरोधी बातें भी सुननी पड़ती थीं जो उन्हें बर्दाश्त नहीं हो पा रही थीं.
भारत लौट कर बेगम पारा को फ़िल्में ऑफर हुईं मगर उन्होंने मना कर दिया, जो छोड़ दिया सो छोड़ दिया. उन्हें लगता था वो सिनेमा के बदले दौर में खुद को एडजस्ट नहीं कर पाएंगी. अपने घर एक हिस्से में उन्होंने एक ब्यूटी पार्लर खोल लिया, जिसकी आमदनी से परिवार का खर्चा चलने लगा. बताया जाता है कि दिलीप कुमार भी उनकी मदद करते रहे. एक्टर अयूब ख़ान इन्हीं के बेटे हैं और विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. संजय लीला भंसाली के बहुत इसरार पर वो ‘सांवरिया’ में कुछ शॉट देने को तैयार हुईं. वो उन्हें अगली फिल्म में भी लेने का प्लान तय कर चुके थे, मगर 09 दिसंबर 2008 को 82 वां साल पूरा होने से सोलह दिन पहले ही इंडियन सिनेमा की पहली बिंदास और ‘पिनअप गर्ल’ ने अचानक ही इस फानी दुनिया को अलविदा कह गयी थीं