जयदेव पहले संगीतकार थे जिन्होंने 3 राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किए। उन्होंने सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन फ़िल्म “रेशमा और शेरा” (1972), “गमन” (1979) और “अनकही” (1985) के लिए तीन बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता। जयदेव वर्मा हिंदी फ़िल्मों के संगीतकार थे,जिन्हें फ़िल्मों में उनके काम के लिए जाना जाता है। हम दोनों (1961), रेशमा और शेरा (1972),प्रेम पर्वत (1973) और घरौंदा (1977)। जयदेव का जन्म 3 अगस्त, 1919 को नैरोबी में हुआ और उनका लुधियाना में लालन-पालन हुआ। 1933 में जब वह 15 साल के हुए, तब वह फिल्म स्टार बनने के लिए बॉम्बे आ गये । वहां, उन्होंने वाडिया फिल्म कंपनी के लिए बाल कलाकार के रूप में आठ फिल्मों में अभिनय किया। उन्होंने प्रो. बरकत राय से लुधियाना संगीत सीखना प्रारंभ किया। बाद में, जब वे बॉम्बे गए तो उन्होंने कृष्णराव जोकर और जनार्दन जोकर से संगीत सीखा। अपने पिता के अंधेपन के कारण, उन्हें अपने फिल्मी करियर को अचानक छोड़ना पड़ा और लुधियाना वापस लौटना पड़ा और उनके युवा कंधों पर अपने परिवार की एकमात्र जिम्मेदारी का भार आ पड़ा। अपने पिता की मृत्यु के बाद,जयदेव ने अपनी बहन वेद कुमारी की देखभाल करने की जिम्मेदारी ली और बाद में उनका विवाह सतपाल वर्मा से किया। उसके बाद 1943 में वह उस्ताद अली अकबर खान से संगीत की शिक्षा के लिए वे लखनऊ चले गए।
अली अकबर खान ने 1951 में जयदेव को अपने संगीत सहायक के रूप में लिया, जब उन्होंने नवकेतन फिल्म्स के आँधियाँ (1952) और ‘हम सफर’ के लिए संगीत तैयार किया। बाद में फिल्म ‘टैक्सी ड्राइवर’ से वह संगीतकार एस डी बर्मन के सहायक बन गए। पूर्ण संगीत निर्देशक के रूप में उनका बड़ा ब्रेक चेतन आनंद की फिल्म जोरू का भाई के लिए था, उसके बाद चेतन आनंद की अंजलि थी, ये दोनों फिल्में बहुत लोकप्रिय हुईं। हालाँकि यह लोकप्रिय तो थे ही लेकिन फिल्म “हम दोनों” (1961) से तेज़ी से प्रकाश में आ गए और जयदेव सच में सुर्खियों में आ गए थे, फ़िल्म में “अल्लाह तेरो नाम”, “अभी ना जाओ छोडकर”, “मैं ज़िन्दगी का साथ” और “कभी ख़ुद पे कभी” गाने शामिल थे। उनकी दूसरी बड़ी सफलता सुनील दत्त अभिनीत मुझे जीने दो (1963) फ़िल्म के रूप में आई। जयदेव की कई फिल्में बॉक्स ऑफिस पर असफल रहीं,लेकिन उनमें से कई,आलाप,किनारे किनारे और अनकही को उनके बेहतर संगीत के लिए याद किया जाता है। उनके पास पारंपरिक और लोक संगीत को हिंदी फिल्म प्रस्तुत करने की अद्वितीय क्षमता थी, जिससे उनके समय के अन्य संगीत निर्देशकों को अनूठा फायदा मिला। उन्हें हिंदी कवि हरिवंश राय बच्चन की क्लासिक कृति मधुशाला में संगीत और मन्ना डे द्वारा गाए गए दोहे के गैर-फिल्मी एल्बम के लिए भी जाना जाता है। वे सलिल चौधरी और मदन मोहन के अलावा लता मंगेशकर के पसंदीदा रचनाकारों में थे । उन्होंने नेपाली फिल्म मैतिघर के लिए भी संगीत तैयार किया था।
जयदेव ने शादी नहीं की,वह अपनी बहन के परिवार के करीब रहे,जो बाद में यूनाइटेड किंगडम में बस गए।
उनका 68 वर्ष की आयु में 6 जनवरी 1987 को निधन हो गया। उनका अंतिम कार्य टेलीविजन श्रृंखला रामायण के लिए था।
1. अभी ना जाओ छोड़कर 2. मैं ज़िन्दगी का साथ 3. अल्लाह तेरो नाम (हम दोनों) 4. रात भी है कुछ भीगी भीगी 5. अब कोई गुलशन न उजड़े (मुझे जीने दो) 6. एक मीठी सी चुभन 7. तू चंदा मैं चांदनी (रेशमा और शेरा) 8. ये वो ही गीत हे 9. बदरा छाये रे (मान जाईये) 10. ये दिन और उनकी निगाहों (प्रेम पर्वत) 11. जैसे सूरज की गर्मी (परिणय) 12. माता सरस्वती शारदा 13. कोई गाता मैं सो जाता 14. चांद अकेला जाए सखी (आलाप) 15. इक अकेला इस शहर 16. तुम्हें हो न हो मुझको (घरौंदा) 17. तुम्हे देखती हूँ तो (तुम्हारे लिए) 18. जिंदगी मेरे घर आना (दूरियाँ)
19. आप की याद आती रही (गमन) 20. सीने मैं जलन (गमन) हिंदी अनुवाद: मानसिंह सीलण