पांच जनवरी 1895 को विद्यान्त कालेज के संस्थापक विक्टर नारायण विद्यांत का जन्म बंगाल के जिला नदिया स्थित शान्तिपुर, कृष्णानगर में हुआ था। सरस्वती और लक्ष्मी की उनके ऊपर अपार कृपा थी। यह उन्हें विरासत में मिली थी। उनके पितामह वाग्देवी के भक्त और शिक्षा के महान अनुरागी थी। उनकी विद्वता के कारण ही उन्हें ‘विद्यान्त’ उपाधि से विभूषित, सम्मानित किया था। यह विद्या-अर्जन की पराकाष्ठा का प्रतीक था।
इसका तात्पर्य था कि जहां किताबी विद्या का अन्त हो जाता है, अपरा विद्या का प्रारम्भ होता है। इसके बाद इस परिवार ने विद्यान्त शब्द को उपनाम के रूप में अपना लिया। विक्टर नारायण विद्यान्त को सरस्वती की यह कृपा विरासत में मिली थी। जिसे उन्हेंने आजीवन संभाल कर रखा, उसे व्यापक स्वरूप दिया, तथा चिरस्थायी बनाने का प्रयास किया। इनके पिता हरिप्रसाद विद्यान्त और चाचा रामगोपाल विद्यान्त पर लक्ष्मी की कृपा थी। ये लोग अपनी जन्मभूमि छोड़कर लखनऊ आ गये थे। दोनों लोगों ने निर्माण कार्य को अपनी आजीविका बनाई।
लखनऊ की अनेक भव्य इमारतें इनके निर्माण-कौशल के दर्शन कराती है। चारबाग रेलवे स्टेशन की भव्य इमारत, हजरतगंज का इलाहाबाद बैंक, सेन्ट्रल बैंक, पक्का पुल आदि का निर्माण इन्होने किया था। ये सभी निर्माण कार्य अपनी मजबूती और भव्यता के लिये आज भी प्रसिद्ध है। इस व्यवसाय में उन्होंने बड़ी सम्पत्ति अर्जित की थी। इस प्रकार विक्टर नारायण विद्यान्त को लक्ष्मी की कृपा भी विरासत में मिली थी। बचपन से ही सुख-सुविधा में रहे थे।
राजसी वैभव में इनका प्रारम्भिक जीवन बीता। अपने पिता की ये अकेली संतान थी। चाचा के कोई सन्तान नहीं हुई। पिता और चाचा दोनों की सम्पत्ति के यह वारिस थे। युवावस्था में इन्होंने पैतृक कार्य को बड़ी निपुणता से आगे बढ़ाया। लेकिन बाद में धन-वैभव से इन्हो विरक्ति होने लगी। शिक्षा के प्रसार को इन्हांेने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। उस समय देश में स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था। स्वदेशी और स्वशिक्षा का विचार उसमें शामिल था। स्वशिक्षा व्यवस्था के माध्यम से जनजागरण करने वाले अनेक लोग थे। यह स्वतंत्रता संग्राम की ही एक अपरोक्ष धारा थी।
विक्टर नारायण विद्यान्त राष्ट्रवाद की इस धारा में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने का निर्णय ले चुके थे। वह धीरे-धीरे स्वेच्छा से राजसी वैभव का त्याग करने लगे। विद्यालय खोलने के लिये सम्पत्ति का दान कर दिया। जिस महंगे विदेशी वाहन पर चलते थे, उसे रामकृष्ण मिशन को भेंट कर दिया। पैदल या रिक्शे पर चलने लगे। अभाव या गरीबी कष्टप्रद होती है। लेकिन सम्पदा का दान करके स्वेच्छा से अपनाई गयी निर्धनता विलक्षण होती है। समाज के हित में ऐसा करने वाले कम ही लोग होते हैं।
लखनऊ में 1938 में उन्होंने विद्यान्त हिन्दू स्कूल की स्थापना की। 1942 में हाई स्कूल, 1946 में इण्टर और 1954 में डिग्री कालेज की स्थापना हुई। लखनऊ में ही शशिभूषण बालिका स्नातक विद्यालय की इन्होंने स्थापना की। इसके अलावा बनारस के एंग्लो-बंगाली कालेज, बंगाल में कृष्णानगर विद्यालय, रॉची अस्पताल, अल्मोड़ा सैनीटोरियम आदि अनेक संस्थाओं को वित्तीय सहायता पहुंचाते थे।
विद्यान्त जी साहित्य, कला, रंगमंच से भी जुड़े थे। वह बंग साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष थे। इसके अलावा कालीबाड़ी ट्रस्ट, बंगाली क्लब, श्री हरिसभा सांस्कृतिक संस्थानों को सहायता देते थे।