इसे यूँ कहना ही शायद उचित रहेगा कि अब से पहले वाले दौर में हम किस तरह से स्वाभाविक रूप से सोचते थे, विचार करते थे, बातें करते थे और समस्याओं व उपलब्धियों पर माक़ूल चर्चा किया करते थे. हमेशा ही एक खुलापन और अपनी ही तरह की आज़ादी हमारे सोचने के ढंग को मिली हुई थी. समय की कोई विशेष पाबंदी नहीं थी और अलग अलग विचारों को अलग अलग नज़रिये से सोचा व समझा जाता रहा है. हाँ, ये सब सच है क्यूंकि एक ऐसा दौर भी गुज़रा है. उस वक़्त में हमारे समाज को मिलने वाले मानव संसाधन स्वाभाविक रूप से विकसित हुआ करते थे और हर तरह के मशीनीकरण से स्वतंत्र भी. शायद यहीं वजह थी कि लोगों में ठहराव था और किसी भी बात को लेकर जल्दबाज़ी बिल्कुल नहीं थी. अब इसी संदर्भ में जब हम मौजूदा दौर में नज़र डालते हैं तो पाते हैं कि अभी तक जिन जिन ख़ासियतों का ज़िक्र किया गया है वे सब धीरे धीरे आज के दौर से ख़त्म हो रही हैं या यूँ भी कह सकते हैं कि ख़त्म होने की कगार पर हैं.
वो जो सोचने के ढंग में स्वाभाविकता हम सबको हासिल थी वो अब कम होती जा रही है. इसलिए सवाल उठना लाज़मी है कि हम सबका भविष्य कैसा होगा और किस तरह के समाज की हम रचना करेंगे ? जिस प्रकार से हममें से ज़्यादातर का और तक़रीबन समूचे युवा वर्ग का मशीकरण हो रहा है तो आगे आने वाले वक़्त में क्या होगा? ये एक बेहद गंभीर और बड़ा सवाल है जो हमें धीरे धीरे घेर रहा है.
आज जब हम सभी इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं. तक़रीबन हमारे सभी युवाओं के पास स्मार्टफोन है जिसका वे अपनी ज़रूरत के हिसाब से बहुत कम इस्तेमाल कर पा रहे हैं मगर किसी अदृश्य ताक़त के हिसाब से पूरा इस्तेमाल कर रहे हैं. इसी अदृश्य ताक़त को ही इंटरनेट की दुनिया में अल्गोरिथम के नाम से जाना जाता है. पी.के. नायर अपनी किताब “कल्चरल स्टडीज़” में लिखते हैं कि सोशल मीडिया (फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम आदि) पर उसे देखने वालों की पसंद का ही कंटेंट परोसा जाता है. सोशल मीडिया यूज़र्स की पसंद और नापसंद का विशेष ध्यान रखा जाता है. हमारे युवाओं के साथ यहीं सब कुछ तो हो रहा है. भारत में हम सब उस समाज में पले बढ़े हैं जहां पसंद और नापसंद का सदैव से मिलन रहा है. जब टीवी पर कोई पसंदीदा कार्यक्रम आ रहा होता था तो अक्सर उसी वक़्त बिजली चली जाती थी और हम अपना पसंदीदा कार्यक्रम नहीं देख पाते थे. मगर हम हताश नहीं होते थे और इस तरह की अलग अलग परिस्थितियों में अपना काम चलाते रहते थे. इसकी वजह यही थी कि सामाजिक रचना के कारण हमारे अंदर अनुकूल व प्रतिकूल हालातों के लिए समान भाव रहता था और हम प्रतिकूल हालातों में भी सकारात्मकता ढूंढ ही लेते थे ये कहकर कि “जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है “.
मगर आज का समाज इस मशीनीकरण के दौर में तेज़ी से इन सब स्वाभाविक गुड़ों से दूर होता जा रहा है. अब जब आज के युवाओं को केवल उनकी पसंद का ही कंटेंट परोसा जायेगा तो वे कहां स्वीकार कर पाएंगे ज़रा भी कम पसंद आने वाले कंटेंट को. इसको ऐसे भी समझा जा सकता है कि हम सब अपने बच्चों को रोज़ाना ही उनकी पसंद का शाही भोजन परोस रहे हैं, उनके दिमाग़ को एक ही प्रकार के भोजन को मांगने के लिए तैयार कर रहे हैं. अब ऐसी हालत में जब उनको उनकी पसंद के इतर कुछ भी परोसा जायेगा (चाहें वो कितना भी सेहतमंद हो) वे कभी भी स्वीकार कर ही नहीं पाएंगे. मशीनीकरण के दौर में यहीं सब तो हो रहा है. आपको सोशल मीडिया में लगातार आप की ही पसंद की चीज़े दिखाकर आपके दिमाग़ को और आपकी सोच को सीमित किया जा रहा है. आपके भीतर से विपरीत पक्ष को या कम पसंद वाली बातों को क़ुबूल करने की ताक़त को कम किया जा रहा है. आज का युवा जब अपने फ़ोन पर रील देख रहा होता है तो 20 सेकंड की रील देखना है या नहीं वो शुरू के केवल 1 या दो सेकंड में तय कर लेता है. अगर पसंद की रील नहीं है तो 1 सेकंड से भी कम वक़्त में वो उसे बदल देता है या यूँ कहे कि कम पसंद की चीज को देख ही नहीं पाता. फ़ोन का कंट्रोल ज़रूर उस बच्चे के हाथ में है मगर उस बच्चे का सारा कंट्रोल अल्गोरिथम के द्वारा किया जा रहा है. अल्गोरिथम के कारण ही सोशल मीडिया एक लत बनती जा रही है और समाज को खोखला कर रही है. इंटरनेट की दुनिया में कोई भी ऐसा पोर्टल नहीं है जो अल्गोरिथम से अछूता हो. हमारी वो जो क़ुदरती सोचने समझने की ताक़त थी वो समाप्त हो रही है और हम मशीन में तब्दील होते जा रहे हैं.
ये हालात समाज के लिए हानिकारक हैं और भविष्य को तबाह कर रहे हैं. अगर हम अपने आने वाले कल को संवारना चाहते हैं और अपने क़ुदरती चिंतन और विवेक को ज़िंदा रखना चाहते हैं तो यहीं वो वक़्त है जब हमें ख़ुद को कंट्रोल करना होगा और अल्गोरिथम के जाल से बचना होगा. यदि हम ऐसा नहीं कर पाए तो पतन निश्चित है. तो आइये इस नए साल हम सब ये प्रण करें कि हम सब अल्गोरिथम के बने जाल में नहीं फसेंगे और अपनी क़ुदरती रूप से सोचने व समझने की ताक़त को सुरक्षित रखेंगे.शावेज़ -प्रभारी, सेवारत प्रशिक्षण विभाग,ज़िला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान,रामपुर (उ0प्र0)
