हुमायूँ दुसरे मुग़ल शासक थे नसीरुद्दीन हुमायूँ 6 मार्च 1508 जिन्होंने उस समय आज के अफगानिस्तान, पकिस्तान और उत्तरी भारत के कुछ भागो पर 1531-1540 तक और फिर दोबारा 1555-1556 तक शासन किया था. उनके पिता बाबर की ही तरह उन्होंने भी अपने साम्राज्य को जल्द ही खो दिया था लेकिन बाद में पर्शिया के सफविद राजवंशियो की सहायता से पुनः हासिल कर लिया था. 1556 में उनकी मृत्यु के समय, मुग़ल साम्राज्य तक़रीबन दस लाख किलोमीटर तक फैला हुआ था.
हुमायूँ दिसम्बर 1530 में अपने पिता बाबर के उत्तराधिकारी बने. 23 साल की उम्र में हुमायूँ उनके पिता के साम्राज्य पर शासन करने लगे थे, उस समय उनको ज्यादा अनुभव तो नही था लेकिन उनकी सैन्य शक्ति से सभी परिचित थे. उनके चुलत भाई कामरान मिर्ज़ा ने अनुवांशिक रूप से काबुल और लाहौर को हथिया लिया था और साथ ही अपने पिता के उत्तरी भागो को भी हथिया लिया था. मिर्ज़ा, हुमायूँ के सबसे बड़े प्रतिस्पर्धी साबित हुए थे.
हुमायूँ ने बाद में पश्तून से भी शेर शाह सूरी से हारकर अपने अधिकार को खो दिया था लेकिन बाद में पर्शियन की सहायता से उन्होंने उसे दोबारा हासिल कर लिया था. हुमायूँ ने अपने शासनकाल में मुग़ल दरबार में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव भी किये थे. कम समय में ही हुमायूँ में मुग़ल साम्राज्य को बढाया. बाबर के बेटो में हुमायूँ सबसे बड़ा था. वह वीर, उदार और भला था लेकिन बाबर की तरह कुशल सेनानी और निपुण शासक नही बन पाया.दिल्ली के तख़्त पर बैठने के बाद यह हुमायूँ का दुर्भाग्य ही था की वह अधिक दिनों तक सत्ताभोग नहीं कर सका. 1556 में “दीनपनाह” भवन में स्थित पुस्तकालय की सीढियों से गिरने के कारण हुमायूँ की मृत्यु हो गयी.हुमायूँ के बारे में इतिहासकार लेनपुल ने कहा है की, “हुमायूँ गिरते पड़ते इस जीवन से मुक्त हो गया, ठीक उसी तरह, जिस तरह तमाम ज़िन्दगी गिरते पड़ते चलता रहा था”.एजेन्सी।
