मुबारक साल गिरह
स्वप्निल संसार’ । डैनी का असली नाम शेरिंग फिंटसो डेंगजोंग्पा है, जो की बोलना काफी मुश्किल था इस लिए जया बच्चन ने उन्हें सरल नाम दिया ‘डैनी’। हिन्दी फिल्मों के साथ साथ उन्होंने नेपाली, तमिल, बंगाली और तेलुगु फिल्मों में भी काम किया है। उन्होंने हॉलीवुड की फिल्मों में भी काम किया है। डैनी को पद्मश्री सम्मान भी मिल चुका हैं । वे अपने खलनायक और सहायक अभिनेता के किरदारों के लिए जाने जाते हैं । उन्होंने कई फिल्मों में अपनी खलनायकी से लोगों के दिलों में दहशत पैदा की है।
डैनी का जन्म सिक्किम में 25 फरवरी 1948 को बौद्ध परिवार में हुआ था । डैनी की शुरूआती पढ़ाई सिक्किम में हुई । इसके बाद की पढ़ाई उन्होंने बिरला विद्या मंदिर और सेंट जोसेफ कॉलेज, दार्जिलिंग से पूरी की ।
सनम बेवफा और खुदा गवाह फिल्मों के दौरान उन्होंने उर्दू सीखी। डैनी ने अपना फिल्म करियर नेपाली फिल्म सैइनो से शुरू किया था। बचपन से उनकी इच्छा भारतीय सेना में भर्ती होने की थी। पुणे के आर्म्ड फोर्सेस मेडिकल कॉलेज के लिए उनका चयन भी हो गया था। इसी दौरान फिल्म एंड टीवी इंस्टीट्यूट के एक्टिंग कोर्स में प्रवेश हो जाने से वे वहाँ चले गए। बम्बइया सिनेमा में उन्होंने बी-ग्रेड की फिल्मों से शुरुआत की। पहली फिल्म थी फिल्मकार बी.आर.इशारा निर्देशित जरूरत (1971)। इसके बाद गुलजार की फिल्म मेरे अपने मिली। इस फिल्म से डैनी के अंदर बैठे कलाकार को सुकून मिला। लेकिन उन्हें सफलता मिली बी.आर. चोपडा की फिल्म धुँध (1973) से। इस फिल्म के मिलने की कहानी दिलचस्प है।जब डैनी पुणे इंस्टीट्यूट में पढाई कर रहे थे तो चोपडा साहब परीक्षक बनकर आए थे। डैनी का अभिनय देखकर वे प्रभावित हुए और भविष्य में कभी फिल्म में ब्रेक देने की बात भी उन्होंने कही थी। फिल्म धुँध की कास्टिंग के दौरान डैनी उनसे मिले। चोपडा साहब ने पुलिस इंसपेक्टर का रोल ऑफर किया मगर डैनी को नायिका के पति का रोल पसंद था। चोपडा साहब ने कहा कि पति के रोल के लिए उनकी उम्र छोटी है। डैनी ने दूसरे दिन मेकअप मैन पंढरी दादा से उम्रदराज पति का गेटअप बनवाया और सीधे चोपडा साहब के सामने जाकर हाजिरी दी। डैनी का फौरन सिलेक्शन हो गया। इस तरह धुँध फिल्म में एक कुंठित, विकलाँग और लाचार पति के रोल को दर्शकों ने बेहद पसंद किया। खासतौर पर उनके द्वारा कैमरे की ओर फेंकी गई प्लास्टिक की प्लेट वाले सीन पर सिनेमाघरों में देर तक तालियाँ बजाई गईं। यह प्लेट फेंकने वाला सीन डैनी के दिमाग की उपज थी। इस फिल्म ने उन्हें स्टार विलेन का दर्जा दिलाया। धुँध फिल्म के बाद डैनी को उसी तरह के अनेक रोल ऑफर किए गए, लेकिन प्रत्येक ऑफर पर सोच-समझकर फैसला वे लेते रहे।
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उन्होंने पुराने दिग्गज दिलीप कुमार और वर्तमान नायक आमिर खान की तरह रोल पसंद करने के मामले में अपने चूजी को बनाया। कम काम और बेहतर परिणाम यह डैनी की सफलता का मूलमंत्र रहा है। फिल्म चोर मचाए शोर (1974) में उनके साथी नायक शशि कपूर थे। डैनी ने लोकल दादा का रोल निभाकर दर्शकों को खुश किया था। इस फिल्म से शशि कपूर से उनकी दोस्ती हो गई, जो अगली फिल्म फकीरा (1976) में परवान चढी। फकीरा फिल्म के कालखण्ड में खोया-पाया फार्मूले पर धडाधड फिल्में बन रही थीं। निर्माता एन.एन. सिप्पी ने डैनी को शशि कपूर के भाई का रोल ऑफर किया। डैनी को बडा आश्चर्य हुआ कि चॉकलेटी चेहरे के धनी शशि कपूर के भाई के रूप में दर्शक उन्हें कैसे स्वीकार करेंगे? लेकिन सिप्पी अपनी जिद पर अड गए। मजबूर होकर डैनी, शशि के भाई बने। फिल्म के आखिरी सीन में खोया भाई शशि उन्हें मिलता है। पहले वे उसकी पिटाई कर समुद्र में फेंक देते हैं। फिर यह सोचकर कि अरे वह तो उनका सगा भाई है, वे समुद्र में डूबकी लगाकर उसे निकालते हैं। भावुक होकर दोनों भाई भरत-मिलाप करते हैं। इस भावना-प्रधान सीन को देख दर्शक भूल गए कि डैनी जैसे चेहरे वाला शशि का भाई कैसे हो सकता है। इस फिल्म से डैनी ने यह सबक सीखा कि रोल कैसा भी हो, अगर पसंद है तो मना नहीं करना चाहिए। फिल्मी दुनिया में अठारह साल गुजारने के बाद डैनी को पहली बार फिल्म अग्निपथ (1991) में अमिताभ बच्चन के साथ काम करने का मौका मिला।
अमिताभ इस दौर में सुपरस्टार की हैसियत पा चुके थे। डैनी चाहते थे कि पहली बार में वे अपने को अमिताभ के सामने प्रूव करें वरना हमेशा बौना-एक्टर होकर रह जाएँगे। शूटिंग के पहले दिन डैनी अपने कमरे में चहलकदमी कर रहे थे और पटकथा मुहैया नहीं कराने पर एक सहायक निर्देशक पर नाराज हो रहे थे। अमिताभ के सामने वे पूरी तैयारी के साथ जाना चाहते थे। पास के कमरे में ठहरे अमिताभ सब सुन रहे थे। सहायक के जाने के बाद वे खुद डैनी के कमरे में आए। पटकथा की कॉपी दी और कहा-चलो, एक बार रिहर्सल कर लेते हैं। अपने सामने इतने महान कलाकार को इतना विनम्र पाकर डैनी बर्फ की तरह पिघल गए। उनके मन में अमिताभ के प्रति सम्मान कई गुना बढ गया। इसके बाद हम और खुदा गवाह जैसी फिल्मों में वे फिर साथ दिखाई दिए। डैनी फिल्म खुदा गवाह को अग्निपथ के दौरान अमिताभ से हुई दोस्ती का एक्सटेंशन मानते हैं। वैसे अग्निपथ फिल्म बॉक्स ऑफिस पर असफल रही थी। डैनी भी फिल्म के इस दोष को स्वीकार करते हैं कि अमिताभ से आवाज बदलवाकर निर्देशक ने सबसे बडी भूल की थी। अजनबी (1993) फिल्म की कथा-पटकथा स्वयं डैनी की लिखी हुई थी। अपने मित्र रोमेश शर्मा के साथ नए कलाकारों को लेकर अजनबी की शूटिंग पूरी की गई। लेकिन फिल्म को कोई खरीददार नहीं मिला। लिहाजा मजबूर होकर उसे टीवी धारावाहिक में बदला गया। पहले एपिसोड से ही अजनबी को बेहतर रिस्पांस मिला। बावन एपिसोड के बाद तेइस एपिसोड का विस्तार मिलना अजनबी की लोकप्रियता और श्रेष्ठता का प्रमाण है। फिल्म खुदा गवाह के बाद डैनी ने फिल्मों में काम करना कम कर दिया क्योंकि विलेन के रोल पहले जैसे दमदार नहीं लिखे जाने लगे। हीरो ही विलेन बनने लगे। इसलिए डैनी ने जिस ऊँचाई को पाया था, उससे निचले पायदान पर खघ्े होकर काम करना उनके जैसे खुद्दार व्यक्ति को गवारा नहीं था। वे पहले से ज्यादा चूजी हो गए। 2000 में बोनी कपूर की बडे बजट की फिल्म पुकार में आतंकवादी के रोल में वे नजर आए, जिसकी जिंदगी का मतलब पूरे भारत को खत्म करना रहता है। इस फिल्म का निर्देशन राजकुमार संतोषी ने किया था। संतोषी ने उन्हें घातक और चाइना गेट जैसी फिल्मों में भी सशक्त रोल निभाने को दिए। 2002 में उन्हें फिल्म 16 दिसंबर का ऑफर मिला।मणिशंकर नामक डायरेक्टर का नाम तक उन्होंने कभी नहीं सुना था। मना करने का इरादा लेकर वे मणिशंकर से मिले। लगातार चार घंटे तक जब उन्होंने अपना रोल फ्रेम दर फ्रेम सुना, तो फौरन हाँ कर दी। हालाँकि फिल्म लो बजट थी। फिल्म को चारों तरफ से नोटिस किया गया और डैनी के रोल की सराहना हुई। सिक्किम की राजकुमारी गावा से उनका विवाह हुआ है और उनका एक बेटा रिनझिंग और बेटी पेमा है। डैनी अपनी शर्तों पर काम करते हैं, अपने ही अंदाज में जिंदगी जीते हैं। वे रविवार के दिन कभी शूटिंग नहीं करते हैं। मार्च-अप्रैल-मई में अपने परिवार के साथ छुट्टियाँ मनाते हैं।डैनी को शोले फिल्म में गब्बर सिंह का रोल ऑफर हुआ था, मगर फिरोज खान की फिल्म धर्मात्मा की फिल्म की शूटिंग में व्यस्त होने के कारण उन्होंने मना कर दिया, इसका डैनी को कोई अफसोस नहीं है। डैनी ने लता मंगेशकर, आशा भोसले और मोहम्मद रफी के साथ युगल गाने गाए हैं। उनकी दो बीयर फैक्ट्रियाँ हैं। उनका भाई इनकी देखरेख करता है। डैनी अपने सेहत के प्रति सबसे अधिक सावधान रहते हैं। उनका तर्क है कि यदि आप बीमार हैं, तो फिर करोड पति-अरबपति होने का कोई अर्थ नहीं है। घुडसवारी के शौकीन डैनी ने फिर वही रात नाम से एक फिल्म निर्देशित की थी। बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह पिटने के बाद उन्होंने दोबारा डायरेक्टर के घोडे पर सवार होने से तौबा कर ली।
डैनी की शादी गावा से हुई है। उनके दो बच्चे हैं-रिनजिंग डैंगजोंगपा और पेमा डैंगजोंगपाा। उनके फ़िल्मी करियर की शुरूआत फिल्म ‘ ‘मेरे अपने’ से हुई थी । उन्होंने पहली प्रमुख नकारात्मक भूमिका फिल्म ‘धुंध’ में निभाई थी । डैनी ने लगभग 190 फिल्मों में काम किया है । इन्होने अपनी पहचान द बर्निंग ट्रेन (1980), बुलंदी (1980), अँधा कानून (1983), गंगा मेरी माँ (1983), फरिश्ता (1984), ऐतबार (1985), जीते है शान से (1988), जंगबाज (1989), शेषनाग (1990), अग्निपथ (1990), सनम बेवफा (1991), हम (1991), खुदा गवाह (1992), बलवान (1992), विजयपथ (1994), आर्मी (1996), घातक: लेथल (1996), इंडियन (2001), रोबोट (2010), बैंग बैंग (2014), जय हो (2014) और बेबी (2015) जैसी हिट फिल्मों से बनाई।