भय्यूजी महाराज ने की आत्महत्या
इंदौर। मध्य प्रदेश में आध्यात्मिक गुरु भय्यूजी महाराज ने खुद को गोली मारकर खुदकुशी कर ली है। उन्होंने सिर में गोली मारी थी। उन्हें इंदौर के बॉम्बे अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। भय्यूजी महाराज उस वक्त सुर्खियों में आए थे जब इन्होंने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे का अनशन तुड़वाने में अहम रोल निभाया था। भय्यूजी का वास्तविक नाम उदय सिंह शेखावत है, लेकिन मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में इन्हें लोग भय्यूजी महाराज के नाम से जानते हैं। भय्यूजी महाराज एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु थे जो गृहस्थ जीवन जीते थे। उनकी एक बेटी कुहू है। हाल ही में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इन्हें राज्यमंत्री का दर्जा दिया था, जिसे इन्होंने लेने से इनकार कर दिया था। भैय्यूजी महाराज मॉडल भी रह चुके हैं मॉडलिंग का करियर छोड़कर उन्होंने आध्यात्म का रास्ता चुना। वे सियाराम शूटिंग के मॉडल रह चुके हैं। वह दूसरे आध्यात्मिक गुरु से बिल्कुल अलग थे। वह कभी खेतों की जुताई करते देखे जाते थे तो कभी क्रिकेट खेलते हुए। घुड़सवारी और तलवारबाजी में भी वे पारंगत थे। (हिफी)
राहुल गांधी पर आरोप तय
मुंबई। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एक बार फिर कानूनी शिकंजे में फंसते नजर आ रहे हैं। उनके खिलाफ महाराष्ट्र के भिवंडी की अदालत ने संघ से संबंधित आपराधिक मानहानि मामले में आरोप तय कर दिए। अदालत ने ये आरोप आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत तय किए। इस मामले की अगली सुनवाई 10 अगस्त को होगी।
मानहानि केस में राहुल भिवंडी कोर्ट में पेश हुए, जहां उन्होंने बयान दर्ज कराते हुए अपनी सफाई में कहा कि मैं दोषी नहीं हूं। राहुल के साथ पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण और अशोक गहलोत भी अदालत में मौजूद थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के खिलाफ राहुल गांधी की कथित टिप्पणियों को लेकर उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मानहानि मामले में आज उनकी अदालत पेशी होनी थी। राहुल गांधी ने छह मार्च, 2014 को एक चुनावी रैली में महात्मा गांधी की हत्या को आरएसएस से जोड़ा था। पिछले सप्ताह मुंबई के कांग्रेस प्रमुख संजय निरुपम ने कहा था कि राहुल गांधी भिवंडी अदालत में करीब 11 बजे पेश होंगे। दो मई को कोर्ट ने कांग्रेस अध्यक्ष से 12 जून को हाजिर रहने को कहा था। (हिफी)
नवीन अब बना रहे विधान परिषद
भुवनेश्वर। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने राज्य में विधान परिषद गठन की तैयारी की ओर कदम बढ़ा दिया है। विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराके लोकसभा भेजा जाएगा, जहां पर मानूसन सत्र में मंजूरी मिलने की संभावना है। विपक्ष इसे असंतोष दबाने को तुष्टीकरण के नजरिये से देख रहा है। सवाल है कि आखिर चुनाव से ठीक एक साल पहले ओडिशा सरकार में विधान परिषद के गठन की जरूरत क्यों महसूस की जा रही है। राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि मुख्यमंत्री नवीन पटनायक असंतुष्टों और राज्य के प्रमुख प्रभावशाली बौद्धिक वर्ग को विधानपरिषद में समायोजित करेंगे।मानसून सत्र में इसे विधानसभा में पारित करके लोकसभा भेजा जा सकता है। ओडिशा विधानसभा में सदस्यों की संख्या 147 के अनुपात के हिसाब से 49 सदस्य तक विधानपरिषद में आ सकते हैं। हालांकि इसका एप्रूवल तो मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने वर्ष 2015 में ही दे दिया था और परिवहन मंत्री नृ¨सह चरण साहू की अध्यक्षता में बीजद, भाजपा तथा कांग्रेस के विधायकों की टीम बनाकर बिहार और आंध्र प्रदेश का दौरा करके कामकाज समझने को भेजा था। इसके बाद यह प्रयास ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। अब इसके गठन के प्रस्ताव पर स्वीकृति की मुहर लगाकर आधिकारिक तौर पर प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। (हिफी)
त्रिवेन्द्र ने बनायी निकाय चुनावों की रणनीति
देहरादून। थराली उपचुनाव के नतीजे से सबक लेकर और नगर निकाय चुनाव के लिए नई सियासी बिसात बिछाते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सभी जिलों के प्रभारी मंत्रियों के पत्ते फेंट दिए हैं। खासतौर पर कांग्रेसी पृष्ठभूमि के मंत्रियों के कद का ख्याल तो बदस्तूर रखा गया है, लेकिन जिम्मेदारी में कटौती कर दी। हैसियत के मामले में मंत्रिमंडल में नंबर-दो स्थान पर माने जाने वाले वरिष्ठ काबीना मंत्री सतपाल महाराज और दूसरे वरिष्ठ मंत्री यशपाल आर्य को दो-दो जिलों के बजाय अब सिर्फ एक-एक जिले का प्रभार सौंपा गया है। वहीं राज्यमंत्री रेखा आर्य को चंपावत जिले के भाजपा विधायकों से तालमेल न बिठा पाना भारी पड़ा तो चंपावत और पिथौरागढ़ जिलों में दबंग मंत्री अरविंद पांडेय को प्रभार दिया गया। राज्यमंत्री डॉ धन सिंह रावत को थराली में की गई मेहनत का ईनाम दो जिलों के प्रभार के रूप में हासिल हुआ है। दो-दो जिलों का प्रभार अब सिर्फ भाजपा पृष्ठभूमि के मंत्री ही संभाल रहे हैं। भाजपा हाईकमान मंत्रियों की परफॉरमेंस तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने सहयोगियों की सियासी कुव्वत पर भी पैनी निगाह रखे हुए हैं। थराली उपचुनाव में जिसतरह सरकार को अपनी साख बचाने के लिए ताकत झोंकनी पड़ी, इससे खासतौर पर पर्वतीय क्षेत्रों में भाजपा के लिए बढ़ती परेशानी को साफतौर पर महसूस किया जाने लगा है। इससे सबक लेकर सरकार अब नगर निकाय चुनाव में हालात को संभाले रखने पर जोर दे रही है। (हिफी)