दूध जैसे अमृत को आक्सीटाॅसिन से बना रहे हैं जहर-सदियों से दूध हमारी भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है। हम सब सुबह के नाश्ते में व सोने से पहले दूध लेना पसंद करते हैं। दूध को सम्पूर्ण आहार कहा जाता है क्योंकि यह शरीर के लिए आवश्यक अधिकांशतः पोषक तत्व जेसे विटामिन, वसा, कैल्शियम, प्रोटीन, खनिज, फास्फोरस, पोटैशियम आदि प्रदान करता है। पर क्या आपको पता है कि जो दूध गाय के थन से आ रहा है वह पूर्णतः सुरक्षित है? क्या हम पशु से दूध उतारने के लिए खतरनाक इन्जेक्शन आक्सीटाॅसिन का प्रयोग तो नहीं करते हैं। आइये हम इसके बारे में चर्चा करते है।
आक्सीटाॅसिन क्या है?
आक्सीटाॅसिन एक हारमोन (रसायन) है यह हारमोन पशु के मस्तिष्क की एक ग्रन्थि हाइपोथेलेमस में बनता है व उसके बाद मस्तिष्क की एक अन्य ग्रन्थि ‘पिटीट्यूरी’ में इक्ट्ठा होता है। पशु के शरीर में इसकी आवश्यकता होने पर यह विभिन्न अंगों तक खून के माध्यम से पहुंचता है। आक्सीटाॅसिन का पशुओं में उपयोग- आक्सीटाॅसिन हारमोन का पशु के शरीर में उत्पादन दो प्रमुख कार्यो के लिए होता है। पशु के प्रसव में सहायक – जब पशु की गर्भावस्था पूरी हो जाती है उस समय शरीर में आक्सीटाॅसिन हारमोन की मात्रा कई गुना बढ़ जाती है यह हारमोन पशु के गर्भाशय की दीवारों में संकुचन पैदा करता है जिसके प्रभाव से प्रसव के दौरान बच्चा धीरे-धीरे बाहर आता है यदि किसी कारणवश पशु के शरीर में इस हारमोन की कमी होती है या अन्य कारणवश प्रसव के दौरान गर्भाशय में आवश्यक संकुचन नहीं होता है व प्रसव में परेशानी होती है तब पशु चिकित्सक आक्सीटाॅसिन का इन्जेक्शन सुचारू रूप से प्रसव कराने के लिए देते है। पशु में दूध उतारने में सहायतक – पशु के अयन के अन्दर दुग्ध ग्रन्थियां (एल्बियोकलाई) होती है। इन्हीं दुग्ध ग्रन्थियों में दूध रहता है। यह दुग्ध ग्रन्थियां चिकनी पेशी (मायोएपिथियल) कोशिकाओं से घिरी रहती हैं आक्सीटाॅसिन हारमोन आॅयन की चिकनी पेशी कोशिकाओं को उत्तेजित कर संकुचन पैदा करता है जिससे दूध धीरे-धीरे थनों की ओर बढ़ता है। प्राकृतिक तौर पर जब पशु का बच्चा दूध पीने के लिए थन को दबाता है या ग्वाला दूध उतारने के लिए थनों को सहलाता है तब आक्सीटाॅसिन हारमोन का श्राव अयन में बहुत तेजी से होता है। इससे अयन की दुग्ध प्रन्थियों में संकुचन पैदा होता है जिसके कारण दूध थनों में उतरना शुरू हो जाता है। इस तरह से आक्सीटाॅसिन हारमोन पशु के शरीर में बनता है व पशु का शरीर आवश्यकतानुसार दूध उतारने हेतु व प्रसव में इसका उपयोग कर लेता है।
पशुपालक आक्सीटाॅसिन इन्जेक्शन क्यों लगाते हैं?
पशु पालकों में यह धारणा है कि इन्जेक्शन लगाने से दूध बढ़ता है। जब दुधारू पशु का बच्चा मर जाता है तो वह दूध देने में परेशान करता है या दूध देर से उतारता है। कभी-कभी गाय बच्चे को आसानी से दूध नहीं पिलाती है। वैज्ञानिकों ने पशुओं में प्रयोगों से यह सिद्ध किया है कि आक्सीटाॅसिन इन्जेक्शन लगाने से पशु के दुग्ध उत्पादन में कोई बढ़ोत्तरी नहीं होती है। पशु तेजी से केवल दूध उतारने लगता है। पर इसके उपयोग से बहुत सी हानियां हो सकती हैं।आक्सीटाॅसिन टीके का पशु व उसका दूध पीने वाले व्यक्ति दानों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
पशु पर प्रभाव– इन्जेक्शन लगाने पर गर्भाशय की दीवारों में संकुचन पैदा होता है व दूध तेजी से उतरने लगता है परन्तु टीके के दुष्प्रभाव से पशु को प्रसव पीड़ा से दिन में दो बार गुजरना पड़ता है। इससे पशु को काफी कष्ट होता है पशु बता तो नहीं सकता लेकिन फिर भी हम यह देखते हैं कि पशु दर्द रहने के कारण खूंटे के चारों ओर चक्कर लगाना शुरू कर देता है। पेशाब व गोबर करने लगता है। यानि, पशु को शारीरिक परेशानी झोलनी पड़ती है।इन्जेक्शन के रोजाना प्रयोग से गर्भाशय फट सकता है। पशु की प्रजनन क्षमता कम हो जाती है। पशु गर्मी (हिट) में सही समय पर नहीं आता है और पशुओं में बांझपन भी हो जाता है।पशु में जब आक्सीटाॅसिन इन्जेक्शन लगाना शुरू करते हैं तब शुरू के कुछ दिनों तक तो ठीक दूध उतरता है पर कुछ दिनों बाद इन्जेक्शन का प्रभाव कम होने लगता है। अतः पशु पूरा दूध नहीं उतारता है। पशु में दुग्ध काल जो गायों में 280-300 दिन व भैसों में 300-315 दिन है, भी कम हो जाता है।मनुष्यों पर प्रभाव- यह टीका मनुष्यों के लिए बहुत हानिकारक है। जब हम पशु के शरीर में आक्सीटाॅसिन इन्जेक्शन दूध उतारने के लिए लगाते हैं तो पशु दूध उतारता है तथा साथ ही साथ करीब-करीब पूरा आक्सीटाॅसिन दूध में आ जाता है। अतः यह हारमोन पशु के शरीर में शोषित नहीं होता है। यह हारमोन पशु से निकाले गये दूध में आ जाता है तथा दूध को उबालने पर भी नष्ट नहीं होता है। जब हम इस दूध को पीते है तब हमारे शरीर में आक्सीटाॅसिन पहुंचता है जिससे हमारे शरीर में बहुत हानिकारक प्रभाव पड़ता है। इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ता है। जैसे- आंखों की रोशनी कम हो जाती है। कानों से कम सुनाई देने लगता है। शरीर थका-थका सा रहता है। बच्चों में दस्त होने की सम्भावना रहती है। बच्चों में पीलिया रोग होने का खतरा रहता है। लड़कियों में यौवनारम्भ के लक्षण जल्दी आने लगते हैं। दुर्भाग्यवश जब हम दूध पीते है तो हमें पता नहीं चल पाता है कि इसके अन्दर आक्सीटाॅसिन है। दूध में आक्सीटाॅसिन है या नहीं इसका अभी तक कोई आसान परीक्षण विधि भी उपलब्ध नहीं हैं।
आक्सीटाॅसिन इन्जेक्शन का प्रयोग रोकने के लिए कानून
यह देखकर कि यह टीका पशु व पशु का दूध पीने वाले दोनों के लिए घातक है, इसके प्रयोग पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया गया है। पशु कल्याण बोर्ड इसके बारे में किसानों में जागरूकता पैदा कर रहा है। पशुओं में निर्दयता बचाव कानून-1960 के अन्तर्गत भी जानवरों में आक्सीटाॅसिन के अनावश्यक प्रयोग पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। इस कानून के अन्तर्गत यदि कोई व्यक्ति दुधारू पशु में दुग्ध उतारने या दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए आक्सीटाॅसिन या अन्य किसी ऐसे इन्जेक्शन का प्रयोग करता है जो कि जानवर व दूध पीने वाले दोनों के लिए घातक है तो उसे 1000 रूपये का जुर्माना या दो वर्ष की सजा या दोनों हो सकते हैं। इस कानून के अन्तर्गत दवा बनाने वाली कोई भी कम्पनी इसका उत्पादन नहीं कर सकेगी न ही कोई मेडिकल स्टोर या अन्य व्यक्ति इसे बेचेगा या खरीदेगा।अतः इस इन्जेक्शन का पशुओं व मनुष्यों दोनों में हानिकारक प्रभावों को देखते हुए इसको प्रयोग में बिल्कुल नहीं लाना चाहिए। इस कृत्य को रोकने के लिए पशु पालकों व किसानों में जागरूकता लाने की आवश्यकता है। इसके लिए सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों व समाज को मिल-जुल कर कार्य करने की आवश्यकता है जिससे इसके प्रयोग को पूर्णतः रोका जा सके। -साभार (हिफी)