नेपाल में दूसरी बार प्रधानमंत्री का दायित्व संभालने वाले के पी शर्मा ओली ने सबसे पहले भारत की यात्रा करके यह जता दिया था कि उनकी नजर में भारत का सर्वोच्च स्थान है। इस तरह से श्री ओली ने नेपाल की राजनीतिक परम्परा का भी निर्वाह किया था लेकिन इस वामपंथी नेता की दूरदर्शिता से भी कोई इनकार नहीं कर सकता। भारत के प्रति इस प्रकार का व्यवहार करके वह चीन से बेहतर संबंधों की सौदेबाजी भी कर सकते हैं। श्री ओली की चीन में पांच दिन की यात्रा के दौरान जिस तरह मीडिया ने महत्व दिया है उससे लगता है कि चीन अपनी महत्वाकांक्षी योजना – वन बेल्ट वनरोड से नेपाल को जोड़ लेगा। नेपाल के प्रधानमंत्री चाहते हैं कि चीन उनके देश में विकास के कार्य तो करवाये लेकिन नेपाल किसी आर्थिक संकट में भी न फंसे। चीन अपने व्यापारिक हित भी देखेगा तो नेपाल पर आंख मूंदकर योजनाओं की बारिश नहीं कर सकता है इसलिए नेपाल में चीन के पैर जमाने की कोशिश से भारत को सतर्क तो रहना पड़ेगा लेकिन चिंतित होने की जरूरत नहीं है। श्री के पी शर्मा ओली ड्रैगन के झांसे में आने वाले नहीं हैं।
नेपाली प्रधानमंत्री के चीनी दौरे को चीनी मीडिया ने काफी तवज्जो दी है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि नेपाल आर्थिक सहयोग और आधारभूत ढांचे के विकास से जुड़े मुद्दों को अंजाम तक पहुंचाना चाहता है। ग्लोबल टाइम्स ने ये भी लिखा है कि भारत को इस यात्रा से निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि नेपाल में उसका प्रभाव कम नहीं होगा। हालांकि इसके साथ ही यह भी जोड़ा गया है कि नेपाल, चीन और भारत को त्रिपक्षीय सहयोग पर जोर देना चाहिए।केपी ओली 19 जून को चीन पहुंचे। इस दौरान उनकी मुलाकात चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी हुई। नेपाली प्रधानमंत्री की अहम बातचीत चीन के प्रधानमंत्री ली कचियांग से होनी थी। चीन के लिए नेपाल हमेशा से अहम रहा है. दोनों देशों की लंबी सीमा लगती है। दोनों देशों के अच्छे द्विपक्षीय संबंध चीन और स्वायत्त तिब्बत की स्थिरता के लिए बहुत जरूरी है।चीन ने यह भी कहा है कि चीन के वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट में नेपाल एक अहम देश है और नेपाल चाहता भी है कि चीन उसके आर्थिक विकास के लिए काम भी करे। नेपाल के मीडिया का ओली के चीन दौरे पर कहना है, भारत इस दौरे से दुखी नहीं होगा। भारत के दुखी होने का सवाल ही नही उठता। चीन और नेपाल के रिश्ते बेहतर हुए हैं. 2006 तक नेपाल के आंतरिक मामलों में भारत की निर्णायक हैसियत होती थी, लेकिन अब वो बात नहीं रही। नेपाल में चीन की उपस्थिति बढ़ी है। चीन की रुचि भी नेपाल में बढ़ी है। चर्चा का विषय यह है कि नेपाल और भारत में दूरी कितनी बढ़ी है। ओली के इस दौरे पर चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुंग ने कहा है। चीन को उम्मीद है कि ओली के दौरे से वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट के तहत राजनीतिक साझेदारियां बढ़ेंगी. इसके साथ ही सांस्कृतिक आदान-प्रदान और दोनों देशों के नागरिकों के मेलजोल से भी संबंध और गहरे होंगे।केपी शर्मा ओली के हाथ में नेपाल की कमान दूसरी बार आई है। ओली के बारे में कहा जाता है कि नेपाल को चीन के करीब ले जाने में उनकी दिलचस्पी रही है। ओली जब दोबारा नेपाल के प्रधानमंत्री बने तो इसी साल मार्च महीने के दूसरे हफ्ते में उन्होंने तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी का अपने देश में स्वागत किया था। ओली के सत्ता संभालने के बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नेपाल पहुंचने वाले पहले राष्ट्र प्रमुख थे। पाकिस्तानी पीएम के इस दौरे पर कई विश्लेषकों का मानना था कि नेपाल ने शाहिद का स्वागत तब किया जब भारत और पाकिस्तान के संबंध बिल्कुल पटरी से नीचे उतरे हुए थे। हालांकि यह भी सच है खाकान की चीन और नेपाल के संबंधों को लेकर नेपाल में भारत का प्रभाव कम होने की बात बढ़ा-चढ़ाकर कही जाती है। भारत को नफे-नुकसान के समीकरण से बाहर निकलकर सोचना चाहिए। नेपाल की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से भारत पर निर्भर है।
भारत चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना वन बेल्ट वन रोड का विरोध कर रहा है. दूसरी तरफ नेपाल इस परियोजना के साथ है। भारत के लिए यह असहज करने वाला है कि नेपाल वन बेल्ट वन रोड परियोजना का समर्थन कर रहा है। अपने पहले कार्यकाल में भी ओली ने चीन का दौरा किया था और उन्होंने ट्रांजिट ट्रेड समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। ओली चाहते हैं कि चीन तिब्बत के साथ अपनी सड़कों का जाल फैलाए और नेपाल को भी जोड़े ताकि भारत पर से उसकी निर्भरता कम हो। जब भारत ने अनाधिकारिक रूप से 2015-16 में आर्थिक नाकेबंदी की थी तो उस वक्त ओली ही नेपाल के प्रधानमंत्री थे। तब भारत से नेपाल में आपूर्ति पूरी तरह से बंद हो गई थी और उसे कई बुनियादी सामानों के अभाव से गुजरना पड़ा था। इसी दौरान नेपाल में ओली की लोकप्रियता बढ़ने की बात कही जाती है और चीन से करीब आने का एक मजबूत तर्क भी मिला था। ओली के बारे में कहा जाता है कि वो चीन से संबंधों को आगे बढ़ाने में भारत की चिंताओं की फिक्र नहीं करते हैं। आर्थिक नाकेबंदी के बाद नेपाल के लिए यह अहम हो गया था कि वो भारत पर अपनी निर्भरता कम करे. नेपाल दशकों से चाह रहा है कि चीन के साथ रेल संपर्क स्थापित हो. हालांकि चीनी विशेषज्ञों का भी मानना है कि नेपाल और चीन को रेल से जोड़ना आसान नहीं है.इस रेल परियोजना में भारी खर्च की भी बात कही जा रही है। ऐसे में नेपाल को ये भी डर है कि तजाकिस्तान, लाओस, मालदीव, जिबुती, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, मंगोलिया, श्रीलंका और मोंटेनेग्रो की तरह कहीं वो भी कर्ज के बोझ तले दब न जाए। इस परियोजना की पूरी लागत 6 अरब डॉलर है यानी यह लाओस की जीडीपी का आधा है। इस रिपोर्ट के अनुसार चीन के साथ नेपाल का यह डर बना हुआ है कि कहीं वो भी पाकिस्तान की तरह कर्ज में न फंस जाए। ओली के बारे में कहा जाता है कि वो चुनाव भारत विरोधी भावना के कारण ही जीते हैं। भारत चाहता है कि नेपाल महाकाली नदी का बचा पानी यमुना को दे। भारत इसके लिए पहले ही दो बार संपर्क कर चुका है, कहा जा रहा है कि ओली के रहते शायद ही दोनों देश इस पर सहमत हों। इस बात पर कई विशेषज्ञ सहमत दिखते हैं कि नेपाल भारत से खुलकर दुश्मनी का इजहार भी नहीं कर सकता है लेकिन ओली के बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने इस चीज को मजबूती से स्थापित करने की कोशिश की है कि नेपाल एक संप्रभु देश है और वो अपनी विदेश नीति को किसी देश के मातहत होकर आगे नहीं बढ़ाएगा। (हिफी)