29 अप्रैल 1639 को लाल किले की नींव रखी गयी थी। मुगल बादशाह शाहजहां ने आज के चांदनी चौक और तब के शाहजहांनाबाद में भव्य लाल किले की नींव 1639 में रखी थी।भारत का इतिहास भी इस किले के साथ काफी नजदीकी से जुड़ा है। यहीं से ब्रिटिश व्यापारियों ने अंतिम मुगल शासक, बहादुर शाह जफर को पद से हटाया था और तीन शताब्दियों से चले आ रहे मुगल शासन का अंत हुआ था। यहीं के प्राचीर से भारत के प्रथम प्रधानमंत्री, पंडित जवाहर लाल नेहरू ने घोषणा की थी कि अब भारत उपनिवेशी राज से स्वतंत्र है।इस किले को पाँचवे मुग़ल बाद्शाह शाहजहाँ ने बनवाया था। इस के किले को “लाल किला”, इसकी दीवारों के लाल रंग के कारण कहा जाता है।लाल किला भी ताजमहल की तरह यमुना नदी के किनारे पर बना हुआ है.मुगल शासक शाहजहां ने 11 वर्ष तक आगरा से शासन करने के बाद तय किया कि राजधानी को दिल्ली लाया जाए और यहां 1639 में लाल किले की नींव रखी गई।शुभ मुहूर्त में लाल किले का निर्माण करने के लिए नींव खुदवायी गई थी। एक वर्ष तक नींव यूं ही रही ताकि मौसमी हवा-पानी का प्रभाव जो भी पड़ना है उस पर पड़ जाए।लाल पत्थर बैलगाड़ियों पर लादकर धौलपुर से लाया गया। देश भर के राजा-महाराजाओं ने इसके निर्माण में हर संभव सहयोग किया।उस समय इसकी लागत एक करोड़ रुपये आयी थी। 1647 में इसके उद्घाटन के बाद महल के मुख्य कक्ष भारी पर्दों से सजाए गए और चीन से रेशम और टर्की से मखमल ला कर इसकी सजावट की गई।किले की संरचना अष्टकोणीय है. किले के चारों तरफ एक ऊंची दीवार बनाई गई थी.नदी की ओर 60 फुट तथा जमीन की तरफ दीवार 110 फुट ऊंची है। इसी के साथ 30 फुट चौड़ी और 30 फुट गहरी खाई है। लाल किले के चार दरवाजे थे लाहौरी दरवाजा, काबुली दरवाजा, कलकत्ता दरवाजा, कश्मीरी दरवाजा, बाद में दो दरवाजे बंद करा दिये गये। पश्चिमी यमुना नहर से एक नहर निकालकर पानी को किले तक लाया गया। इसे किले में नहर बहिश्त का नाम दिया गया.लाल किले में मोती महल, मोती मस्जिद, दीवान-ए- खास, दीवान-ए-आम, रंग महल, सावन, भादों, मीना बाज़ार आदि बनाये गए थे।किले में दो प्रवेश द्वार हैं. एक लाहौरी दरवाजा और दूसरा दिल्ली दरवाजा. ये नाम लाहौर और दिल्ली की तरफ खुलने के कारण रखे गए.लाहौर गेट से दर्शक छत्ता चौक में पहुंचते हैं, जो एक समय शाही बाजार हुआ करता था और इसमें दरबारी जौहरी, लघु चित्र बनाने वाले चित्रकार, कालिनों के निर्माता, इनेमल के कामगार, रेशम के बुनकर और विशेष प्रकार के दस्तकारों के परिवार रहा करते थे। शाही बाजार से एक सड़क नवाबर खाने जाती है, जहां दिन में पांच बार शाही बैंड बजाया जाता था। यह बैंड हाउस मुख्य महल में प्रवेश का संकेत भी देता है और शाही परिवार के अलावा अन्य सभी अतिथियों को यहां झुक कर जाना होता है।
लाल किला एवं शाहजहाँनाबाद का शहर, मुगल बादशाह शाहजहाँ द्वारा ई स 1639 में बनवाया गया था। लाल किले का अभिन्यास फिर से किया गया था, जिससे इसे सलीमगढ़ किले के संग एकीकृत किया जा सके। यह किला एवं महल शाहजहाँनाबाद की मध्यकालीन नगरी का महत्वपूर्ण केन्द्र-बिन्दु रहा है। लालकिले की योजना, व्यवस्था एवं सौन्दर्य मुगल सृजनात्मकता का शिरोबिन्दु है, जो कि शाहजहाँ के काल में अपने चरम उत्कर्ष पर पहुँची। इस किले के निर्माण के बाद कई विकास कार्य स्वयं शाहजहाँ द्वारा किए गए। विकास के कई बड़े पहलू औरंगजे़ब एवं अंतिम मुगल शासकों द्वारा किये गये। सम्पूर्ण विन्यास में कई मूलभूत बदलाव ब्रिटिश काल में 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद किये गये थे। ब्रिटिश काल में यह किला मुख्यतः छावनी रूप में प्रयोग किया गया था। बल्कि स्वतंत्रता के बाद भी इसके कई महत्वपूर्ण भाग सेना के नियंत्रण में 2003 तक रहे।
लाल किला मुगल बादशाह शाहजहाँ की नई राजधानी, शाहजहाँनाबाद का महल था। यह दिल्ली शहर की सातवीं मुस्लिम नगरी थी। उसने अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली बदला, अपने शासन की प्रतिष्ठा बढ़ाने हेतु, साथ ही अपनी नये-नये निर्माण कराने की महत्वकाँक्षा को नए मौके देने हेतु भी। इसमें उसकी मुख्य रुचि भी थी।
यह किला भी ताजमहल और आगरे के क़िले की भांति ही यमुना नदी के किनारे पर स्थित है। वही नदी का जल इस किले को घेरकर खाई को भरती थी। इसके पूर्वोत्तरी ओर की दीवार एक पुराने किले से लगी थी, जिसे सलीमगढ़ का किला भी कहते हैं। सलीमगढ़ का किला इस्लाम शाह सूरी ने 1546 में बनवाया था।
दीवान ए आम लाल किले का सार्वजनिक प्रेक्षा गृह है। सेंड स्टोन से निर्मित शेल प्लास्टर से ढका हुआ यह कक्ष हाथी दांत से बना हुआ लगता है, इसमें 80 X 40 फीट का हॉल स्तंभों द्वारा बांटा गया है। मुगल शासक यहां दरबार लगाते थे और विशिष्ट अतिथियों तथा विदेशी व्यक्तियों से मुलाकात करते थे। दीवान ए आम की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि इसकी पिछली दीवार में लता मंडप बना हुआ है जहां बादशाह समृद्ध पच्चीकारी और संगमरमर के बने मंच पर बैठते थे। इस मंच के पीछे इटालियन पिएट्रा ड्यूरा कार्य के उत्कृष्ट नमूने बने हुए हैं। किले का दीवाने खास निजी मेहमानों के लिए था। शाहजहां के सभी भवनों में सबसे अधिक सजावट वाला 90 X 67 फीट का दीवाने खास सफेद संगमरमर का बना हुआ मंडप है जिसके चारों ओर बारीक तराशे गए खम्भे हैं। इस मंडप की सुंदरता से अभिभूत होकर बादशाह ने यह कहा था ”यदि इस पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं हैं, यहीं हैं”।कार्नेलियन तथा अन्य पत्थरों के पच्चीकारी मोज़ेक कार्य के फूलों से सजा दीवाने खास एक समय प्रसिद्ध मयूर सिहांसन के लिए भी जाना जाता था, जिसे 1739 में नादिरशाह द्वारा हथिया लिया गया, जिसकी कीमत 6 मिलियन स्टर्लिंग थी। इस ऐतिहासिक किले को 2007 में युनेस्को द्वारा एक विश्व धरोहर स्थल चयनित किया गया था।हाल ही में काफी विवादों के बाद सरकार की ‘एडॉप्ट ए हेरिटेज’ स्कीम के तहत लाल किले को डालमिया ग्रुप ने पांच साल के कॉन्ट्रेक्ट पर गोद लिया है। एजेंसी।