जयंती पर विशेष
स्वप्निल संसार।
“ठुमरी की रानी” गिरिजा देवी बनारस घराने से सम्बन्धित थीं । गायकी के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें 1972 में ‘पद्मश्री’ 1977 में ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’और 1989 में ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया था। गिरिजा देवी ‘संगीत नाटक अकादमी’ द्वारा भी सम्मानित की जा चुकी हैं।गिरिजा देवी का जन्म को वाराणसी में हुआ था। उनके पिता रामदेव राय एक ज़मींदार थे और उन्होने पाँच वर्ष की आयु से ही गिरिजा देवी के लिए संगीत की शिक्षा की व्यवस्था कर दी थी । पण्डित सरयू प्रसाद मिश्र तथा पण्डित श्रीचन्द्र मिश्र उनके संगीत शिक्षक थे । मात्र नौ वर्ष की आयु में हिन्दी फ़िल्म ‘याद रहे’(1940) में बेबी गिरिजा ने अभिनय भी किया ।17 साल की उम्र में उनका विवाह हुआ, उन दिनों कुलीन विवाहिता स्त्रियों द्वारा मंच पर कला प्रदर्शन अच्छा नहीं माना जाता था लेकिन पति के सहयोग से 1949 में गिरिजा देवी ने अपना पहला प्रदर्शन इलाहाबाद के आकाशवाणी केन्द्र के मंच से किया। इसके बाद उन्होंने 1951 में बिहार के आरा में आयोजित एक संगीत सम्मेलन में गायन प्रस्तुत किया। अब गिरिजा देवी की अनवरत संगीत यात्रा शुरू हो गयी, जो आज तक जारी है। कोलकाता स्थित ‘आई.टी.सी. संगीत रिसर्च एकेडमी’ में रहकर उन्होने कई योग्य शिष्य तैयार किये हैं, अनेक छात्र-छात्राओं को प्राचीन बनारस घराने की संगीत परम्परा की दीक्षा दी है जिनमे एक मालिनी अवस्थी भी हैं । सम्मान से आज सब लोग उन्हें ‘अप्पाजी ‘ कहते थे । ध्रुपद, ख़्याल, टप्पा, तराना, सदरा, ठुमरी और पारम्परिक लोक संगीत में होरी, चैती, कजरी, झूला, दादरा और भजन के अनूठे प्रदर्शनों के साथ ही उन्होंने ठुमरी के साहित्य का गहन अध्ययन और अनुसंधान भी किया है। साल 2017 में 24 अक्टूबर को 88 साल की उम्र में कॉर्डियक अरेस्ट के कारण उनका निधन हो गया था ।