जयंती
Rukhmabai, the first Indian woman physician, gets Google Doodle
Rukhmabai Raut (22 November , 1864 – 25 September, 1955), was an Indian woman who became one of the first practicing women doctors in colonial India. She was also at the heart of a landmark legal case which led to the enactment of the Age of Consent Act, 1891. She was married off at the age of eleven to a nineteen year old groom Dadaji Bhikaji Raut. She however continued to live in the house of her widowed mother Jayantibai who then married Assistant Surgeon Sakharam Arjun Raut. When Dadaji and his family asked Rukhmabai to move to his home, she refused and was supported in her choice by her step-father. This led to a long series of court cases from 1884, a major public discussion on child marriage and on the rights of women. Rukhmabai wrote numerous letters in the newspapers under the pseudonym A Hindu Lady, winning the support of many and when she expressed a wish to study medicine, a fund was created to support her travel and study in England at the London School of Medicine, 5 years degree course. She subsequently went to England and returned to India as a first qualified physician and worked for many years in Rajkot and Surat.She is from Mumbai.
झलकारी बाई 22 नवंबर 1830 – 1890 झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में, महिला शाखा ‘दुर्गा दल’ की सेनापति थीं। वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं इस कारण शत्रु को धोखा देने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं। अपने अंतिम समय में भी वे रानी के वेश में युद्ध करते हुए वे अंग्रेज़ों के हाथों पकड़ी गयीं और रानी को क़िले से भाग निकलने का अवसर मिल गया। उन्होंने प्रथम स्वाधीनता संग्राम में झाँसी की रानी के साथ ब्रिटिश सेना के विरुद्ध अद्भुत वीरता से लड़ते हुए ब्रिटिश सेना के कई हमलों को विफल किया था। यदि लक्ष्मीबाई के सेनानायकों में से एक ने उनके साथ विश्वासघात न किया होता तो ‘झांसी का किला’ ब्रिटिश सेना के लिए प्राय: अभेद्य था। झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है।
वालचंद हीराचंद 22 नवम्बर, 1882, – 8 अप्रैल, 1953 भारत के प्रसिद्ध उद्योगपतियों में से एक थे। ये उद्योगों के स्तर पर देश को उन्नत करने और विदेशियों का सामना करने में अग्रणी थे। वालचंद हीराचंद ने जहाज़ों के निर्माण के लिए विशाखापट्टनम में कारखाना स्थापित किया था।
मीरा बेन मूल नाम ‘मैडलिन स्लेड’ 22 नवम्बर 1892 20 जुलाई 1982 ब्रिटिश सैन्य अधिकारी की बेटी थीं। इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गाँधी जी के सिद्धांतों से प्रभावित होकर खादी का प्रचार किया था। नि:स्वार्थ उनके आदर्शों पर चलकर खादी अपनाना, पहनना और उसका प्रचार-प्रसार करना किसी विदेशी द्वारा हो तो निश्चित ही सराहनीय है। गांधीजी को मीरा बेन एक बहन, एक बेटी, एक मित्र से भी बढ़कर मिलीं, उनका हर कदम पर साथ दिया और सहारा बनीं।
जॉन फ़िट्ज़गेराल्ड “जैक” केनेडी अमेरिका के 35वें राष्ट्रपति थे जिन्होने 1961 से शासन सम्भाला था जिसके दौरान 22 नवम्बर 1963 को डैलस, टेक्सास में केनेडी की हत्या कर दी गई थी।
केनेडी एकमात्र ऐसे कैथोलिक राष्ट्रपति है जिन्हे पुलित्ज़र पुरस्कार से नवाज़ा गया है। उनके शासन के दौरान हुई घटनाओं में पिग्स की खाड़ी का अधिग्रहण, क्यूबा प्रक्षेपास्त्र की मुश्किलें, बर्लिन की दीवार का निर्माण, अन्तरिक्ष होड़, अफ़्रीकी अमरीकी मानव अधिकारों की हलचल व वियतनाम युद्ध की शुरुआत प्रमुख है।
पुण्य तिथि
मास्टर तारा सिंह 24 जून, 1885, रावलपिण्डी,पंजाब – 22 नवम्बर, 1967, चण्डीगढ़ प्रसिद्ध सिक्ख नेता थे, जिन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध के समय सिक्खों को सेना में भर्ती होने के लिए प्रेरित किया। इसी के परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने 1919 के ‘इण्डिया एक्ट’ में मुस्लिमों की भांति सिक्खों को भी पृथक् साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व प्रदान किया था। तारा सिंह एक सिक्ख नेता होने के साथ-साथ पत्रकार और लेखक भी थे। इन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ का भी समर्थन किया था। लायलपुर के स्कूल में प्रधान अध्यापक का कार्य इन्होंने किया था, जिस कारण इनके नाम के साथ ‘मास्टर’ शब्द हमेशा के लिए जुड़ गया।
राम नरेश यादव 1 जुलाई, 1928 – 22 नवंबर, 2016 भारतीय राजनीति में एक राजनेता के रूप में जाना-पहचाना नाम है। एक शिक्षक और एक अधिवक्ता के रूप में सामाजिक रूप से प्रगति करते हुए राम नरेश यादव आगे चलकर एक ईमानदार और मूल्यों की राजनीति करने वाले आम आदमी के मददगार और एक दिग्गज राजनीतिज्ञ कहलाए। पेशे से वकील राम नरेश यादव राजनारायण के विचारों से प्रभावित होकर ‘जनता पार्टी’ से जुड़े। 1977 में आजमगढ़ लोकसभा सीट से जीतकर वे छठवीं लोकसभा के सदस्य बने। इसी दौरान वह 23 जून, 1977 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और इस पद पर 15 फरवरी, 1979 तक रहे। बाद में ये कांग्रेस पार्टी से जुड़े और संगठन में विभिन्न पदों पर भी रहे।
मुबारक साल गिरह
मुलायम सिंह यादव , उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री व केंन्द्र सरकार में एक बार रक्षा मंत्री रह चुके हैं। मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवम्बर 1939 को इटावा जिले के सैफई गाँव में मूर्ती देवी व सुघर सिंह के किसान परिवार में हुआ था। मुलायम सिंह अपने पाँच भाई-बहनों में रतनसिंह से छोटे व अभयराम सिंह, शिवपाल सिंह यादव,रामगोपाल सिंह यादव और कमला देवी से बड़े हैं। पिता सुघर सिंह उन्हें पहलवान बनाना चाहते थे किन्तु पहलवानी में अपने राजनीतिक गुरु नत्थूसिंह को मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती-प्रतियोगिता में प्रभावित करने के पश्चात उन्होंने नत्थूसिंह के परम्परागत विधान सभा क्षेत्र जसवन्त नगर से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया। राजनीति में आने से पूर्व मुलायम सिंह आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर (एम०ए०) एवं जैन इन्टर कालेज करहल (मैनपुरी ) से बी० टी० करने के बाद कुछ दिनों तक इन्टर कालेज में अध्यापन कार्य भी कर चुके हैं। 1960 में जैन इण्टर कालेज, करहल (मैनपुरी ) में आयोजित कवि सम्मेलन में उस समय के विख्यात कवि दामोदर स्वरूप ‘विद्रोही’ ने अपनी चर्चित रचना दिल्ली की गद्दी सावधान! सुनायी तो पुलिस का एक दरोगा मंच पर चढ़ आया और विद्रोही जी से माइक छीन कर बोला-“बन्द करो ऐसी कवितायेँ जो शासन के खिलाफ हैं।” उसी समय कसे (गठे) शरीर का एक लड़का बड़ी फुर्ती से वहाँ पहुँचा और उसने उस दरोगा को मंच पर ही उठाकर दे मारा । विद्रोही जी ने मंच पर बैठे कवि उदय प्रताप सिंह से पूछा ये नौजवान कौन है तो पता चला कि यह मुलायम सिंह यादव है। उस समय मुलायम सिंह उस कालेज के छात्र थे और उदय प्रताप सिंह वहाँ प्राध्यापक थे। बाद में यही मुलायम सिंह यादव जब उत्तर प्रदेश के मुख्य मन्त्री बने तो उन्होंने विद्रोही जी को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का साहित्य भूषण सम्मान प्रदान किया मुलायम सिंह 1967 में पहली बार विधान सभा के सदस्य चुने गये और मन्त्री बने. 1992 में उन्होंने समाजवादी पार्टी बनाई वे तीन बार क्रमशः 5 दिसम्बर 1989 से 24 जनवरी 1991 तक, 5 दिसम्बर 1993 से 3 जून 1995 तक और 29 अगस्त 2003 से 11 मई 2007 तक उत्तर प्रदेश के मुख्य मन्त्री रहे.
विवेकी राय–
19 नवम्बर, 1924, गाजीपुर 22 नवम्बर, 2016, हिन्दी और भोजपुरी भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। वे ग्रामीण भारत के प्रतिनिधि रचनाकार थे। विवेकी राय ने 50 से अधिक पुस्तकों की रचना की थी। वे ललित निबंध, कथा साहित्य और कविता कर्म में समभ्यस्त थे। आज भी विवेकी राय को ‘कविजी’ उपनाम से जाना जाता है।
पुष्पेन्द्र कुमार गर्ग 22 नवम्बर, 1963, सासनी, अलीगढ़, नौकायन में भारत के प्रसिद्ध खिलाड़ियों में गिने जाते हैं। वे अपने नाम के लघु रूप ‘पी. के. गर्ग’ नाम से भी लोकप्रिय हैं। उन्होंने नौका-क्रीड़ा में अनेक उपलब्धियाँ हासिल की हैं। उनकी सफलताओं और योग्यताओं को देखते हुए ही उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ व ‘राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार’ दिया गया था। भारतीय जल सेना में कार्यरत पी. के. गर्ग चर्चा में तब आए थे, जब उन्होंने 1986 में राष्ट्रीय टीम चैंपियनशिप में होमी मोतीवाला के साथ नौका क्रीड़ा में स्वर्ण पदक जीता।
‘निर्मला साधु सिंह नागपाल सरोज खान ( 22 नवम्बर 1948 ) निर्मला साधु सिंह नागपाल के माता पिता भारत पाकिस्तान विभाजन के बाद बम्बई अब मुम्बई आ गए । ‘निर्मला साधु सिंह नागपाल ने नृत्य की शिक्षा मास्टर सोहनलाल से ली थी । 14 साल की उम्र मे उन्होने सोहनलाल से शादी कर ली थी। मास्टर बी सोहनलाल से उस समय के एक प्रसिद्ध नृत्य गुरु थे। सोहन लाल (41 साल) पहले ही शादी शुदा थे और उनके 4 बच्चे थे। 15 साल की उम्र में उन्होने अपने पहले बच्चे जो अब राजू खान के नाम से एक प्रसिद्ध नृत्य रचनाकार है। 1965 में वह सोहन लाल से अलग हो गयी , लेकिन उनके सहायक के रूप में काम करती रही थी। सोहन लाल और निर्मला साधु सिंह नागपाल का फिर पुनर्मिलन हुआ जब सोहन लाल को दिल का दौरा पड़ा था। ‘निर्मला साधु सिंह नागपाल ने अब एक बेटी कोयल को जन्म दिया। एक दिन सोहन लाल ‘निर्मला साधु सिंह नागपाल और उनके दो बच्चों को छोड़कर् मद्रास (चेन्नई )चले गये। उसके बाद ‘निर्मला साधु सिंह नागपाल ने सरदार रोशन खान के साथ शादी की और वे सरोज खान के नाम से जानी जाने लगी। सरोज खान ने 1974 में पहली बार गीता मेरा नाम में स्वतंत्रत रूप से नृत्य निर्देशन किया। लेकिन सफलता पाने में उन्हें कई साल लगे 1986 में प्रदर्शित नगीना ने उनकी किस्मत बदल थी।