लखनऊ। स्वप्निल संसार। एजेंसी। अखिल भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह-
8 दिसम्बर से 14 दिसम्बर तक पूरे भारत में मनाया जाता है। ये देश के सभी राज्यों में लोगों के बीच हस्तशिल्प के बारे में समाज में जागरुकता, सहयोग और इसके महत्व को बढ़ाने के लिये बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इम्फाल में, एक बड़ी पारिस्थितिकी शिल्प प्रदर्शनी पब्लिक लाइब्रेरी, बीटी सड़क के परिसर में आयोजित की जाती है।
जयंती पर विशेष बालाजी बाजीराव
-8 दिसम्बर, 1721-23 जून, 1761- बाजीराव प्रथम का ज्येष्ठ पुत्र थे । वह पिता की मृत्यु के बाद पेशवा बना थे । बालाजी विश्वनाथ के समय में ही पेशवा का पद पैतृक बन गया था। 1750 हुई ‘संगोली संधि’ के बाद पेशवा के हाथ में सारे अधिकार सुरक्षित हो गये। अब ‘छत्रपति’ दिखावे भर का रह गया था। बालाजी बाजीराव ने मराठा शक्ति का उत्तर तथा दक्षिण भारत, दोनों ओर विस्तार किया। इस प्रकार उसके समय कटक से अटक तक मराठा दुदुम्भी बजने लगी। बालाजी ने मालवा तथा बुन्देलखण्ड में मराठों के अधिकार को क़ायम रखते हुए तंजौर प्रदेश को भी जीता। बालाजी बाजीराव ने हैदराबाद के निज़ाम को एक युद्ध में पराजित कर 1752 में ‘भलकी की संधि’ की, जिसके तहत निज़ाम ने बरार का आधा भाग मराठों को दे दिया। बंगाल पर किये गये आक्रमण के परिणामस्वरूप अलीवर्दी ख़ाँ को बाध्य होकर उड़ीसा त्यागना पड़ा और बंगाल तथा बिहार से चौथ के रूप में 12 लाख रुपया वार्षिक देना स्वीकार करना पड़ा। 1760 में उदगिरि के युद्ध में निज़ाम ने करारी हार खाई। मराठों ने 60 लाख रुपये वार्षिक कर का प्रदेश, जिसमें अहमदनगर, दौलताबाद, बुरहानपुर तथा बीजापुर नगर सम्मिलित थे, प्राप्त कर लिया।
बालकृष्ण शर्मा “नवीन”
हिन्दी साहित्य में प्रगतिशील लेखन के अग्रणी कवि पंडित बालकृष्ण शर्मा “नवीन” का जन्म 8 दिसम्बर, 1897 में ग्वालियर राज्य के भयाना में हुआ था। इनके पिता श्री जमनालाल शर्मा वैष्णव धर्म के प्रसिद्ध तीर्थ श्रीनाथ द्वारा में रहते थे वहाँ शिक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं थी, इसलिए इनकी माँ इन्हें ग्वालियर राज्य के शाजापुर स्थान में ले आईं। यहाँ से प्रारंभिक शिक्षा लेने के उपरांत इन्होंने उज्जैन से दसवीं और कानपुर से इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की। इनके उपरांत लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक श्रीमती एनी बेसेंट एवं श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के संपर्क में आने के बाद उन्होंने पढ़ना छोड़ दिया। शाजापुर से अंग्रेज़ी मिडिल पास करके वे उज्जैन के माधव कॉलेज में प्रविष्ट हुए। इनको राजनीतिक वातावरण ने शीघ्र ही आकृष्ट किया और इसी से वे 1916 के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन को देखने के लिए चले आये। इसी अधिवेशन में संयोगवश उनकी भेंट माखनलाल चतुर्वेदी, मैथिलीशरण गुप्त एवं गणेशशंकर विद्यार्थी से हुई। 1917 में हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करके बालकृष्ण शर्मा गणेशशंकर विद्यार्थी के आश्रम में कानपुर आकर क्राइस्ट चर्च कॉलेज में पढ़ने लगे।
उदय शंकर
8 दिसम्बर, 1900- 26 सितम्बर, 1977 प्रसिद्ध नर्तक, नृत्य निर्देशक और बैले निर्माता थे। उन्हें भारत में ‘आधुनिक नृत्य के जन्मदाता’ के रूप में भी जाना जाता है। उदय शंकर ने यूरोप और अमेरिका का भारतीय नृत्य और संस्कृति से परिचय करवाया और भारतीय नृत्य को दुनिया के मानचित्र पर प्रभावशाली ढंग से स्थापित किया। उन्होंने ताण्डव नृत्य, शिव-पार्वती, लंका दहन, रिदम ऑफ़ लाइफ़, श्रम और यंत्र, रामलीला और भगवान बुद्ध नाम से नवीन नृत्यों की रचना की थी। इनमें वेशभूषा, संगीत, संगीत-यंत्र, ताल और लय आदि चीजें उन्हीं के द्वारा आविष्कृत थीं। 1971 में भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मविभूषण’ और 1975 में विश्वभारती ने ‘देशीकोत्तम सम्मान’ प्रदान किये थे।
मुबारक साल गिरह प्रकाश सिंह बादल
का जन्म 8 दिसंबर, 1927 को अबुल खुराना (अब पाकिस्तान) के जाट सिक्ख परिवार में हुआ था। लाहौर के क्रिश्चिन कॉलेज में उन्होंने शिक्षा पाई। 1947 में प्रकाश सिंह बादल शिरोमणि अकाली दल के सदस्य बने। प्रकाश सिंह बादल की पत्नी जिनका नाम सुरिंदर कौर था उनका देहांत हो चुका है। प्रकाश सिंह बादल की एक बेटी और एक बेटा-सुखबीर सिंह बादल पंजाब के फाज़िल्का निर्वाचन क्षेत्र से विधायक हैं । प्रकाश सिंह बादल की बेटी का विवाह पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों के बेटे से संपन्न हुआ है। यहीं से उनका राजनैतिक जीवन आरंभ हुआ था।
पुण्य तिथि पर विशेष भाई परमानन्द
4 नवम्बर, 1876 -8 दिसम्बर, 1947 स्वतंत्रता संग्राम के महान् क्रांतिकारी थे। वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी और एक महापुरुष थे। परमानन्द जी जहाँ आर्य समाज और वैदिक धर्म के सच्चे प्रचारक थे, वहीं दूसरी ओर एक इतिहासकार, साहित्यकार और प्रसिद्ध शिक्षाविद के रूप में भी उन्होंने ख्याति अर्जित की थी। भारत की स्वतंत्रता में मुख्य भूमिका निभाने वाले सरदार भगत सिंह, सुखदेव, रामप्रसाद बिस्मिल और करतार सिंह जैसे ना जाने कितने राष्ट्रभक्त युवकों ने इनसे प्रेरणा पाई थी।