प्यास बुझाने की चाहत में नदी तट पर पहुंची बकरी वहां मौजूद शेर को देख ठिठक गई. शेर ने गर्दन घुमाई और चेहरे को भरसक सौम्य बनाता हुआ बोला—‘अरे, रुक क्यों गई, आगे आओ. नदी पर जितना मेरा अधिकार है, उतना तुम्हारा भी है.’
शेर की बात को बकरी टाले भी तो कैसे! उसने मौत के आगे समर्पण कर दिया. जब मरना ही है तो प्यासी क्यों मरे. यही सोच वह पानी पीने लगी. पेट भर गया. शेर ने बकरी को छुआ तक नहीं. बकरी चलने लगी तो शेर ने टोक दिया—‘तुम कभी भी, कहीं भी बिना किसी डर के, बेरोक-टोक आ जा सकती हो. जंगल के लोकतंत्र में सब बराबर हैं.’ बकरी डरी हुई थी. शेर ने जाने को कहा तो फौरन भाग छूटी. देर तक भागती रही. काफी दूर जाकर रुकी—‘मैं तो नाहक की घबरा गई थी. शेर होकर भी कितने अदब से बोल रहा था. यह सब लोकतंत्र का कमाल है. पर लोकतंत्र है क्या….? क्या वह शेर से भी खतरनाक है? बकरी सोचने लगी. पर कुछ समझ न सकी.
तभी उसे दूसरी ओर से बकरियों का रेला आता हुआ दिखाई दिया. आगे एक सियार था. कंधे पर रामनामी दुपट्टा डाले. तिलक लगाए. वह गाता हुआ बढ़ रहा था. पीछे झूमती हुई बकरियां जा रही थीं.‘हम जिन भेड़िया महाराज के दर्शन करने जा रहे हैं. वे पहले बहुत हिंस्र हुआ करते थे. बकरियों पर देखते ही टूट पड़ते. जब से परमात्मा की कृपा हुई है, तब से अपना सबकुछ भक्ति को समर्पित कर दिया है.’ सियार ने बकरी को समझाया.बकरी शेर का बदला हुआ रूप देख चुकी थी. उसने भेड़िया के पीछे मंत्रामुग्ध-सी चल रहीं बकरियों पर नजर डाली.‘आज शेर कितना विनम्र था. संभव है भेड़िया का भी मन बदल गया हो. वह पीछे-पीछे चलने लगी. एक स्थान पर जाकर भेड़िया रुका. बकरियों को संबोधित कर बोला—‘यह काया मिट्टी की है. इसका मोह छोड़ दो. संसार प्रपंचों से भरा हुआ है. देह मुक्ति में ही आत्मा की मुक्ति है.’उसी समय दायीं ओर से शेरों की टोली ने प्रवेश किया. बकरियां उन्हें देखकर डरीं, परंतु गीदड़ का प्रवचन चलता रहा—‘डरो मत! यह मौत जीवन का अंत नहीं है. इसके बाद भी जीवन है. बड़े सुख के लिए इस देह की कुर्बानी देनी पड़े तो पीछे मत रहो.’ इस बीच बायीं ओर भेड़ियाओं का समूह दिखाई पड़ा तो सियार ने प्रवचन समाप्त होने की घोषणा कर दी. बकरियां उसके सम्मोहन से बाहर निकलने का प्रयास कर ही रही थीं कि दायें-बायें दोनों ओर से उनपर हमला हुआ. शेर और भेड़िया एक साथ उनपर टूट पड़े. एक भी बकरी बच न सकी. थोड़ी देर बाद जंगल का राजा शेर झूमता हुआ वहां पहुंचा.‘जन्मदिन मुबारक हो जंगल सम्राट.’ भेड़िया और शेर सभी ने एक स्वर में कहा. सियार एक कोने में खड़ा था.
‘महाराज, पहले हम जब भी हमला करते थे तो बकरियां विरोध करती थीं. आज सियार ने न जाने क्या जादू किया कि विरोध की भावना ही नदारद थी. इस शानदार दावत के लिए इसको ईनाम मिलना चाहिए.’ शेर और भेड़िया ने जुगलबंदी की.‘हमने सोच लिया है, आज से ये जंगल के मंत्री होंगे.’ जंगल के सम्राट ने गर्वीले अंदाज में कहा. इसी के साथ पूरा जंगल ‘जन्मदिन’ और ‘मंत्रीपद’ की मुबारकबाद के नारों से गूंजने लगा.सियार अगले ही दिन से दूसरे जानवरों को फुसलाने में जुट गया. मंत्री पद बचाए रखने के लिए यह जरूरी भी था.ओमप्रकाश कश्यप