जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा उर्फ़ जे.आर.डी. टाटा अग्रणी उद्योगपति थे। आधुनिक भारत की औद्योगिक बुनियाद रखने वाले उद्योगपतियों में उनका नाम सर्वोपरि है। भारत में इस्पात, इंजीनीयरींग, होट्ल, वायुयान और अन्य उद्योगो के विकास में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जे.आर.डी. टाटा ने देश की पहली वाणिज्यिक विमान सेवा ‘टाटा एयरलाइंस’ की शुरुआत की, जो 1946 में ‘एयर इंडिया’ बन गई। इस योगदान के लिए जेआरडी टाटा को भारत के नागरिक उड्डयन का पिता भी कहा जाता है। देश के विकास में उनके अतुलनीय योगदान को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने उन्हें उन्हे 1955 मे पद्म विभूषण और 1992 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मनित किया।
जे. आर. डी. टाटा का जन्म 29 जुलाई, 1904 को पेरिस में हुआ था। वे अपने पिता रतनजी दादाभाई टाटा व माता सुजैन ब्रियरे की दूसरी संतान थे। उनके पिता रतनजी देश के अग्रणी उद्योगपति जमशेदजी टाटा के चचेरे भाई थे। उनकी माँ फ़्रांसीसी थीं इसलिए उनका ज़्यादातर बचपन वक़्त फ़्राँस में ही बीता, और फ़्रेंच उनकी पहली भाषा बन गयी। उन्होंने कैथेडरल और जॉन कोनोन स्कूल मुंबई से अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की और उसके बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए ‘कैंब्रिज विश्वविद्यालय’ चले गए। उन्होंने फ्रांसीसी सेना में एक वर्ष का अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण भी प्राप्त किया और सेना में कार्य करते रहना चाहते थे पर उनके पिता की इच्छा कुछ और थी इसलिए उन्हें सेना छोड़ना पड़ा।
भले ही 14 साल की आयु में जमशेदजी टाटा ने अपने व्यवसाय को शुरू किया हो लेकिन वे अपना पूरा योगदान 1858 में अपने ग्रेजुएशन के बाद से ही दे पाये थे। 1858 से वे अपने पिता के हर काम में सहयोगी होते थे, उन्होंने उस समय अपने व्यवसाय को शिखर पर ले जाने की ठानी जिस समय 1857 के विद्रोह के कारण भारत में उद्योग जगत ज्यादा विकसित नही था। 1857 का मुख्य उद्देश् भारत में ब्रिटिश राज को खत्म करना और भारत को आज़ादी दिलाना ही था। फिर भी 1859 में नुसीरवानजी ने अपने बेटे को होन्ग कोंग की यात्रा पर भेजा, ताकि वे अपने बेटे की उद्योग क्षेत्र में रूचि बढ़ा सके, और उनके पिता की इस इच्छा को जमशेदजी ने बखुबी निभाया। और अगले चार सालो तक जमशेदजी होन्ग कोंग में ही रहे, और वे अपने पिता की ख्वाईश वहा टाटा ग्रुप ऑफ़ कंपनी का कार्यालय खोलने की सोचने लगे। होन्ग कोंग में टाटा & कंपनी के ऑफिस की स्थापना टाटा साम्राज्य के विस्तार को लेकर एशिया में टाटा & सन्स द्वारा लिया गया ये पहला कदम था। और 1863 से टाटा कार्यालय सिर्फ हॉन्गकॉन्ग में ही नही बल्कि जापान और चीन में भी स्थापित किये गये। एशिया में अपने उद्योग में विशाल सफलता हासिल करने के बाद जमशेदजी टाटा युरोप की यात्रा पर गए। लेकिन वहा उन्हें शुरुआत में ही असफलता का सामना करना पड़ा।
1925 में वे अवैतनिक प्रशिक्षु के रूप में टाटा एंड संस में शामिल हो गए। 1938 में उन्हें भारत के सबसे बड़े औद्योगिक समूह टाटा एंड संस का अध्यक्ष चुना गया। दशकों तक उन्होंने स्टील, इंजीनियरिंग, ऊर्जा, रसायन और आतिथ्य के क्षेत्र में कार्यरत विशाल टाटा समूह की कंपनियों का निर्देशन किया। वह अपने व्यापारिक क्षेत्र में सफलता और उच्च नैतिक मानकों के लिए बहुत प्रसिद्ध थे।
उनकी अध्यक्षता में टाटा समूह की संपत्ति $1000 लाख से बढ़कर 5 अरब अमरीकी डालर हो गयी। उन्होंने अपने नेतृत्व में 14 उद्यमों के साथ शुरूआत की थी ,जो 26 जुलाई 1988 को उनके पद छोड़ने के समय,बढ़कर 95 उद्यमों का विशाल समूह बन गया। उन्होंने 1968 में टाटा कंप्यूटर सेंटर(अब टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज) और 1979 में टाटा स्टील की स्थापना की।
1945 में उन्होंने टाटा मोटर्स की स्थापना की। जेआरडी टाटा ने 1948 में भारत की पहली अंतरराष्ट्रीय एयरलाइन के रूप में एयर इंडिया इंटरनेशनल का शुभारंभ किया। 1953 में भारत सरकार ने उन्हें एयर इंडिया का अध्यक्ष और इंडियन एयरलाइंस के बोर्ड का निर्देशक नियुक्त किया। वे इस पद पर 25 साल तक बने रहे। जेआरडी टाटा ने अपने कम्पनी के कर्मचारियों के हित के लिए कई नीतियाँ अपनाई। 1956 में, उन्होंने कंपनी के मामलों में श्रमिकों को एक मजबूत आवाज देने के लिए ‘प्रबंधन के साथ कर्मचारी एसोसिएशन’ कार्यक्रम की शुरूआत की।उन्होंने प्रति दिन आठ घंटे काम , नि: शुल्क चिकित्सा सहायता, कामगार दुर्घटना क्षतिपूर्ति योजनाओं को अपनाया।
जे.आर.डी. टाटा का कार्यक्षेत्र बहुत विस्तृत एवं व्यापक तथा उनका व्यक्तित्व बहु आयामी व प्रभावशाली था | अपने जीवनकाल में उन्होंने विपुल धनराशि अर्जित की, लेकिन इसका प्रयोग हमेशा लोक हित में किया | 29 नवंबर 1993 को उन्होंने इस दुनिया से विदा ली | टाटा समूह उनके बताए रास्ते पर चलते हुए आज भी निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है | देश के औद्योगीकरण एंव प्रगति में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता | टाटा उद्योग समूह ने उनके नेतृत्व में जिन उद्योगों की स्थापना की उनकी बदौलत आज लाखों लोगों को रोजगार मिला है | जिम्मेदारियों ने जे.आर.डी. को युवावस्था से पहले ही अनुभवी न्द्वश्ट पट) बना दिया । वे कम्पनी से केवल 750 रुपये वेतन लिया करते थे । 34 वर्ष की आयु में उनका विवाह थेली नामक कन्या से हुआ । इसके बाद उन्होंने विमान चलाने का लाइसेंस प्राप्त किया और लंदन में एक विमान खरीदा । उसी विमान में अकेले कराची से इंग्लैंड तक की उड़ान भर कर 1930 में आगा खाँ से 500 पौंड का पुरस्कार जीता ।
उनकी उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें कई पुरस्कारों, सम्मानों एंव उपाधियों से विभूषित किया गया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय तथा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ने उन्हें 1947 में डी.एस.सी. एंव बम्बई विश्वविद्यालय ने 1981 में एल.एल.डी. देकर सम्मानित किया। 1974 में उन्हें इंडियन एयर फोर्स द्वारा ‘एयर वाइस मार्शल’ घोषित किया गया। 1992 में उन्हें देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ प्रदान किया गया। यह पुरस्कार कला, साहित्य और विज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए की गई विशिष्ट सेवा और जन सेवा में उत्कृष्ट योगदान को सम्मानित करने के लिए प्रदान किया जाता है। देश के औद्योगीकरण को तेजी से आगे बढ़ाने और व्यापार, व्यवसाय एवं उद्योगों के क्षेत्र में साफ-सुथरी शैली स्थापित करने में उन्होंने जो महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी, उसके लिए वे इस सम्मान के वास्तविक हकदार थे। भारत के औद्योगीकरण में उनके योगदान के कारण ही उन्हें भारतीय उद्योग का पितामह कहा जाता है ।