जयंती पर विशेष । सी. एफ. एंड्रयूज C. F. Andrews (Charlie) समाज सुधारक महात्मा गांधी के करीबी अनुयायियों में थे। इनका जन्म 12 फरवरी 1871 को इंग्लैंड, न्यूकैसल में हुआ था। 1893 में उन्होने पैमब्रोक कॉलेज, कैम्ब्रिज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और 1897 में इंग्लैंड के चर्च मंत्रालय में कम करने लगे। बाद में उन्होने पैमब्रोक कॉलेज के पादरी और व्याख्याता के रूप में कम किया,1903 में उन्हें दिल्ली में कैम्ब्रिज ब्रदरहुड के सदस्य के रूप में धर्म के प्रचार के लिए सोसायटी द्वारा नियुक्त किया गया। मार्च 1904 में, एंड्रयूज सेंट स्टीफन कॉलेज में शिक्षण का कार्यभार ग्रहण करने के लिए भारत आ गये। एंड्रयूज और गोपाल कृष्ण गोखले दोस्त बन गए, और यहाँ गोखले ने पहली बार अनुबंधित श्रम की प्रणाली की खामियों और दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के कष्टों के साथ एंड्रयूज को परिचित कराया। एंड्रयूज ने महात्मा गांधी और उनके अहिंसक प्रतिरोध आंदोलन, या सत्याग्रह में सहायता के लिए 1913 के अंत में दक्षिण अफ्रीका जाने का फैसला किया। डरबन में महात्मा गाँधी के आगमन पर एंड्रयूज की मुलाकात गाँधी जी से हुई और एंड्रयूज ने झुककर गाँधी जी के पाँव छुए। इस मुलाकात के बारे में एंड्रयूज ने लिखा ” इस पहले पल की मुलाकात में हमारे दिलों ने एक दूसरे को देखा और और वो कभी न टूटने वाले प्यार के मजबूत संबंधों से एकजुट हो गये”।
यहाँ गाँधी जी नागरिक अधिकारों का उल्लंघन, नस्लीय भेदभाव और पुलिस कानून के खिलाफ विरोध व्यक्त करने के लिए भारतीय समुदाय को संगठित करने और नेटाल इंडियन कांग्रेस स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे। उन्होंने नटाल में आश्रम को संगठित करने और गाँधी जी की प्रसिद्ध पत्रिका, ‘द इंडियन ओपीनियन’ प्रकाशित करने में गांधी जी की मदद की।
रबींद्र नाथ टैगोर भी एंड्रयूज के मित्रों थे। एंड्रयूज सामाजिक सुधारों के प्रति टैगोरे की गहरी चिंता के प्रति आकर्षित थे, अंततः एंड्रयूज ने कलकत्ता (कोलकाता) के निकट टैगोर के प्रयोगात्मक स्कूल शांति निकेतन को ही अपना मुख्यालय बनाया। एंड्रयूज ने ईसाइयों और हिंदुओं के बीच संवाद विकसित किया । उन्होंने ‘बहिष्कृत की अस्पृश्यता’ पर प्रतिबंध लगाने के आंदोलन का समर्थन किया। 1925 में वह प्रसिद्ध वॉयकाम सत्याग्रह में शामिल हो गए, और 1933 में दलितों की मांगों को तैयार करने में अम्बेडकर जी की सहायता की| एंड्रयूज, रवीन्द्रनाथ टैगोर के साथ दक्षिण भारत के आध्यात्मिक गुरु श्री नारायणा गुरु से मिले, इसके बाद उनोोने रोमेन रोल्लैंड (फ्रेंच। नोबेल पुरस्कार विजेता साहित्यकार) को लिखा ‘मैने यीशु मसीह को सन्यासी की पोशाक में अरब सागर के तट पर चलते हुए देखा है’। एंड्रयूज ने इंग्लैंड के चर्च को कभी छोड़ा नहीं था परंतु उन्होने कैम्ब्रिज मिशन के ब्रदरहुड से इस्तीफा दे दिया था।
जुलाई 1914 में दक्षिण अफ्रीका छोड़ने के बाद, एंड्रयूज ने ज्यादातर भारतीय मजदूरों का प्रतिनिधित्व करते हुए, फिजी, जापान, केन्या, और सीलोन (श्रीलंका) सहित कई देशों की यात्रा की। 1920 से वह आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के साथ जुड़ गये और वह 1925 में उसके अध्यक्ष भी बने। 1930 के प्रारंभ में, एंड्रयूज लंदन में गोलमेज सम्मेलन की तैयारियों में गांधी जी की सहायता की। स्वयं को भारतीय नेताओं और ब्रिटिश सरकार के बीच सुलह मंत्रीके रूप में पेश करने का अनूठा विचार एंड्रयूज का ही था।
एंड्रयूज ने भारतीय राजनीतिक आकांक्षाओं का समर्थन किया, और इन भावनाओं को व्यक्त करते हुए 1906 में सिविल और सैन्य राजपत्र में पत्र भी लिखा था। एंड्रयूज जल्द ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की गतिविधियों में शामिल हो गये, और उन्होने मद्रास में 1913 में कपास श्रमिकों की हड़ताल को हल करने में मदद की। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एंड्रयूज के योगदान को देखते हुए सेंट स्टीफन कॉलेज के उनके छात्रों और गाँधी जी ने उन्हें ‘दीनबन्धु’ (ग़रीबों का मित्र) की उपाधि दी। एंड्रयूज की कलकत्ता के लिए यात्रा के दौरान, 5 अप्रैल 1940 को मृत्यु हो गई, और लोअर सर्कुलर रोड, कलकत्ता के ‘ईसाई कब्रिस्तान’ में दफ़नाया गया था ।एजेंसी