वैसे तो 2017 कई राज्यों का भाग्य विधाता रहा है। इसी वर्ष उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में विधानसभा के चुनाव हुए। इनमें गोवा को छोड़कर सभी राज्यों में सरकारें बदल गयीं। पंजाब में अकाली दल-भाजपा गठबंधन की सरकार को वहां की जनता ने कांग्रेस को सत्ता सौंपी तो उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को हटाकर भाजपा ने सरकार बनायी। इसी तरह उत्तराखण्ड में कांग्रेस को सत्ता गंवानी पड़ी और भाजपा ने वहां भी बहुमत से सरकार बनायी। मणिपुर में कांग्रेस का डेढ़ दशक से राज चल रहा था। वहां भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला लेकिन कांग्रेस की सुस्ती से वहां भी भाजपा सरकार बनाने में सफल रही और गोवा में भाजपा की पहले से सरकार थी लेकिन उसे जनता ने पूर्ण बहुमत नहीं दिया और यहां भी कांग्रेस की उदासीनता से भाजपा की ही सरकार बनी। वर्ष के अंत में भाजपा ने जहां गुजरातमें अपनी सरकार कायम रखी, वहीं हिमाचल को भी कांग्रेस से छीनकर देश भर मंे 19 राज्यों में राजग की सरकार बनने का कीर्तिमान बनाया। इन सबके बीच बिहार में जिस तरह से भाजपा ने राजग की सरकार बनायी है, उसे सबसे बड़ा सियासी नाटक माना जा रहा है।
बिहार में 2015 में राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव ने जब अपने धुर विरोधी जद(यू) के नेता नीतीश कुमार और शरद यादव के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया जिसमें कांग्रेस भी शामिल थी, तब लगा कि अब बिहार में नरेन्द्र मोदी का जादू नहीं चल पाएगा। बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने यह साबित भी कर दिया लेकिन सबसे ज्यादा आश्चर्य यह देखकर हुआ था कि चारा घोटाले में जेल गये राजद सुप्रीमों लालू यादव ने अपनी पार्टी को बिहार की सबसे बड़ी पार्टी साबित कर दिया। राजद को 80 विधायक मिले जबकि नीतीश कुमार की पार्टी को 71 विधायक ही मिल पाये थे। इस प्रकार यह महागठबंधन अजेय माना जा रहा था। इस गठबंधन का 2017 मंे बिखरना सबसे महत्वपूर्ण घटना रही है। इतना ही नहीं राज्य की सबसे बड़ी पार्टी के नेता लालू प्रसाद यादव को रांची की एक विशेष अदालत ने इसी साल 23 दिसम्बर को 21 साल पुराने चारा घोटाले मंे दोषी करार दे दिया है जिसकी सजा अगले साल की तीन जनवरी को सुनाई जाएगी। फिलहाल 2017 ने श्री लालू यादव को सत्ता के शिखर पुरुष से कठघरे में खड़ा कर दिया है और वह रांची की बिरसा मुंडा जेल में नया वर्ष मनाएंगे।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का झुकाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति बहुत पहले से जाहिर हो गया था। श्री मोदी ने बहुत बड़ा साहस भरा फैसला नोटबंदी का लिया था। विपक्षी दलों के नेता इस नोटबंदी का विरोध कर रहे थे लेकिन नीतीश कुमार ने नोटबंदी का समर्थन किया था। इसके बाद वर्ष 2017 की शुरुआत में भी श्री मोदी और नीतीश कुमार की दोस्ती परवान चढ़ने लगी थी। जनवरी में बिहार में प्रकाश पर्व मनाया गया। पटना साहिब में भव्य आयोजन हुआ और गुरु गोविन्द सिंह की 350वीं जयंती मनायी गयी। इस जयंती समारोहों की शुरुआत के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पटना पहुंचे और वहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके साथ मंच साझा किया था। इस समारोह में राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव मंच पर नहीं बैठे थे। श्री नीतीश कुमार की इस नजदीकी पर राजद के नेताओं ने आलोचना भी की थी। नीतीश कुमार ने उसी मंच पर नरेन्द्र मोदी के नोटबंदी के फैसले की जमकर तारीफ की थी। गठबंधन के सहयोगी नाराज हुए लेकिन नीतीश कुमार ने इसकी परवाह नहीं की। उसी समय यह पता चल गया था कि महागठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। हालांकि इससे पूर्व नीतीश कुमार ने शराबबंदी का श्रेय भी खुद लेने का प्रयास किया और लालू यादव को यह बात भी अच्छी नहीं लगी थी।
इसके बाद राष्ट्रपति चुनाव के समय नीतीश ने फिर गठबंधन को किनारे कर दिया। भाजपा ने बिहार के तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाया था। इसी आधार पर नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ दिया। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस मुद्दे की सियासी काट के लिए बिहार के ही नेता रहे बाबू जगजीवनराम की पुत्री और दलित नेता मीरा कुमार को प्रत्याशी बनाया लेकिन नीतीश कुमार तो जैसे अपनी योजना बना चुके थे और मीरा कुमार का समर्थन न करके भाजपा समर्थित रामनाथ कोविंद का पक्ष लिया। श्री रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति बने। इसके साथ ही बिहार का महागठबंधन दरक गया था लेकिन पूरी तरह अलग नहीं हुआ था।
ताबूत में आखिरी कील की तरह लालू यादव के परिवार पर घोटाले के आरोप आ गये। सीबीआई ने होटल घोटाले, जो श्री लालू यादव के रेलमंत्री बनने के दौरान हुआ बताया जा रहा है, में लालू प्रसाद उनके छोटे बेटे तथा महागठबंधन सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे तेजस्वी यादव समेत उनके परिजनों के खिलाफ मामला दर्ज किया। नीतीश कुमार ने पहले समझाने का प्रयास किया लेकिन बाद में उन्हांेने स्वयं इस्तीफा देकर भाजपा की मदद से सरकार बना ली। इस नाटकीय घटनाक्रम में जद(यू) के नेता शरद यादव नाराज हुए लेकिन पार्टी के विधायकों ने उनका साथ नहीं दिया। उन्हें राज्यसभा की सदस्यता भी गंवानी पड़ी। बिहार में भाजपा समर्थित राजग की सरकार बनना इस वर्ष की चौकाने वाली घटना रही है और बीते वर्ष ने यह भी सबक दिया है कि महागठबंधन बनाना तो आसान है लेकिन उसको कायम रखना बहुत कठिन होता है। (हिफी)