पुण्य तिथि पर विशेष। मेजर जनरल शाह नवाज़ ख़ान आजाद हिन्द फौज के अधिकारी थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्त होने पर जनरल शाह नवाज़ ख़ान, कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों तथा कर्नल प्रेम सहगल के ऊपर अंग्रेज सरकार ने मुकद्दमा चलाया। वे अभिनेता शाहरुख खान के नाना थे।
उनका जन्म 24 जनवरी 1914 को गांव मटौर,रावलपिंडी (अब पाकिस्तान) में झंझुआ राजपूत कैप्टन सरदार टीका खान के घर हुआ था। उनकी पढ़ाई रावलपिंडी (अब पाकिस्तान) में हुई थी। उन्होंने प्रिंस ऑफ वेल्स रावल इंडियन मिलिट्री कॉलेज देहरादून से प्रशिक्षण लिया और 1940 में ब्रिटिश इंडियन आर्मी में अधिकारी के तौर पर ज्वाइन कर लिया। लाल किले पर ब्रिटिश हुकूमत का झंडा उतारकर तिरंगा लहराने वाले मेजर जनरल शाह नवाज़ ख़ान थे।
शाह नवाज़ ख़ान ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आजाद हिन्द फौज में मेजर जनरल के रूप में कार्य किया था। युद्ध के बाद, उन्हें देशद्रोह के लिए दोषी ठहराया गया, और ब्रिटिश भारतीय सेना द्वारा किए गए सार्वजनिक न्यायालय-मार्शल में मौत की सजा सुनाई गई। देश में अशांति और विरोध के बाद भारतीय सेना के कमांडर-इन-चीफ ने सजा को कम कर दिया था।
द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होने पर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में नाटकीय बदलाव आया। 15 अगस्त 1947 भारत को आजादी मिलने तक, भारतीय राजनैतिक मंच विविध जनान्दोलनों का गवाह रहा। इनमें से सबसे अहम् आन्दोलन, आजाद हिन्द फौज के 17 हजार जवानों के खिलाफ चलने वाले मुकदमे के विरोध में जनाक्रोश के सामूहिक प्रदर्शन थे।
मेजर जनरल शाह नवाज़ ख़ान को मुस्लिम लीग और ले. कर्नल गुरुबख्श सिंह ढिल्लन को अकाली दल ने अपनी ओर से मुकदमा लड़ने की पेशकश की, लेकिन इन देशभक्त सिपाहियों ने कांग्रेस द्वारा जो डिफेंस टीम बनाई गई थी, उसी टीम को ही अपना मुकदमा पैरवी करने की मंजूरी दी। मजहबी भावनाओं से ऊपर उठकर सहगल, ढिल्लन, शाह नवाज़ ख़ान का यह फैसला सचमुच प्रशंसा के योग्य था।
हिन्दुस्तानी तारीख में ‘लाल किला ट्रायल’ का अहम् स्थान है। लाल किला ट्रायल के नाम से प्रसिध्द आजाद हिन्द फौज के ऐतिहासिक मुकदमे के दौरान उठे इस नारे ‘लाल किले से आई आवाज-सहगल, ढिल्लन,शाह नवाज़’ ने उस समय हिन्दुस्तान की आजादी के हक के लिए लड रहे लाखों नौजवानों को एक सूत्र में बांध दिया था। वकील भूलाभाई देसाई इस मुकदमे के दौरान जब लाल किले में बहस करते, तो सड़कों पर हजारों नौजवान नारे लगा रहे होते। पूरे देश में देशभक्ति का एक वार सा उठता। 15 नवम्बर 1945 से 31 दिसम्बर 1945 यानी, हिन्दुस्तान की आजादी के संघर्ष में टर्निंग पॉइंट था। यह मुकदमा कई मोर्चों पर हिन्दुस्तानी एकता को मजबूत करने वाला साबित हुआ।
इस ट्रायल ने पूरी दुनिया में अपनी आजादी के लिए लड़ रहे लाखों लोगों के अधिकारों को जागृत किया। सहगल, ढिल्लन और शाह नवाज़ ख़ान के अलावा आजाद हिन्द फौज के अनेक सैनिक जो जगह-जगह गिरफ्तार हुए थे और जिन पर सैकड़ों मुकदमे चल रहे थे, वे सभी रिहा हो गए। 3 जनवरी 1946 को आजाद हिन्द फौज के जांबाज सिपाहियों की रिहाई पर ‘राईटर एसोसिएशन ऑफ अमेरिका’ तथा ब्रिटेन के अनेक पत्रकारों ने अपने अखबारों में मुकदमे के विषय में जमकर लिखा। इस तरह यह मुकदमा अंतर्राष्ट्रीय रूप से चर्चित हो गया। अंग्रेजी सरकार के कमाण्डर-इन-चीफ सर क्लॉड अक्लनिक ने इन जवानों की उम्र कैद सजा माफ कर दी। हवा का रुख भांपकर वे समझ गए, कि अगर इनको सजा दी गई तो हिन्दुस्तानी फौज में बगावत हो जाएगी।
विचारणा के दौरान ही भारतीय जलसेना में विद्रोह शुरू हो गया। बम्बई अब मुम्बई, अब पाकिस्तान में कराची, कलकत्ता अब कोलकाता,वाल्टेयर अब विशाखापत्तनम आदि सब जगह विद्रोह की ज्वाला फैलते देर न लगी। इस विद्रोह को जनता का भी भरपूर समर्थन मिला।
शाह नवाज़ ख़ान ने 1952 में पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर मेरठ से चुनाव जीता था। इसके बाद 1957, 1962 व 1971 में मेरठ से लगातार जीत हासिल करते रहे थे की। वह 23 साल तक केन्द्र सरकार में मंत्री रहे। 1952 में पार्लियामेंट्री सेक्रेट्री औऱ डिप्टी रेलवे मिनिस्टर बने। 1957-1964 तक खाद्य एवं कृषि मंत्री के पद पर रहे। 1965 में कृषि मंत्री एवं 1966 में श्रम, रोज़गार एवं पुनर्वास मंत्रालय की ज़िम्मेदारी संभाली। 1971 से 1975 तक उन्होंने पेट्रोलियम एवं रसायन और कृषि एवं सिंचाई मंत्रालय की बागडोर संभाली। 1975 से 1977 के दौरान केन्द्रीय कृषि एवं सिंचाई मंत्री के साथ एफसीआई के चेयरमैन का उत्तरदायित्व भी उन्होंने बखूबी निभाया। मेरठ लोकसभा सीट से प्रतिनिधित्व करने वाले मेजर जनरल शाह नवाज़ 23 साल केन्द्र सरकार में मंत्री रहे. मेरठ जैसे संवेदनशील शहर में उनके जमाने में कभी कोई दंगा-फसाद नहीं हुआ।
. 1956 में भारत सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत के कारणों और परिस्थितियों के खुलासे के लिए कमीशन बनाया था, इसके अध्यक्ष भी जनरल शाह नवाज खान ही थे। शाह नवाज़ ख़ान का निधन 9 दिसम्बर 1983 को हुआ था।