लखनऊ के स्थानीय निकाय चुनावों का प्रचार आज थम गया तो लोगों के अन्दर की भावनाएं प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सामने आने लगीं। इसी संदर्भ में कई लोगों से बात हुई तो मालूम हुआ कि लखनऊ में इस बार भाजपा की महापौर प्रत्याशी श्रीमती संयुक्ता भाटिया लगभग साढ़े तीन लाख मतों से विजयी होंगी। लोगों से जब इस संदर्भ में इसके कारण पूछे गये तो हर एक ने अपने-अपने विचार से बताया लेकिन सभी का सारांश यही था कि भाजपा प्रत्याशी संयुक्ता भाटिया भारी बहुमत से चुनाव जीतेंगी। इन लोगोें से जिस प्रकार बातचीत हुई और उनके निष्कर्ष का आधार समझा गया तो यही लगा कि लखनऊ की जागरूक जनता चुनाव के समय कितना जोड़-घटाना करती है और किस तरह सोच-समझकर अपने मताधिकार का प्रयोग करके प्रतिनिधि का चयन करती है।
सबसे पहले तो लोगों ने इस बात की तरफ ध्यान दिलाया कि महापौर पद के तीन प्रमुख दलों की प्रत्याशी किस प्रकार का अनुभव रखती हैं। लोगों का मानना है कि कांग्रेस की महापौर पद की प्रत्याशी के पास समाजसेवा का कोई अनुभव ही नहीं है। कांग्रेस प्रत्याशी अपने पति के सामाजिक कार्यों का उल्लेख करती रहती हैं। ऐसे प्रत्याशी को प्रदेश की राजधानी के महापौर का दायित्व सौंपने से नगर का कोई भला नहीं होगा। नगर निगम सदन को भी वे ठीक तरह से संचालित नहीं कर पाएंगी। इसलिए महापौर के रूप में उनको चुनना यहां की जनता पसंद नहीं कर रही है। दूसरी मुख्य प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी समाजवादी पार्टी की मीरा वर्द्धन हैं। समाज सेवा के क्षेत्र में इनका नाम भी लखनऊ के लोगों ने आज तक नहीं सुना था। उनका परिचय भी उनके एक नामचीन पूर्वज के रूप में दिया जाता है। महापौर के रूप में लखनऊ की सेवा जिसे करना है उसके बारे में ही यहां की जनता सोचती है। इसलिए मीरा वर्द्धन जी को भी महापौर चुनकर लखनऊ की जनता पांच साल के लिए पछताना नहीं चाहेगी। मीरा वर्द्धन समाजवादी पार्टी से जुड़ी हैं जिसे विधानसभा चुनाव में यहां की जनता ठुकरा चुकी है। इसलिए मीरा वर्द्धन के प्रति भी यहां की जनता का झुकाव नहीं। इसी के साथ लोगों का मानना है कि बसपा प्रत्याशी बुलबुल गोदियाल को भी इस चुनाव से ही लोगांे ने जाना है। बसपा के प्रति 2014 से ही लोगांे का नजरिया बदला हुआ है। लोकसभा चुनाव में बसपा को एक भी सांसद नहीं मिल सका। इस बीच बसपा ने अपने को जनसेवा से जोड़ने की कोशिश भी नहीं की और इसका नतीजा यह रहा कि 2017 में जब प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए तो राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी सिर्फ 19 विघायक ही जुटा सकी। बसपा की तरफ से जनता पूरी तरह निराश हो चुकी है इसलिए बसपा प्रत्याशी बुलबुल गोदियाल को भी यहां की जनता महापौर नहीं बनाना चाहती।
इसीलिए भाजपा प्रत्याशी संयुक्ता भाटिया पर ही सभी की निगाहें टिकी हैं। संयुक्ता भाटिया अर्से से सामाजिक कार्याें में जुटी रही हैं उनके पति स्व. सतीश भाटिया लखनऊ के ही कैंट क्षेत्र से विधायक थे और अपने क्षेत्र की जनता की समस्याओं को दूर करने में उन्हांेने खून-पसीना एक कर दिया था। अपने पति से समाजसेवा का गुरुमंत्र संयुक्ता भाटिया ने भी सीखा है। वर्तमान में संयुक्ता भाटिया दीनदयाल सेवा प्रतिष्ठान (महिला प्रभार) की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अवध प्रांत की महिला समन्वयक हैं। भाजपा की प्रदेश कार्य समिति की सदस्य हैं। संस्कार भारती के पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र की क्षेत्रीय महिला प्रमुख हैं। सिंगार कोआपरेटिव हाउसिंग सोसायटी की अध्यक्ष और आलमबाग व्यापार मंडल, लखनऊ की संरक्षक हैं। भारत रक्षा दल की वह सरंक्षक हैं। भाजपा महिला मोर्चा, उत्तर प्रदेश की प्रदेश प्रभारी होने के चलते उन्होंने महिलाओं को राजनीति में सहभागिता की जोरदार वकालत की है। भारत विकास परिषद की वह अध्यक्ष रह चुकी हैं। इसके अलावा बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की सह संयोजिका रहकर उन्होंने लोगों को जागरूक किया है। इस प्रकार संयुक्ता भाटिया का समाजसेवा के विभिन्न वर्गाें में कार्य करने का विस्तृत अनुभव रहा है और वह लखनऊ नगर का चहुंमुखी विकास कर सकती हैं। इसलिए उन्हें लगभग साढ़े तीन लाख से अधिक मतों से जीत मिलना निश्चित है।
संयुक्ता भाटिया को साढ़े तीन लाख से अधिक मतों से जिताने वालों का एक तर्क यह भी है कि लखनऊ में इससे पूर्व महापौर रह चुके डा0 दिनेश शर्मा मौजूदा समय में प्रदेश के उप मुख्यमंत्री हैं उन्होंने महापौर का चुनाव तब डेढ़ लाख मतों से जीता था जब प्रदेश में भाजपा का प्रबल विरोध करने वाली सरकार थी। इसी प्रकार जब 2014 में संसदीय चुनाव हो रहे थे तब भी प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और लखनऊ से श्री राजनाथ सिंह ने पांच लाख से अधिक मतों से संसदीय चुनाव में विजय प्राप्त की थी। संसदीय चुनाव में जिस तरह प्रदेश में भाजपा को 63 सांसद मिले और 2017 के विधानसभा चुनाव में दो-तिहाई से कहीं ज्यादा बहुमत मिला उससे प्रदेश और उसकी राजधानी लखनऊ की जनता का रुझान समझा जा सकता है। दिल्ली में भाजपा की सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जनकल्याणकारी योजनाओं का ही नतीजा था कि उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में भाजपा की सरकार बनी। भाजपा सरकार के तीन साल के कार्यकलाप और उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार के 8 महीनों के कार्यकाल ने भी यही साबित किया है कि लखनऊ नहीं नहीं प्रदेश और देश की जनता भाजपा की नीतियों में ही विश्वास करती है और निकायों में भी उसी के प्रतिनिधि चुने जाएंगे। इसलिए भाजपा प्रत्याशी संयुक्ता भाटिया को साढ़े तीन लाख से ज्यादा मतों से जीत मिलेगी।
लखनऊ की जनता भाजपा के नगर निकाय चुनाव संकल्प पत्र 2017 को भी ध्यान से पढ़ रही है। इस संकल्प पत्र में नगर निकायों की कार्य प्रणाली में पारदर्शिता, सार्वजनिक स्वच्छता, सुगम यातायात, निर्वल वर्ग व असंगठित फुटपाथ दुकानदारों का कल्याण, मेहनतकश श्रमिकों और जरूरत मंदों का कल्याण, प्रमुख धार्मिक स्थलों का कायाकल्प, पशु कल्याण, अन्त्येष्टि स्थलों का सुंदरीकरण, स्वच्छ पर्यावरण का विकास, मनोरंजन व ज्ञानवर्द्धन के लिए स्थलों के विकास पर भरपूर ध्यान देने की बात कही गयी है। लखनऊ की जागरूक जनता ऐसे ही प्रत्याशी को महापौर पद सौंपने का मन बना चुकी है। भाजपा प्रत्याशी संयुक्ता भाटिया ने फाइव एस अर्थात स्वच्छता, सुंदरता, सुव्यवस्था सुरक्षा और लखनऊ को स्मार्ट सिटी का जो संकल्प रखा है उसे यहां के लोग बहुत पसंद कर रहे हैं। जनता जनार्दन होती है। उसकी बात को झुठलाने की कोशिश कोई कैसे कर सकता है। (हिफी)