देश के 421 हथकरघा-हस्तशिल्प क्लस्टरों में इस समय चल रहे हस्तकला सहयोग शिविरों से 1.20 लाख बुनकरों और कारीगरों को होगा फायदा |
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*पारुल चंद्रा भारत हस्त निर्मित वस्त्रों और हस्तशिल्प के मामले में खासा समृद्ध है, जिसको लेकर उसे देश से ही नहीं बल्कि विदेश से भी सराहना मिलती रही है और खरीदार भी इनकी ओर आकर्षित होते रहे हैं। भारत में आंध्र प्रदेश और ओडिशा की जटिलता से बुनी गई इकात साड़ी, गुजरात की पाटन पटोलास, उत्तर प्रदेश की बनारसी साड़ी, मध्य प्रदेश की महीन माहेश्वरी बुनाई या तमिलनाडु की काष्ठ या पत्थर से बनी मूर्तिकारी के अलावा भी काफी कुछ मौजूद है, जिन्हें दुनिया में हथकरघा और हस्तशिल्प के मामले में अलग पहचान मिली हुई है। भारत में बुनकरों और कारीगरों को वस्त्र और हथकरघा की समृद्ध विविधता के निर्माण के लिए कड़ी मशक्कत करनी होती है। कपड़ों की बुनकरी और हस्तशिल्प के माध्यम से उन्हें होने वाली कमाई उनकी मेहनत, कौशल और कच्चे माल की लागत के अनुरूप नहीं होती है। मुख्य रूप से ग्रामीण भारत पर आधारित बुनकरों और कारीगरों के लिए अपने उत्पादों को बाजार में सही जगह दिलाना भी मुश्किल होता है। इस क्रम में वे अपने उत्पादों को बेचने के लिए बिचौलियों पर निर्भर हो जाते हैं, जो अच्छा खासा लाभ कमाते हैं और बुनकरों व कारीगरों के हाथ में उचित कीमत के बजाय मामूली पारिश्रमिक ही आ पाता है। बुनकरों और कारीगरों के सामने मौजूद तमाम चुनौतियों को दूर करने के क्रम में केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय ने उन्हें सहयोग देने के लिए कई कदम उठाए हैं। इन उपायों के तहत मंत्रालय वर्तमान में 11 दिवसीय ‘हस्तकला सहयोग शिविर’का आयोजन कर रहा है। 7 अक्टूबर से शुरू हुए ये शिविर देश के हर कोने में लगाए जा रहे हैं। यह पहल पंडित दीन दयाल के जन्म शताब्दी के मौके पर आयोजित पंडित दीन दयाल उपाध्याय गरीब कल्याण वर्ष के लिए समर्पित है। इन शिविरों का आयोजन देश के 200 से ज्यादा हथकरघा क्लस्टरों और बुनकर सेवा केंद्रों के साथ ही 200 हस्तशिल्प क्लस्टरों में भी किया जा रहा है। बड़ी संख्या में बुनकरों और कारीगरों तक पहुंच बनाने के लिए इनका आयोजन 228 जिलों के 372 स्थानों पर हो रहा है। केंद्रीय वस्त्र मंत्री स्मृति ईरानी ने पिछले महीने एक ट्वीट में कहा था, ‘हस्तकला सहयोग शिविरों के माध्यम से 1.20 लाख से ज्यादा बुनकरों/कारीगरों को फायदा होगा, जो देश के 421 हथकरघा-हस्तशिल्प क्लस्टरों में होंगे।’ जिन राज्यों में शिविरों का आयोजन किया जा रहा है, वे असम, अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, जम्मू एवं कश्मीर, झारखंड, केरल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल हैं। बुनकरों और कारीगरों को कर्ज जुटाने के लिए खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, जो उत्पादों के लिए कच्चे माल की खरीद और उदाहरण के लिए करघों की तकनीक को अपग्रेड करने के वास्ते जरूरी है। इसे देखते हुए वस्त्र मंत्रालय ने इन शिविरों में कर्ज सुविधाओं पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया है। इस क्रम में शिविरों में बुनकरों और कारीगरों को सरकार की मुद्रा (माइक्रो यूनिट डेवलपमेंट एंड रिफाइनैंस एजेंसी) योजना के माध्यम से कर्ज सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है, जिससे सूक्ष्म उपक्रमों को वित्तीय सहायता मिलती है। इसके अलावा इन शिविरों में भाग लेने वालों को हथकरघा संवर्द्धन सहायता के अंतर्गत तकनीक में सुधार और आधुनिक औजार व उपकरण खरीदने में सहायता दी जाएगी। हथकरघा योजना के अंतर्गत सरकार 90 प्रतिशत लागत का बोझ उठाकर बुनकरों को नए करघे खरीदने में सहायता करती है। एक अहम बात यह भी है कि शिविरों में बुनकरों और कारीगरों को पहचान कार्ड भी जारी किए जाएंगे। बुनकरों और कारीगरों की उत्पादों को बाजार तक पहुंचाने में आने वाली दिक्कतों को देखते हुए कुछ शिविरों में निर्यात/शिल्प बाजार/बायर-सेलर्स मीट भी कराई जा रही हैं। इन शिविरों की एक और अहम बात यह है कि बुनकरों को यार्न (धागा या सूत) पासबुक भी जारी की जा रही है, क्योंकि बुनकरों के लिए यार्न एक अहम कच्चा माल है। इसके अलावा बुनकरों और कारीगरों के बच्चों के लिए शिक्षा की अहमियत को देखते हुए शिविरों में राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) और इग्नू द्वारा चलाए जा रहे पाठ्यक्रमों में नामांकन कराने में सहयोग दिया जाएगा। बिचौलियों की भूमिका समाप्त करने के प्रयासों के तहत वस्त्र मंत्रालय बुनकरों और कारीगरों को अपने उत्पाद सीधे बेचने के लिए भारत और विदेश के कार्यक्रमों में भाग लेने में मदद कर रहा है। ऐसा राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम के अंतर्गत फंडिंग के माध्यम से किया जा रहा है। इसके लिए बीते तीन साल के दौरान वस्त्र मंत्रालय देश में 849 विपणन कार्यक्रमों के आयोजन के लिए 151.90 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता उपलब्ध करा चुका है। इससे देश के 8,46,900 बुनकरों को फायदा हुआ है। ‘हस्तकला सहयोग शिविर’ वस्त्र मंत्रालय के बुनकरों और कारीगरों की स्थिति में सुधार के प्रयासों का हिस्सा है, जिससे निश्चित तौर पर इन क्षेत्रों को भी बढ़ावा मिलेगा। उदाहरण के लिए, सरकार ने ई-धागा ऐप पेश किया है, जिससे बुनकरों को ऑर्डर देने और यार्न की शिपिंग पर नजर रखने में मदद मिलती है। इसके साथ ही बुनकरों के लिए ‘बुनकर मित्र’ हेल्पलाइन भी शुरू की गई है। देश की अर्थव्यवस्था में हथकरघों और हस्तशिल्प क्षेत्र के योगदान को मानते हुए इन्हें बढ़ावा दिया जा रहा है। इन दोनों क्षेत्रों से देश को बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा भी मिलती है। हथकरघा क्षेत्र को बढ़ावा देने के क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 अगस्त, 2015 को पहले राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के तौर पर मनाने का एलान किया था। हथकरघा और हस्तशिल्प क्षेत्र देश के सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले क्षेत्रों में शामिल हैं और इनसे सिर्फ कृषि क्षेत्र ही आता है। वस्त्र मंत्रालय की वित्त वर्ष 2016-17 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक हथकरघा और हस्तशिल्प क्षेत्रों ने क्रमशः 43.31 लाख और 68.86 लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध राया। इन दोनों क्षेत्रों से देश को गुणवत्तापूर्ण उत्पादों के निर्यात के माध्यम से बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा की आय भी होती है। इसके साथ ही हथकरघा और हस्तशिल्प भारत की विरासत का मूल्यवान और अभिन्न अंग है, जिसे सुरक्षित रखना और प्रोत्साहन देने की जरूरत है। *******लेखिका दिल्ली की एक वरिष्ठ पत्रकार हैं। |