सपने देखना इंसानी फितरत है और सपनों की व्याख्या और विश्लेषण करना विशेषज्ञों का धंधा। कोई क्या सपना देखता है वह उसके चरित्र, उसके आस-पास के वातावरण और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। अब वह सपने में जो कुछ भी देखता है वह क्यों और क्या है, इसे समझाने का काम है विशेषज्ञों का। सपनों का संसार भी अनन्त है और उन्हें समझने का दायरा भी उतना ही फैला हुआ है जिसका न ओर है और न कोई छोर। तभी तो हम इंसान सपनों में वह सब कुछ देख लेते हैं जिसकी शायद हमने कल्पना भी न की होगी। कम से कम चेतनावस्था में तो नहीं ही। सपनों में हम हंस भी लेते हैं और दूर से दूर बसे स्थानों की सैर भी कर लेते हैं। और कभी-कभी तो हमारे सपने हमको इतना ज्यादा सम्मोहित कर लेते हैं कि हम नींद में भी अच्छे अच्छे व्यंजनों का स्वाद भी चख लेते हैं। और खुशबू का भी लुत्फ उठा लेते हैं और अक्सर ऐसा होता है कि नींद से जागकर हम कहते हैं कि हमने अपने सपने में किसी को देखा. किसी का चेहरा, कोई डरावनी घटना, या कोई फिल्मी दृश्य तो कभी-कभी कोई आवाज और म्यूजिक भी हम सपने में सुन लेते हैं। लेकिन कभी-कभी हम किसी प्रकार की गंध को सपने में महसूस करते हैं। ऐसा हमेशा नहीं होता लेकिन होता तो है ही क्योंकि कुछ लोग मानते हैं कि उन्होंने सपनों में गंध को महसूस किया है। ऐसी ही हैं एक महिला श्रीमती फ्रांसिस्का। इटली के उत्तरी शहर बोलोनिया में हर साल मई में होने वाले सुगंध महोत्सव की डायरेक्टर फ्रांसिस्का फारूओला अपने सपनों के बारे में बेहद दिलचस्पी से बात करती हैं। उनका कहना है, मैंने निश्चित रूप से अपने सपने में नारंगी रंग के फूलों की सुगंध को महसूस किया है। वह पूरे विश्वास से कहती हैं कि गंध वाले सपने होते हैं। लेकिन यह हर व्यक्ति के बस की बात नहीं क्योंकि एक तो ऐसे सपने बहुत कम होते हैं और इनमें उठने वाली सुगंध या दुर्गन्ध, जो भी है वह बस क्षणिक ही होती है जो क्षण भर बाद ही लुप्त हो जाती हैं लेकिन इसके बावजूद ऐसे बहुत सारे लोग हैं जो अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में बहुत संवेदनशील होते हैं या उनमें गंध को महसूस करने की गजब की क्षमता होती है। कुछ वैज्ञानिकों ने भी इस विषय पर कुछ शोध किए हैं. लेकिन उनके शोध का मुख्य आधार सपने में बाहर से आने वाले गंध के प्रभाव ही रहे हैं। 150 साल पुराने एक शोध में फ्रांसीसी विद्वान और चिकित्सक अल्फ्रेड मोरी ने बताया है कि सपने आत्मप्रेरित होते हैं. अल्फ्रेड मोरी के इस शोध का जिक्र फ्रायड ने भी किया है. मोरी ने अपनी बात को पुख्ता करने के लिए अपने एक सहयोगी को सोते समय नाक के नीचे सेंट लगाने को कहा था और जागने पर सहायक ने बताया कि सपने में वह काहिरा में कोलोन ईजाद करने वाले गिओवाना मारिया फरीना के वर्कशॉप में पहुँच गए हैं और इसके बाद उन्होंने सपने में कई रोमांचक घटनाएं होते देखीं। लेकिन अमरीका की ब्राउन युनिवर्सिटी में मनोवैज्ञानिक प्रोफेसर और ‘द सेंट ऑफ डिजायर’ नाम की किताब लिखने वाली रेचल हर्ज इस विषय पर हुए पुराने शोधों को नहीं मानतीं। रेचल के शोध से पता चलता है कि लोग अपनी नींद में सपने देखते वक्त या गहरी नींद में गंध से प्रभावित नहीं होते हैं और आमतौर पर, नींद में आप गंध महसूस नहीं करते हैं. आप कॉफी की गंध को सूंघने के बाद नहीं उठते, बल्कि उठने के बाद उसकी गंध महसूस करते हैं। उनका कहना है कि हल्की नींद में अगर हम कॉफी की गंध को महसूस करते हैं, और अगर वो गंध हमें अच्छी लगती है, तो उससे हमारी नींद खुल जाती है। अर्थात् जब हम यह गंध महसूस करते हैं तो हम पूरी तौर पर सोये हुए नहीं होते। उनका मानना है कि जिस प्रकार के गंध की बात कर रहे हैं वे हमारे दिमाग की उपज हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं। लेकिन यह सिक्के का सिर्फ एक पहलू है। इसका दूसरा पहलू है युनिवर्सिटी ऑफ ड्रेसडेन के स्मैल और टेस्ट क्लीनिक के प्रोफेसर थॉमस हम्मेल जो रेचल की राय से पूरी तरह इत्तेफाक नहीं रखते हैं। हालांकि उनका शोध रेचल के इस निष्कर्ष की पुष्टि करता है कि किसी भी तरह की गंध से हमारी नींद नहीं खुलती बल्कि गंध हमारे सपनों को जरूर प्रभावित करती है। प्रोफेसर हम्मेल ने एक शोध किया था जिसमें उन्होंने कुछ लोगों को दो तरह की गंध सुंघाई। कुछ लोगों को हाइड्रोजन सल्फाइड (सड़े हुए अंडे और बम की गंध) और दूसरे लोगों को फिनाइल एथिल एल्कोहल (गुलाब की खुशबू की गंध) सुंघाई गयी। इसके बाद उन सभी को क्लिनिकल आॅवजरवेशन में रखा गया। रात भर उनकी हरकतों को नोट किया गया। कुछ इत्मीनान से दिखे तो कुछ बेचैन से नजर आये। प्रोफेसर हम्मेल ने पाया कि नींद से जागने पर पता चला कि अच्छी खुशबू वाले लोगों को अच्छे सपने आए जबकि बदबू वाले लोगों को खराब सपने आए। हालांकि रेचल और हम्मेल के शोध अल्फ्रेड मोरी के शोध को खारिज करते हैं कि सपने आत्मप्रेरित होते हैं।लेकिन दोनों का ये मानना है कि हमें सपनों में गंध का अहसास होता है लेकिन ज्यादातर लोगों का यह कहना है कि ऐसा बहुत कम होता है। जैसे ‘द इंटेलिजेंट नोज’ की लेखिका रोजालिया का मानना है आमतौर पर गंध को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता खासकर पश्चिम के देशों में क्योंकि वहां प्रायः ही इसकी जगह हम देखी और सुनी हुई चीजों को अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। इसकी वजह यही है कि सपनों की तरह ही गंध भी हमारे चेतन मन से बाहर रहती है. लेकिन ये जरूर है कि वो हमारे व्यवहार को प्रभावित करती है। लेकिन इन सभी का मानना है कि सपने की तरह ही गंध को भी शब्दों में व्यक्त कर पाना आसान नहीं लेकिन गंध के ऊपर शोध करने वालों का मानना है कि अगर कोई गंध जानी पहचानी हो, या हम उसका नाम जानते हों तो हम उसे बहुत आसानी से महसूस कर पाते हैं, इसलिए कि हम उससे परिचित हैं और उसके प्रति सजग भी होते हैं। कुछ विरोधी मत रखने वालों का मानना है कि इस प्रकार के शोध में चूंकि आमतौर पर परफ्यूम सेक्टर के लोग चुने गये थे अतः इसकी प्रमाणिकता संदिग्ध है क्योंकि वे गंध पर ज्यादा ध्यान देते हैं इसलिए उसे शब्दों में अच्छी तरह बता पाने में सक्षम होते हैं। लेकिन इन शोधकर्ताओं का मानना है कि सपनों में हम ऐसी गंध को भी महसूस कर सकते हैं जिसे हमने कभी महसूस नहीं किया है। इस बात को बल मिलता है। हेलेन केलेर की आत्मकथा से जिसमें उन्होंने लिखा है कि जागते हुए तो मैं स्वाद और गंध महसूस करती हूं. लेकिन सपनों में मैं ऐसे विचार, गंध, स्वाद का अनुभव करती हूं जैसा मैंने कभी असलियत में भी नहीं किया था ।
निष्कर्ष जो कुछ भी निकले लेकिन यह निर्विवाद सत्य है कि हम सपनों में बहुत कुछ ऐसा देखते और महसूस करते हैं जो वास्तविक जीवन में नहीं करतें ऐसे में यदि हम सपनों में स्वयं को बागों में या फुलवाड़ी में घूमता देखते हैं तो उन स्थानों पर सुगंध को खुद ब खुद महसूस कर लेंगे। आखिर फुलवाड़ी है तो वहां सुगंध होगी ही। ऐसे में यदि सपनों में सुगंध महसूस करते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं। (हिफी)