स्वपनिल संसार। लखनऊ। स्वपनिल संसार की ओर से आप सभी को क्रिसमस सीजन की बधाई।
दिसंबर महीना शुरू होते ही चर्चों में क्रिसमस की तयारी शुरू हो जाती है साथ ही साथ क्रिसमस ट्री और कैंडल लाइट सर्विस शुरू हो जाती है।
लखनऊ के सभी चर्च लगभग अपनी तैयारी पूरी कर चुके है और आज से ही क्रिसमस के कार्यक्रम प्रारंभ हो जायेंगे। इसकी शुरुवात एपिफनी चर्च के संडे स्कूल के बच्चों द्वारा सुबह 10 बजे से होगी। इसके बाद अलग – अलग चर्च/कॉलेज में कार्यक्र्म चलते रहेंगे जिसकी लिस्ट नीचे दी गयी है।
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कैरल सिंगिंग
कैरल सिंगिंग यानि की वे गीत जो क्रिसमस पर आधारित होते है – लखनऊ में २० दिसंबर के बाद कैरल टोलियां रात में लोगों के घर जाकर गीत जाती है और क्रिसमस का सन्देश उन्हें देते है। कैरोल सिंगिंग क्रिसमस से कुछ दिन पहले होती है जिस समय लोग अपनी तैयारियों में जुटे रहते है तब कैरल सिंगर्स आके क्रिसमस के गीत गाकर शुभ संदेश सुनाते है।
इतिहास
भारत में क्रिसमस मनाये जाने का सिलसिला फ़्रांसिसी / अंग्रेज़ो के आने से नहीं शुरू हुआ था बल्की 13वीं शताब्दी में सेंट थॉमस केरल के मलाबार में आये वाहा से क्रिसमस मनाये जाने की परम्परा शुरू हुई जिसमे फ़्रांसिसी, डच, जर्मन, ब्रिटिशर्स और पोर्टुगेस ने अपनी स्थानीय परम्परा को इसमें शामिल कर दिया जिसका रुप आज भी देखने को मिलता है।
मिथ
क्रिसमस को लेकर कई मिथ है जिन्का बाइबिल से कोई लेना देना नहीं है जैसे की सांता क्लॉस।
संत निकोलस शताब्दियों से मध्य पूर्व तथा समस्त यूरोप में अत्यंत लोकप्रिय संत थे, जो बच्चों, कुमारियों, मल्लाहों तथा बहुत से नगरों के संरक्षक माने जाते हैं।
सन्त निकोलस का पर्व 06 दिसम्बर को पड़ता है। जर्मनी, स्विट्जरलैंड, हॉलैंड आदि में उस पर्व में बच्चों को उपहार मिलते हैं और उन्हें विश्वास दिलाया जाता है कि संत निकोलस ये उपहार देने आते हैं। अमरीका तथा इंग्लैड में उसी रिवाज को क्रिस्मस के अवसर पर रखा गया है। वहाँ का संता क्लॉस अथवा फादर क्रिस्मस मूलत: संत निकोलस ही है। उनके विषय में प्रचलित अधिकांश दंतकथाओं का कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है। इतना ही ज्ञात होता है कि वह चतुर्थ शताब्दी ई. में एशिया माइनर के मीरा नामक नगर के विशप थे जो परोपकार के कार्यों के कारण विख्यात थे। उनका अवशेष 11वीं शताब्दी में इटली के बारी नामक नगर में लाया गया था जो वहाँ के संत निकोलस नामक महामंदिर (बैसिलिका) में सुरक्षित है।