स्वप्निल संसार। नसीरुद्दीन शाह, जिन्हें हिंदी फ़िल्म उद्योग में अदाकारी का एक पैमाना कहा जाए तो शायद ही किसी को एतराज हो। नसीरुद्दीन शाह की काबिलियत का सबसे बड़ा सुबूत है, सिनेमा की दोनों धाराओं में उनकी कामयाबी। नसीर का नाम अगर पैरेलल सिनेमा के सबसे बेहतरीन अभिनेताओं की सूची में शामिल हुआ तो बॉलीवुड की मुख्य धारा या व्यापारिक फ़िल्मों में भी उन्होंने बड़ी कामयाबी हासिल की है ।नसीरुद्दीन शाह के नाम कई नेशनल अवॉर्ड, फिल्मफेयर अवॉर्ड, पद्मश्री और पद्म भूषण अवॉर्ड भी जीत चुके हैं।
नसीरुद्दीन शाह अपने शानदार अंदाज से मुख्य धारा के चहेते सितारे बन गए, ऐसा सितारा जिसने हर तरह के किरदार को बेहतरीन अभिनय से जिंदा कर दिया। ये सितार जब भी स्क्रीन पर आया देखने वाले के दिल पर उस किरदार की यादगार छाप छोड़ गया। उसकी कॉमेडी ने पब्लिक को खूब गुदगुदाया तो एक्शन में भी उसका अलग ही अंदाज नजर आया।
मुख्य धारा सिनेमा में नसीरुद्दीन शाह के सफर की शुरुआत 1980 में आई फ़िल्म ‘हम पांच’ से हुई। फ़िल्म भले ही व्यापारिक थी, लेकिन इसमें नसीरुद्दीन शाह के अभिनय की गहराई समानांतर सिनेमा वाली फ़िल्मों से कम नहीं थी। गुलामी को अपनी तकदीर मान चुके एक गांव में विद्रोह की आवाज बुलंद करते नौजवान के किरदार में नसीरुद्दीन शाह ने जान फूंक दी।
हालांकि फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर कामयाब नहीं रही और व्यापारिक एक्टर के तौर पर सफलता साबित करने के लिए नसीरुद्दीन शाह को टिकट खिड़की पर भी बिकाऊ बनने की जरूरत थी। और उनके लिए ये काम किया ‘जाने भी दो यारों’ ने। बॉलीवुड की ऑल टाइम बेस्ट कॉमेडी फ़िल्मों में शुमार ‘जाने भी दो यारों’ में रवि वासवानी और ननसीरुद्दीन शाह की जोड़ी ने बेजोड़ कॉमिक टाइमिंग दिखाई और फ़िल्म बेहद कामयाब रही। लेकिन कमर्शियल सिनेमा में नसीरुद्दीन शाह की सबसे बड़ी कामयाबी बनी ‘मासूम’। बाप और बेटे के रिश्तों को उकेरती ‘मासूम’ में नसीरुद्दीन शाह ने कमाल की अदाकारी से ना केवल खूब वाहवाही बटोरी बल्कि फ़िल्म भी सुपरहिट हुई और नसीरुद्दीन शाह को स्टार का दर्जा मिल गया।
नसीरुद्दीन शाह के इस स्टार स्टेटस को और मजबूत किया 1986 में आई सुभाष घई की मल्टीस्टारर मेगाबजट फ़िल्म ‘कर्मा’ ने। फ़िल्म में नसीरुद्दीन शाह के लिए अपनी छाप छोड़ना आसान नहीं था क्योंकि वहां अभिनय सम्राट “दिलीप कुमार भी थे। और उस दौर के नए नवेले सितारे जैकी श्रॉफ और अनिल कपूर भी थे।
1987 में गुलजार की ‘इजाजत’ नसीरुद्दीन शाह के लिए कामयाबी का एक और जरिया बन कर आई। जज्बाती कहानी, बेहतरीन निर्देशन, शानदार अभिनय और यादगार संगीत। ‘इजाजत’ ने बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त कामयाबी हासिल की और बतौर व्यापारिक एक्टर नसीरुद्दीन शाह का रुतबा और बढ़ गया। ‘त्रिदेव’ सुपरहिट फ़िल्म देकर, 90 का दशक आते-आते ननसीरुद्दीन शाह ने व्यापारिक फ़िल्मों में भी अपनी अलग पहचान बना ली थी।
2003 में आई हॉलीवुड फ़िल्म ‘द लीग ऑफ एक्सट्रा ऑर्डिनरी जेंटलमेन’ में नसीरुद्दीन ने कैप्टन नीमो का किरदार निभाया तो दूसरी तरफ पाकिस्तानी फ़िल्म ‘खुदा के लिए’ में भी उन्होंने शानदार काम किया। देश से लेकर परदेस तक, नसीरुद्दीन शाह ने अपनी अदाकारी का लोहा सारी दुनिया में मनवाया है। लेकिन नसीरुद्दीन शाह अपनी काबिलियत को खुशकिस्मती का नाम देते हैं। वो कहते हैं, ‘मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं कि मुझे इतने मौके मिले, लेकिन मैं व्यापारिक फ़िल्मों से अभी संतुष्ट नहीं हूँ।’
2008 में आई ‘अ वेडनेसडे’ ने नसीरुद्दीन शाह की कमाल की अदाकारी का और नजराना पेश किया तो ‘इश्किया’, ‘राजनीति’, ‘सात खून माफ’ और ‘डर्टी पिक्चर’ जैसी फ़िल्मों के जरिए नसीरुद्दीन ने बार-बार ये साबित किया कि एक सच्चे कलाकार को उम्र बांध नहीं सकती। हाल ही में रिलीज हुई फ़िल्म ‘मैक्सिमम’ में भी नसीर की जोरदार एक्टिंग ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया है।
आज के नसीरुद्दीन शाह की बात करें तो शायद ही ऐसा कोई रोल है जो उनपर फिट नहीं बैठे। आखिर वो एक्टर ही ऐसे हैं कि हर रोल के मुताबिक खुद को ढाल लेते हैं। लेकिन एक समय था जब नसीर को दो रोल करने की इच्छा थी जो उस समय उन्हें नहीं मिले। लेकिन बाद ‘मिर्जा गालिब’, दूरदर्शन धारावाहिक में उन्हें दो रोल मिले जिसमें उन्होंने ग़ालिब का वास्तविक चित्र उभारने की कोशिश की।
लेकिन आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि गालिब बनने की नसीरुद्दीन शाह की तमन्ना उनके दिल में एक अधूरे ख्वाब की तरह अटकी हुई थी। 1988 में सीरियल बनाने से सालों पहले गुलजार साहब गालिब पर फ़िल्म बनाना चाहते थे और उस फ़िल्म में गालिब के तौर पर उनकी दिली इच्छा संजीव कुमार को लेने की थी।
नसीर साहब ने इस बारे में बताते हुए कहा, ‘मैंने गुलजार भाई को चिठ्ठी लिखी और अपनी फोटोग्राफ्स भेजी, मैंने लिखा कि ये क्या कर रहे हैं, इस फ़िल्म में आपको मुझे लेना चाहिए।’ लेकिन संजीव कुमार को दिल का दौरा पड़ गया था और सेहत उनका साथ नहीं दे रही थी। फिर उसके बाद गुलजार साहब के दिल में उस रोल के लिए अमिताभ के नाम का खयाल आया। लेकिन वहां भी बात नहीं बनी और आखिरकार गालिब पर फ़िल्म बनाने का प्लान ही ठंडे बस्ते में पड़ गया। शायद उस वक्त गुलजार को भी नहीं मालूम होगा कि इस किरदार पर तो तकदीर ने किसी और का नाम लिख दिया है। कई साल बाद गुलजार साहब ने एक दिन नसीर को फोन लगाया। नसीर ने बताया, ‘एक दिन मुझे गुलजार भाई का फोन आया कि सीरियल में काम करोगे। मैंने पूछा कौन सा सीरियल तो उन्होंने बताया गालिब पर है। मैंने बिना कुछ सोचे फौरन हां कह दिया।’
1982 में ‘गांधी’ के रिलीज होने के अट्ठारह साल बाद कमल हासन ने ‘हे राम’ बनाई, जिसने नसीर साहब की गांधी बनने की तमन्ना को भी पूरा कर दिया। सधी हुई अदाकरी और बेजोड़ अंदाज से उन्होंने ना केवल गांधी के किरदार में जान डाल दी।
बेजोड़ एक्टिंग और गजब की क्षमता से हर तरह के किरदार निभाने वाले नसीरुद्दीन शाह ने अपनी छाप नकारात्मक भूमिकाओं में भी छोड़ी। समानांतर सिनेमा का ये हीरो कमर्शियल फ़िल्मों में एक ख़तरनाक विलेन के तौर पर भी हमेशा याद किया जाता रहेगा।
हिन्दी सिनेमा में विलेन का ये नया चेहरा था, खूंखार और अजीबोगरीब शक्ल वाला कोई गुंडा नहीं बल्कि सोफेस्टिकेटेड इंसान जिसके दिमाग में सिर्फ जहर ही जहर था। विलेन का ये किरदार जितना संजीदा था उससे भी ज्यादा संजीदगी से उसे निभाया था नसीरुद्दीन शाह ने। वैसे खलनायक के तौर पर उनकी एक दो फ़िल्में नहीं थीं। ‘मोहरा’ में उन्होंने दिखाया विलेन का वो चेहरा जो किसी के भी दिल में खौफ पैदा कर सकता है। अंधा होने का नाटक करने वाला शिकारी, लेकिन ये नसीर की असली पहचान नहीं थी।
नसीरुद्दीन शाह की असली पहचान समानांतर सिनेमा था। सिनेमा की वो धारा जिसमें एक स्टार के लिए कम और एक्टर के लिए गुंजाइश ज्यादा होती है। और ये बात किसी से छुपी नहीं कि नसीरुद्दीन शाह एक्टर पहले और स्टार बाद में हैं। समानांतर सिनेमा के इस सितारे ने स्मिता पाटिल, शबाना आजमी, अमरीश पुरी और ओम पुरी माहिर कलाकारों के साथ मिलकर आर्ट फ़िल्मों को नई पहचान दी। ‘निशान्त’ जैसी सेंसेटिव फ़िल्म से अभिनय का सफर शुरू करने वाले नसीर ने ‘आक्रोश’, ‘स्पर्श’, ‘मिर्च मसाला’, ‘भवनी भवाई’, ‘अर्धसत्य’, ‘मंडी’ और ‘चक्र’ जैसी फ़िल्मों में अभिनय की नई मिसाल पेश कर दी।
नसीरुद्दीन शाह का जन्म 20 जुलाई 1950 को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में हुआ था। नसीरूद्दीन शाह ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और फिर उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला लिया। अभिनय के इस प्रतिष्ठित संस्थान से अभिनय का विधिवत प्रशिक्षण लेने के बाद वे रंगमंच और हिन्दी फ़िल्मों में सक्रिय हो गए। नसीरूद्दीन शाह की फ़िल्मों की सूची में समानांतर और मुख्य धारा की फ़िल्मों का अनूठा सम्मिलन देखने को मिलता है। आपके भाई लेफ्टिनेंट जनरल (सेवा निवृत्त) ज़मीर उद्दीन शाह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति हैं।
नसीरूद्दीन शाह ने अपने कॅरियर की शुरुआत में कई फिल्मों में छोटे छोटे रोल किये। पर फ़िल्म निशांत से उनको बड़ा ब्रेक मिला था जिसमें उनके साथ स्मिता पाटिल और शबाना आजमी थीं। ‘निशांत’ आर्ट फ़िल्म थी। यह फ़िल्म कमाई के हिसाब से तो पीछे रही पर फ़िल्म में नसीरुद्दीन शाह के अभिनय की सबने सराहना की। इस के बाद नसीरुद्दीन शाह ने आक्रोश, ‘स्पर्श’, ‘मिर्च मसाला’, ‘अलबर्ट पिंटों को गुस्सा क्यों आता है’, ‘मंडी’, ‘मोहन जोशी हाज़िर हो’, ‘अर्द्ध सत्य’, ‘कथा’ आदि कई आर्ट फ़िल्में कीं।
आर्ट फ़िल्मों के साथ वह व्यापारिक फ़िल्मों में भी सक्रिय रहे। ‘मासूम’, ‘कर्मा’, ‘इजाज़त’, ‘जलवा’, ‘हीरो हीरालाल’, ‘गुलामी’, ‘त्रिदेव’, ‘विश्वात्मा’, ‘मोहरा’, सरफ़रोश जैसी व्यापारिक फ़िल्में कर उन्होंने साबित कर दिया कि वह सिर्फ आर्ट ही नहीं कॉमर्शियल फ़िल्में भी कर सकते हैं। नसीरूद्दीन शाह के फ़िल्मी सफर में एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने मसाला हिन्दी फ़िल्मों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कोई हिचक नहीं दिखायी। वक्त के साथ नसीरूद्दीन शाह ने फ़िल्मों के चयन में पुन: सतर्कता बरतनी शुरू कर दी। बाद में वे कम मगर, अच्छी फ़िल्मों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगे।
नसीरुद्दीन शाह और पंकज कपूर रिश्तेदार है। रत्ना पाठक और सुप्रिया पाठक सगी बहने हैं। रत्ना पाठक की शादी नसीरुद्दीन शाह से तो सुप्रिया पाठक की शादी पंकज कपूर से हुई है। पकंज कपूर और नसीरुद्दीन शाह अब तक 10 फिल्मों में एक साथ काम कर चुके हैं।रत्ना पाठक और नसीरुद्दीन की मुलाकात थियेटर में नाटक के दौरान हुई थी। दोनों का फिल्मों के प्रति लगाव एक दूसरे के करीब ले आया जिसके बाद साल 1982 में शादी रचा ली। रत्ना पाठक नसीरुद्दीन शाह की दूसरी पत्नी है।
नसीरूद्दीन शाह ने एक फ़िल्म का निर्देशन भी किया है। वह “इश्किया”, “राजनीति” और “जिंदगी ना मिलेगी दुबारा सिद्धार्थ ”तेरा सुरूर चार्ली के चक्कर में वेलकम बैक डर्टी पॉलिटिक्स फाइंडिंग फन्नी
डेढ़ इश्किया जॉन डे ज़िंदा भाग गर्ल इन येलो बूट्स डर्टी पिक्चर देओल फ़िल्मों में अपने अभिनय का जादू बिखेर चुके हैं।