रफ़ी साहब के जन्मदिन के अवसर पर
स्वप्निल संसार। एजेंसी। मोहम्मद रफ़ी जिन्हें दुनिया रफ़ी या रफ़ी साहब के नाम से बुलाती है, हिन्दी सिनेमा के श्रेष्ठतम पार्श्व गायकों में से एक थे। अपनी आवाज की मधुरता और परास की अधिकता के लिए इन्होंने अपने समकालीन गायकों के बीच अलग पहचान बनाई। इन्हें शहंशाह-ए-तरन्नुम भी कहा जाता था। मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ ने अपने आगामी दिनों में कई गायकों को प्रेरित किया। इनमें सोनू निगम, मुहम्मद अज़ीज़ तथा उदित नारायण का नाम उल्लेखनीय है – यद्यपि इनमें से कइयों की अब अपनी अलग पहचान है। 1940 के दशक से आरंभ कर 1980 तक इन्होने कुल 26,000 गाने गाए। इनमें मुख्य धारा हिन्दी गानों के अतिरिक्त ग़ज़ल, भजन, देशभक्ति गीत, क़व्वाली तथा अन्य भाषाओं में गाए गीत शामिल हैं। जिन अभिनेताओं पर उनके गाने फिल्माए गए उनमें गुरु दत्त, दिलीप कुमार, देव आनंद, भारत भूषण, जॉनी वॉकर, जॉय मुखर्जी, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, जीतेन्द्र तथा ऋषि कपूर के अलावे गायक अभिनेता किशोर कुमार का नाम भी शामिल है। 24 दिसंबर 2017 को मोहम्मद रफी जी के 93वें जन्मदिवस पर गूगल ने उन्हें सम्मानित करते हुए उनकी याद में डूडल बनाकर उनके गीतों को और उनकी यादों को समर्पित किया | इस डूडल को मुंबई के चित्रकार साजिद शेख द्वारा बनाया गया ।
मोहम्मद रफ़ी का जन्म 24 दिसम्बर 1924 को अमृतसर, के पास कोटला सुल्तान सिंह में हुआ था। आरंभिक बाल्यकाल में ही इनका परिवार लाहौर से अमृतसर आ गया। इनके परिवार का संगीत से कोई खास सरोकार नहीं था। जब रफ़ी छोटे थे तब इनके बड़े भाई की नाई दुकान थी, रफ़ी का काफी वक्त वहीं पर गुजरता था। कहा जाता है कि रफ़ी जब सात साल के थे तो वे अपने बड़े भाई की दुकान से होकर गुजरने वाले एक फकीर का पीछा किया करते थे जो उधर से गाते हुए जाया करता था। उसकी आवाज रफ़ी को पसन्द आई और रफ़ी उसकी नकल किया करते थे। उनकी नकल में अव्वलता को देखकर लोगों को उनकी आवाज भी पसन्द आने लगी। लोग नाई दुकान में उनके गाने की प्रशंशा करने लगे। लेकिन इससे रफ़ी को स्थानीय ख्याति के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिला। इनके बड़े भाई मोहम्मद हमीद ने इनके संगीत के प्रति इनकी रुचि को देखा और उन्हें उस्ताद अब्दुल वाहिद खान के पास संगीत शिक्षा लेने को कहा। एक बार ऑल इंडिया रेडियो (अब आकाशवाणी) लाहौर में उस समय के प्रख्यात गायक-अभिनेता कुन्दन लाल सहगल अपना प्रदर्शन करने आए थे। इसको सुनने हेतु मोहम्मद रफ़ी और उनके बड़े भाई भी गए थे। बिजली गुल हो जाने की वजह से सहगल ने गाने से मना कर दिया। रफ़ी के बड़े भाई ने आयोजकों से निवेदन किया की भीड़ की व्यग्रता को शांत करने के लिए मोहम्मद रफ़ी को गाने का मौका दिया जाय। उनको अनुमति मिल गई और 13 वर्ष की आयु में मोहम्मद रफ़ी का ये पहला सार्वजनिक प्रदर्शन था। प्रेक्षकों में श्याम सुन्दर, जो उस समय के प्रसिद्ध संगीतकार थे, ने भी उनको सुना और काफी प्रभावित हुए। उन्होने मोहम्मद रफ़ी को अपने लिए गाने का न्यौता दिया।
मोहम्मद रफ़ी का प्रथम गीत एक पंजाबी फ़िल्म गुल बलोच के लिए था जिसे उन्होने श्याम सुंदर के निर्देशन में 1944 में गाया। 1946 में मोहम्मद रफ़ी ने बम्बई आने का फैसला किया। उन्हें संगीतकार नौशाद ने पहले आप नाम की फ़िल्म में गाने का मौका दिया।
मोहम्मद रफ़ी को उनके परमार्थो के लिए भी जाना जाता है। वो बहुत हँसमुख और दरियादिल थे तथा हमेशा सबकी मदद के लिये तैयार रहते थे। कई फिल्मी गीत उन्होनेँ बिना पैसे लिये या बेहद कम पैसोँ लेकर गाये। अपने शुरुआती दिनों में संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल (लक्ष्मीप्यारे के नाम से जाने जाते थे) के लिए उन्होने बहुत कम पैसों में गाया था। गानों की रॉयल्टी को लेकर लता मंगेशकर के साथ उनका विवाद भी उनकी दरियादिली का सूचक है। उस समय लताजी का कहना था कि गाने गाने के बाद भी उन गानों से होने वाली आमदनी का एक अंश (रॉयल्टी) गायकों तथा गायिकाओं को मिलना चाहिए। रफ़ी साहब इसके ख़िलाफ़ थे और उनका कहना था कि एक बार गाने रिकॉर्ड हो गए और गायक-गायिकाओं को उनकी फीस का भुगतान कर दिया गया हो तो उनको और पैसों की आशा नहीं करनी चाहिए। इस बात को लेकर दोनो महान कलाकारों के बीच मनमुटाव हो गया। लता ने रफ़ी के साथ सेट पर गाने से मना कर दिया और बरसों तक दोनो का कोई युगल गीत नहीं आया। बाद में अभिनेत्री नरगिस के कहने पर ही दोनो ने साथ गाना चालू किया और ज्वैल थीफ फ़िल्म में दिल पुकारे गाना गाया। उनका देहान्त 31 जुलाई 1980 को हृदयगति रुक जाने के कारण हुआ।
– वीर विनोद छाबड़ा –अपने कैरियर में रफ़ी साहब ने एक से बढ़ कर एक बेहतरीन गाने गाये। सुहानी रात ढल चुकी…ओ दुनिया के रखवाले…हम बेखुदी में तुम को पुकारे चले गए.…देखी ज़माने की यारी, बिछुड़े सभी बारी बारी…मिली ख़ाक में मोहब्बत…मधुवन में राधिका नाचे रे.…मैं ज़िंदगी में हरदम रोता ही रहा हूं….सर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाए.…तुम्हीं ने दर्द दिया है, तुम्हीं दवा देना…और कर चले हम जानो तन साथियों…मेरी आवाज़ सुनो…ये ज़िंदगी के मेले दुनिया में कम न होंगे, अफ़सोस हम न होंगे…
बाद में कुछ विवाद उठने के कारण वो अलोकप्रिय भी हुए थे।
लताजी से उनके झगड़े की कई कहानियां अफ़वाह फ़ैक्टरी में बनायीं गयीं। लेकिन रिकॉर्ड में यह है कि उनका झगड़ा फिल्मों में गाने की रॉयल्टी को लेकर हुआ। लताजी गाने के लिए मेहनताने के साथ-साथ रॉयल्टी भी चाहती थी। प्रोड्यूसर इसके विरुद्ध थे और रफ़ी उनका पक्ष लेते थे। इस मुद्दे पर बात इतनी गर्म हुई कि रफ़ी साहब ने ऐलान किया कि वो लताजी के साथ नहीं गाएंगे। यही स्टैंड लता जी ने भी लिया। यह भी एक डिस्प्यूट है कि पहले किसने गाने से मना किया।
कुछ लोग बताते हैं कि ‘माया’ फिल्म में एक गाने (तस्वीर तेरी दिल में जिस दिन से उतारी है.…) की चंद पंक्तियों के कारण संबंध ख़राब हुए थे। संगीतकार सलिल चौधरी ने लता का साथ दिया। एक इंटरव्यू में उषा तिमोती ने बताया था कि ये सब तो बहाने थे। असल वज़ह थी कि रफ़ी जी अपनी आदत के अनुसार हर नए गायक को प्रमोट करते थे। इसी कड़ी में उन्होंने सुमन कल्याणपुर को प्रमोट किया। लताजी को ये बात पसंद नहीं आई थी।
यों लताजी की संगीतकार शंकर-जयकिशन के शंकर के साथ भी गायिका शारदा को प्रमोट करने के मुद्दे को लेकर भी नाराज़ हुई थीं।
उस ज़माने में लोगों को हैरानी होती थी कि आख़िर रिश्तों में इतनी खटास क्योंकर आ गयी जबकि दोनों में भाई-बहन का रिश्ता था। गिनीज़ बुक ऑफ़ रिकॉर्ड ने बताया कि लता ने रिकॉर्ड 25000 गाने गाये हैं तो रफ़ी ने इसे चुनौती दी। रफ़ी साब की 1980 में मृत्यु के बाद 1991 में गिनीज़ ने आशा भोंसले को 7875 गानों के साथ सबसे ऊपर रखा। रफ़ी के नाम 4844 रिकार्डेड गाने बताये गए।
संगीतकार जयकिशन ने 1967 में रफ़ी और लता की सुलह करा दी। अच्छी गायकी के चाहने वालों ने दिल खोल कर स्वागत किया। इसके बाद दोनों के कई गाने रिकॉर्ड हुए।
कोई चार साल पहले फिर विवाद खड़ा हो गया। लताजी ने एक समारोह में बताया कि रफ़ी साहब ने उनसे लिखित माफ़ी मांगी थी। जबकि रफ़ी के बेटे शाहिद रफ़ी का कहना है कि माफ़ी नहीं मांगी गयी थी और अगर ऐसा था तो लताजी माफ़ीनामा दिखायें। वो माफ़ीनामा अभी तक पेश नहीं हो सका है।
बहरहाल, इन तमाम विवादों के बावजूद रफ़ी साब का कद कम नही हुआ। दुनिया उन्हें एक ऐसे गायक के रूप में याद रखती है जिसका कोई सानी नहीं।
रफ़ी साहब एक सच्चे मददगार होने के अलावा बेहद भावुक भी थे। मन तड़पत हरी दर्शन को आज…और बाबुल की दुआएं लेती जा… के बारे बताया जाता है कि वो इन गानों की रिकॉर्डिंग पर फूट फूट कर रोये थे।
सर्वश्रेष्ठ गायन के लिए फिल्मफेयर में रफ़ी 21 बार नॉमिनेट हुए और छह बार वो जीते। एक बार राष्ट्रीय पुरुस्कार भी मिला।
जब तक फ़िज़ा है, रफ़ी रहेंगे। अमर आवाज़ें कभी ख़त्म नहीं होतीं।
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