धनतेरस के साथ ही पांच दिवसीय दीपावली का त्योहार शुरू हो जाता है। धनतेरस को भगवान धनवंतरि की पूजा की जाती है। इस बार धनतेरस 17 अक्टूबर दिन मंगलवार को मनायी जाएगी। इस दिन कोई न कोई नई वस्तु जरूर खरीदते हैं। धनतेरस के दिन सोने-चांदी की चीजें खरीदना ज्यादा शुभ माना जाता है धनतेरस पर सबसे पहले मिट्टी का हाथी और भगवान धनवंतरि की मूर्ति को स्थापित करें। इसके बाद चांदी या तांबे की आचमनी में जल का आचमन कर भगवान गणेश का पूजन करें। हाथ में अक्षत (चावल) और पुष्प लेकर भगवान धनवंतरि का मन में इस प्रकार स्मरण करें कि उनका स्वरूप बंद आंखों से भी दिखाई पड़े। ऐसी मान्यता है कि भगवान धनवन्तरि जब समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए थे तब उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था। इसलिए इस दिन बर्तन खरीदने की परम्परा है।
धनतेरस पूजा-सायं 9-32 से रात 10-18 तक
प्रदोष काल-सायं 7-49 से रात 10-18 तक
वृषभ काल- सायं 9-32 से 11-33 तक
त्रयोदशी तिथि-सोमवार रात 12-26 से प्रारम्भ लक्ष्मी पूजा प्रदोष काल में ही करनी चाहिए।
दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन घर के लिए कोई ऐसा सामान खरीदना शुभ माना जाता है तो स्थायी सम्पत्ति बन सके। इसी दिन भगवान धन्वंतरि की भी पजा की जाती है जिससे हमारा स्वास्थ्य ठीक रहे। स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहेगा तो धन का उपयोग हम कैसे कर पाएंगे। यह त्योहार देश भर में मनाया जाता है और कई दिन पहले से ही बाजारों में सजावट के साथ खरीदारी शुरू हो जाती है। दीपावली पर दीप जलाने के लिए और लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां खरीदने के लिए धनतेरस का दिन ही शुभ माना जाता है। लाई-चूरा, खिलौना आदि से मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। घरों में भी कई तरह से मिष्ठान्न बनाए जाते हैं। दीपावली पर्व की शुरुआत धनतेरस से ही हो जाती है।
कार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस कहते हैं। इस दिन घर के द्वार पर तेरह दीपक जलाकर रखे जाते हैं। यह त्योहार दीपावली आने की पूर्व सूचना देता है। इस दिन नए बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज और भगवान धनवंतरि की पूजा का महत्व है। भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता रहा है। यह कहावत आज भी र्पचलित है कि पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया। इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है। जो भारतीय संस्कृति के हिसाब से बिल्कुल अनुकूल है। शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। मान्यता है कि भगवान धनवंतरि विष्णु के अंशावतार हैं। संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धनवंतरी का अवतार लिया था। भगवान धनवंतरि के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन अपने सामथ्र्य अनुसार किसी भी रूप में चांदी एवं अन्य धातु खरीदना अति शुभ है। धन संपत्ति की प्राप्ति हेतु कुबेर देवता के लिए घर के पूजा स्थल पर दीप दान करें एवं मृत्यु देवता यमराज के लिए मुख्य द्वार पर भी दीप दान करें। उत्तरी भारत में कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जाता है। धन्वंतरि के अलावा इस दिन, देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा करने की मान्यता है।
इस दिन को मनाने के पीछे धन्वंतरि के जन्म लेने की कथा के अलावा, दूसरी कहानी भी र्पचलित है। कहा जाता है कि एक समय भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे तब लक्ष्मी जी ने भी उनसे साथ चलने का आग्रह किया। तब विष्णु जी ने कहा कि यदि मैं जो बात कहूं तुम अगर वैसा ही मानो तो फिर चलो। तब लक्ष्मी जी उनकी बात मान गईं और भगवान विष्णु के साथ भूमंडल पर आ गईं। कुछ देर बाद एक जगह पर पहुंचकर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि जब तक मैं न आऊं तुम यहां ठहरो। मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं, तुम उधर मत आना। विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी के मन में कौतुहल जागा कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है जो मुझे मना किया गया है और भगवान स्वयं चले गए। लक्ष्मी जी से रहा न गया और जैसे ही भगवान आगे बढ़े लक्ष्मी भी पीछे-पीछे चल पड़ीं। कुछ ही आगे जाने पर उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई दिया जिसमें खूब फूल लगे थे। सरसों की शोभा देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गईं और फूल तोड़कर अपना श्रृंगार करने के बाद आगे बढ़ीं। आगे जाने पर एक गन्ने के खेत से लक्ष्मी जी गन्ने तोड़कर रस चूसने लगीं।
उसी क्षण विष्णु जी आए और यह देख लक्ष्मी जी पर नाराज होकर उन्हें शाप दे दिया कि मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था,पर तुम न मानी और किसान की चोरी का अपराध कर बैठी। अब तुम इस अपराध के जुर्म में इस किसान की 12 वर्ष तक सेवा करो। ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए। तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर रहने लगीं।
एक दिन लक्ष्मीजी ने उस किसान की पत्नी से कहा कि तुम स्नान कर पहले मेरी बनाई गई इस देवी लक्ष्मी का पूजन करो, फिर रसोई बनाना, तब तुम जो मांगोगी मिलेगा। किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया। पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन से अन्न, धन, रत्न, स्वर्ण आदि से भर गया। लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। किसान के 12 वर्ष बड़े आनंद से कट गए। फिर १२ वर्ष के बाद लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार हुईं।
विष्णुजी लक्ष्मीजी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया। तब भगवान ने किसान से कहा कि इन्हें कौन जाने देता है,यह तो चंचला हैं, कहीं नहीं ठहरतीं। इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। इनको मेरा शाप था इसलिए १२ वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं। तुम्हारी 12 वर्ष सेवा का समय पूरा हो चुका है। किसान हठपूर्वक बोला कि नहीं अब मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दूंगा। तब लक्ष्मीजी ने कहा कि हे किसान तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूं वैसा करो। कल तेरस है। तुम कल घर को लीप-पोतकर स्वच्छ करना। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और सायंकाल मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपए भरकर मेरे लिए रखना,मैं उस कलश में निवास करूंगी। किंतु पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी।
इस एक दिन की पूजा से वर्ष भर मैं तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी। यह कहकर वह दीपकों के र्पकाश के साथ दसों दिशाओं में फैल गईं। अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी के कथानुसार पूजन किया। उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। इसी वजह से हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा होने लगी। (हिफी)