संजोग वॉल्टर। यहाँ ज़लजला आया था 4 अप्रैल 1905 को कांगड़ा वैली में जानो माल का नुकसान हुआ था चर्च को कोई नुकसान नहीं हुआ। तब ब्रतानी हुकुमत ने यहाँ ग्रीष्म कालीन राजधानी का फैसला टाल दिया फिर हुई दूसरी जगह खोज की । वो जगह थी शिमला। कांगड़ा की वादी को असुरक्षित देखकर अंग्रेजों ने शिमला को और भी विकसित किया। धर्मशाला आज हिंमांचल प्रदेश की ग्रीष्म कालीन राजधानी है।
Forysthganj में धर्मशाला मैक्लोडगंज और के बीच में है St. John in the Wilderness Church की भवन को तब आंशिक नुक्सान हुआ था ,उस तबाही में सिर्फ यही चर्च भवन बचा रहा। चर्च के घंटे को नुकसान हुआ ,जिसे बाद में अंग्रेजों ने बदलवा दिया था।
लार्ड एल्गिन भारत के प्रथम वायरस बनाये गए थे। जिनका कार्यकाल – 21 मार्च 1862 से 20 नवम्बर 1863 तक रहा था। लार्ड एल्गिन की 20 नवम्बर 1863 को दिल का दौरा पड़ने से धर्मशाला में मृत्यु हो गई थी । जिन्हें के St. John in the Wilderness Church कैम्पस में ही दफना दिया गया था।
फिल्म नगरी मुंबई में बीते दौर की अभिनेत्री प्रिया राजवंश के नाम से कोई को यादगार नहीं है और नहीं उनके अपने शहर शिमला में। हिमांचल प्रदेश के कांगडा से कुछ दूर धर्मशाला और मैक्लोडगंज के बीच Forysthganj गांव में कायम ऐतिहासिक चर्च (St. John in the Wilderness Church ) में जहाँ वायसराय रहे James Bruce, 8th Earl of Elgin की कब्र भी है। वहां अभिनेत्री प्रिया राजवंश के नाम पर लगा पत्थर यह याद दिलाता है की उनका इस गांव और चर्च से लगाव था।
राकेश कथूरिया—
कांगड़ा घाटी में 117 साल पहले चार अप्रैल को आए भूकंप ने भारी तबाही मचाई थी, लेकिन भूकंप से होने वाली हानियों से लोग आज भी बेखबर हैं । भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील जोन पांच में शामिल कांगड़ा घाटी में अगर भूकंप आया तो तबाही का मंजर भयावह होगा। यह जरूरी नहीं कि इतिहास फिर से खुद को दोहराए, लेकिन अगर ऐसा हुआ तो धौलाधार पर्वत भी इसके विनाशकारी प्रभाव से अछूता नहीं रहेगा। भू-गर्भ वैज्ञानिकों का मानना है कि निकट भविष्य में कांगड़ा को विनाशकारी भूकंप का सामना करना पड़ सकता है।
बहुमंजिला भवनों के निर्माण में भूकंपरोधी रोधी तकनीक न अपनाने का खामियाजा भी भूकंप से भुगतना पड़ सकता है । भूकंप में जीवन हानि भवनों के गिरने से उनके मलबे में दबने से होती है, जहां तक भूकंपरोधी तकनीक का सवाल है तो यह तकनीक यहां कारगर साबित हो सकती है। लेकिन निजी भवनों में यह तकनीक अपनाना तो दूर सरकारी भवनों में भी यह तकनीक इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। सरकारी तंत्र मॉकड्रिल के जरिए पूर्वाभ्यास में जुटा रहा है, लेकिन भूकंपरोधी रोधी तकनीक अपनाने को लेकर लोगों में जागरूकता लाने के साथ-साथ सख्ती बरतने की जरूरत है। (एचडीएम)
नौ से अधिक तीव्रता पर आएगी भारी तबाही
वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर भूकंप की तीव्रता 9 से अधिक रहती है, तो उसमें जान माल की भारी क्षति होती है। रेल पटरियां मुड़ जाती हैं, सड़कें टूट जाती हैं ,पृथ्वी पर अनेक सेंटीमीटर चौड़ी दरारें पड़ जाती हैं, भूमिगत पाइपें टूट जाती हैं, चट्टानें गिरती हैं व कीचड़ बहता है, कई स्थानों पर भू-स्खलन होता है, पानी में विशाल लहरें पैदा होती है, नदियों का मार्ग बदल जाता है ।
लापरवाही पड़ सकती है भारी
गौरतलब है कि आज से 117 साल पहले चार अप्रैल, 1905 को कांगड़ा में आए भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 8 मापी गई थी। तब लगभग 19000 लोग मौत का शिकार हुए थे तथा 38 हजार पशु भी इस भूकंप की भेंट चढ़ गए थे। अकेले कांगड़ा नगर में मरने वाले लोगों की संख्या 10257 थी। आज जिस कद्र पिछले 117 सालों में भवनों का निर्माण हुआ है उस हिसाब से अगर भूकंप आया, तो मृतकों की संख्या लाखों तक पहुंच सकती है ।